National Urdu University: उच्चतम न्यायालय ने मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति फिरोज बख्त अहमद को निर्देश दिया है कि वह “यौन उत्पीड़क” टिप्पणी के संबंध में अपने साथी प्रोफेसर से बिना शर्त माफी मांगें. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति पी.के. मिश्रा की पीठ ने कहा कि अहमद को प्रोफेसर एहतेशाम अहमद खान, जो पत्रकारिता मीडिया सेंटर के विभागाध्यक्ष थे, के खिलाफ इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाने से पहले अपनी टिप्पणी के परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था. 


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पीठ ने 14 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, “मामले में, चूंकि अब अपीलकर्ता को अपनी गलती का एहसास हो गया है और वह बिना शर्त माफी मांगने को तैयार है, इसलिए हम पाते हैं कि यह दोनों पक्षों के हित में होगा कि आपराधिक कार्यवाही के साथ-साथ उनके बीच लंबित अन्य कार्यवाहियों को भी समाप्त कर दिया जाए.” न्यायालय ने कहा, “अपीलकर्ता प्रतिवादी संख्या 2 (खान) से बिना शर्त माफी मांगेगा. अपीलकर्ता आज से चार सप्ताह की अवधि के भीतर दैनिक ईनाडु में पहले पृष्ठ पर मोटे अक्षरों में विज्ञापन देकर उक्त बिना शर्त माफी प्रकाशित करेगा.” 


पीठ ने अहमद को यह भी निर्देश दिया कि वह खान के खिलाफ लगाए गए बेबुनियाद आरोपों के कारण उन्हें हुई मानसिक पीड़ा के लिए प्रतीकात्मक राशि के रूप में एक लाख रुपये का भुगतान करें. इसमें कहा गया है, “उक्त राशि का भुगतान प्रतिवादी संख्या 2 के पक्ष में डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से आज से चार सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाए.” अहमद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्त मखीजा ने दलील दी कि अपीलकर्ता ने भावनात्मक आवेग में आकर उक्त बयान दिया था और उसका प्रोफेसर की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था. 


खान की ओर से पेश हुए अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन ने कहा कि अपीलकर्ता ने परिणामों की पूरी समझ के साथ इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाने का विकल्प चुना है और वह किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है. शिकायतकर्ता के अनुसार, अहमद ने मीडिया से बात करते हुए प्रोफेसर एहतेशाम खान को “यौन उत्पीड़क” बताया. न्यायालय ने राजेंद्रनगर अदालत में लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया.


(एजेंसी इनपुट के साथ)