Chandrashekhar Azad: बहुजन हूं, कोई भेड़ नहीं जो किसी के पीछे चलूं... किसको तेवर दिखा रहे चंद्रशेखर आजाद?
Chandrashekhar Azad news: यूपी की नगीना (Nagina) सीट से सांसद चुनकर आए चंद्रशेखर रावण ने एक बार फिर से देश की दलित राजनीति में पूरे दमखम से अपना हिस्सा लेने का संकल्प दोहराया है. एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने बीते डेढ़ दशक की मेहनत और सियासी समझ के हवाले से दिग्गजों को चुनौती देते हुए बड़े संकेत दिए हैं.
Chandrashekhar Azad Dalit Politics: आजाद भारत में, कांशीराम दलित राजनीति को आकार देने वाले दिग्गज के रूप में सामने आते हैं. उन्होंने दलितों को एक आवाज दी. उनकी विरासत मायावती ने संभाली. उनकी पार्टी बसपा (BSP) ने यूपी में सत्ता का सुख भोगा फिर कई घोटालों में उनकी पार्टी और उसके नेताओं का नाम खराब हुआ. लोकसभा में आज से 15 साल पहले उनके 21 सांसद होते थे. बाद में उनकी पार्टी जीरो तक पहुंच गई. इस दौरान यूपी (UP) में दलित समाज के उत्थान के लिए एक नया चेहरा पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था. वो समाज के बेहतर भविष्य के सपने बुन रहा था. जिसके ऊपर काशीराम जैसे बड़े नेता का हाथ नहीं था. लगन और मेहनत से उसने नाम कमाया और सांसद बनने का लक्ष्य भी पूरा किया. यहां बात नगीना से सांसद चंद्रशेखर की जो अब 'आजाद' बनकर दलित समाज की रहनुमाई करने वालों को चुनौती देते हुए कुछ बड़ा करने के संकेत दे रहे हैं.
कौन हैं चंद्रशेखर?
अपनी मेहनत के दम पर सियासी गलियों की एक मुखर आवाज़ बन चुके चंद्रशेखर आजाद किसी परिचय के मोहताज नहीं है. 3 दिसंबर 1986 को जन्मे चंद्रशेखर 37 साल की उम्र में सांसद बन गए. वो जुझारू हैं. संसद में शपथ लेते ही उनके अंदर के युवा नेता ने साफ कर दिया है कि अब कोई उनकी आवाज दबा नहीं पाएगा. दशकों से सिसासत कर रहे दिग्गजों को उनकी बात सुननी पड़ेगी. तीखे तेवर वाले चंद्रशेखर ने पिछले 10 सालों में न सिर्फ दलितों बल्कि मुसलमानों के हक में भी आवाज उठाई. यूपी सरकार के कई फैसलों को लेकर उन्होंने कई समाज के लोगों के साथ आंदोलन किया. लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने खुद कहा था कि उनकी उम्र से ज्यादा मुकदमें उनके ऊपर हैं, जो सत्ताधारी दलों ने लगा रखे हैं क्योंकि वो उनको अपने लिए खतरा मानते हैं.
क्या करने जा रहे चंद्रशेखर किसे दे रहे चुनौती?
आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) के नेता और नगीना से पार्टी के इकलौते सांसद चन्द्रशेखर आज़ाद ने कहा है कि वह सदन में एक स्वतंत्र आवाज़ बने रहेंगे और सत्ता पक्ष या विपक्ष के साथ शामिल नहीं होंगे.
बहुजन हूं कोई भेड़ नहीं जो किसी के पीछे चलूं...
'द इंडियन एक्सप्रेस' को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'हम अपने लाखों लोगों की उम्मीद हैं. जब मैं पहली बार संसद गया, तो एक खाली बेंच पर अकेला बैठा था. मैं नया था, मुझे नहीं पता था, क्या करना है, कैसे करना है. मैंने सोचा था कि विपक्ष में मेरे मित्र मुझे अपने साथ आकर बैठने के लिए कहेंगे. मैंने सोचा था कि वो कहेंगे, 'हम दोनों भाजपा के खिलाफ लड़ रहे हैं इसलिए हमें साथ मिलकर काम करना चाहिए. लेकिन तीन दिनों तक वहां बैठने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि किसी को भी इस बात से कोई परेशानी नहीं थी कि चन्द्रशेखर संसद में कहां बैठे थे. मेरा गोल क्लियर था. लेकिन उन 72 घंटों में मुझे नया सबक मिल गया.'
आजाद ने आगे कहा कि वो बहुजन हैं कोई भेड़ नहीं जो किसी के हांकने पर पीछे-पीछे चलने लगेंगे. अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने ये भी कहा, ' जब स्पीकर पद का चुनाव आया तो कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें फोन करके कहा कि उन्हें उनकी मदद करनी चाहिए. मैंने कहा- ‘ठीक है’ आगे बढ़िए, लेकिन ये क्या उन्होंने (वोटों के) विभाजन के लिए दबाव भी नहीं डाला. जब ऐसा नहीं हुआ तो मामला वहीं ख़त्म हो गया. वो नेता जी अपने रास्ते चले गए और मैं अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया. तब मैंने फैसला लिया कि मैं न तो दक्षिणपंथी बनूंगा. और न ही वामपंथी. मैं बहुजन हूं और अपने एजेंडे के साथ अकेला खड़ा रहूंगा.' इसीलिए मैंने विपक्ष के साथ वॉकआउट नहीं किया. हम भेड़ें नहीं हैं जिनका अनुसरण करना होगा. हम अपने लाखों लोगों की आशा हैं. हम भले ही छोटे राजनीतिक कार्यकर्ता हों लेकिन हम अपने समाज के नेता हैं. अगर हम दूसरों का अनुसरण करते रहेंगे तो इससे हमारे लोगों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचेगी.'
जाहिर है कि कांग्रेस हो या SP-BSP या सरकार चला रही BJP, सत्ता हासिल करने के लिए सर्वसमाज के उत्थान की बात करते रहे हैं. इसलिए 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में ही चंद्रशेखर ने साफ कर दिया कि कोई भी दल या उसका नेता उन्हें पिछलग्गू न समझे. उन्होंने बिना किसी का नाम लिए, अब तक दलितों के नाम पर सियासत करने वालों के आगे लकीर खींच दी है.
'जय भीम, जय भारत, जय संविधान, जय जवान, जय किसान'
लोकसभा के सदस्य जब बतौर सांसद शपथ ले रहे थे, आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) और नगीना से सांसद चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी शपथ 'जय भीम, जय भारत, जय संविधान, जय जवान, जय किसान' के नारे के साथ समाप्त की.
किस पर साधा निशाना?
नगीना सीट 1.51 लाख वोटों से जीतने वाले आज़ाद ने कहा कि वह UP में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (SP) के साथ गठबंधन चाहते थे, लेकिन कोई भी उन्हें नगीना देने पर सहमत नहीं हुआ. 'मुझे लगता है कि वे सब वंचितों के बीच एक स्वतंत्र आवाज़ नहीं चाहते हैं. वे चाहते हैं कि जो भी सामने आए वह उनके साथ या उनके नीचे ही खड़ा हो. ताकि वे लोग उसका इस्तेमाल कर सकें और उसे आगे नहीं बढ़ने दें. उन्होंने मुझसे दूसरी सीट से या अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने को कहा. मैंने उनसे कहा कि मैं न तो अपना निर्वाचन क्षेत्र छोड़ूंगा और न ही किसी और के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ूंगा.'
सियासत में नाम नहीं लिया जाता. संकेतों में बहुत कुछ कह दिया जाता है. ऐसे में चंद्रशेखर ने भी साफ कर दिया है कि वो इंडिया गठबंधन से इतर एक स्वतंत्र आवाज देकर अपने दलित समाज की आवाज बनेंगे. अपनी पार्टी को आगे बढ़ाएंगे. चुनाव होने से पहले तमाम चैनलों के इंटरव्यू में उन्होंने ये सीट शेयरिंग न हो पाने का दोष दूसरे दलों पर डाला था, तब भी पत्रकारों ने उनसे किसी एक नेता का नाम पूछा कि कौन है जो उन्हें नगीना सीट देने या गठबंधन में एंट्री नहीं देना चाहता, तब भी उन्होंने सपा या कांग्रेस के किसी नेता का नाम नहीं लिया था.
गौरतलब है कि 25 अप्रैल 2009 को लोकसभा चुनावों से पहले मायावती ने दलित की बेटी यानी खुद को प्रधानमंत्री बनाने की मांग की थी. नतीजे आए तो सीटें मिलीं केवल 21 और कांग्रेस ने जीतीं 206 सीटें. तब उस समय अपना सियासी नफा नुकसान सोचते हुए बसपा ने कांग्रेस को बाहर से बिना शर्त समर्थन देने का फैसला किया था. मायावती का सर्वजन हिताय का नारा कुछ खास काम नहीं आया था. आजाद ने लगभग उसी समय के आसपास कुछ सपने बुने थे. जो 2014 से 2024 के दस साल की जी तोड़ मेहनत से पूरे हुए.
2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा की हालत किसी से छिपी नहीं थी. 2019 में भी कोई खास कमाल नहीं हुआ. यूपी में कांग्रेस, सपा, बसपा तीनों का सूपड़ा साफ होने जैसी नौबत आ गई थी. 2024 में जब कांग्रेस 48 से 99 हो गई और सपा भी 34 सीट पर पहुंच गई ऐसे में जाहिर तौर पर यूपी में बीजेपी को नुकसान हुआ, लेकिन फिर भी वो केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही. अब आजाद ने कहा है कि वो पुराने दलित रहनुमाओं की तरह घिसीपिटी लीक पर नहीं चलेंगे, बल्कि अपने लोगों को उनका हक दिलवाएंगे. यानी आजाद ने अब 'आजाद' रहने का फैसला कर लिया है.