नई दिल्ली: अफगानिस्तान (Afghanistan) के कई लोग भारत की राजधानी दिल्ली (Delhi) में रह रहे हैं और काबुल (Kabul) पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद से ये लोग बेचैन हैं. इन्हें अपने परिवार, अपने रिश्तेदारों की सुरक्षा की चिंता सताए जा रही है. ये लोग दिल्ली में पिछले कई सालों से रह रहे हैं. इन लोगों ने अफगानिस्तान के हालात पर ज़ी न्यूज़ के जरिए दुनिया से अपना दर्द साझा किया.  


शरणार्थियों ने सुनाई आपबीती


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दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन में एक हैंडीक्राफ्ट सेंटर का नाम सिलाईवाली है, जहां 60 से 70 अफगानिस्तानी महिलाएं काम करती हैं. ये लोग शरणार्थी हैं, तालिबान के डर से अफगानिस्तान छोड़कर दिल्ली में आ बसे. कोई 5 साल पहले आया तो कोई 8 साल पहले. फिरोजा साल 2013 में दिल्ली आई थीं.


जुल्म ढाहते थे तालिबानी आतंकी


फिरोजा ने कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर रखा है. तब कब्जा नहीं था लेकिन उनके लोग खाली जगह में रहते थे. अफगानिस्तान के लोगों को तंग करते थे जो 2 मिनट में काम करता था उनको भी तंग करते थे.


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ना दिन में चैन था ना रात को सुकून


उन्होंने आगे कहा कि जो अमेरिका के साथ काम करते थे उनको भी तंग करते थे तो हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था. दिन में हम चैन से रह नहीं सकते थे और रात में हम सो नहीं सकते थे तो ऐसी जिंदगी का क्या फायदा इसलिए हम यहां पर आ गए. भारत आकर बहुत अच्छा महसूस होता है. यहां के लोग बहुत अच्छे हैं. बहुत प्यार दिया है.


वहीं शकीबा भी 2013 में भारत आई थीं. उस दौरान अफगानिस्तान में जनता की चुनी हुई सरकार थी लेकिन फिर भी तालिबान का प्रभाव बना हुआ था. शकीबा बताती हैं कि उनके चाचा ने उस रात 2 बजे उन्हें अपने गांव से काबुल पहुंचाया था क्योंकि उनके गांव में तालिबान ने कब्जा कर लिया था.



शकीबा ने कहा कि बहुत बुरा हाल है वहां पर, लोग बाहर नहीं निकलते हैं सब डरते हैं क्योंकि पिछली बार जब तालिबान आया था तब उन्होंने बहुत बुरा किया था. मैं वहीं पर थी, बहुत बुरा हुआ था. हमारा गांव काबुल से 20 मिनट दूर था जब तालिबान ने हमारे गांव पर कब्जा किया था तब हमारे घर में 5 लड़कियां थीं. हमारे चाचा ने उस रात 2 बजे हमें काबुल पहुंचाया.


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उन्होंने आगे कहा कि हमारे गांव से वो लोग तीन लड़कियों को लेकर गए थे उसी डर से हमारे चाचा आधी रात में हमें निकालकर काबुल लेकर आए. पैरों में छाले पड़ गए थे. वो बहुत मुश्किल से हम लोगों को लाए.


शकीबा बाकी अफगानी महिलाओं के साथ यहां सिलाई-कढ़ाई और बुनाई का काम करती हैं. इस सेंटर की शुरुआत बिश्वदीप मोइत्रा और उनकी फ्रांसीसी मूल की पत्नी ईरीस स्ट्रिल ने दिसंबर 2018 में की थी.


शरणार्थी का जीवन बिता रहीं शकीबा, शरीफा और शबनम जैसी अफगानी महिलाएं वापस अपने मुल्क नहीं जाना चाहतीं क्योंकि इन्हें लगता है तालिबान के राज में महिलाओं का सांस लेना भी मुश्किल है.


शरीफा ने कहा कि उधर हालात बहुत खराब हैं. मैं डरती हूं. मैं कभी नहीं जाऊंगी. हालात सही नहीं है. जिंदगी सही नहीं है. काम नहीं है कैसे जाऊं बहुत मुश्किल है.


वहीं शबनम ने कहा कि मैंने उन लोगों को रियल में कभी देखा नहीं है कि लेकिन सुना है कि वह महिलाओं के ऊपर ज्यादातर जुल्म करते हैं.


अफगानिस्तान की महिलाएं आजाद रहना चाहती हैं. वो तालिबान के खौफ में घुट-घुटकर मरना नहीं चाहती हैं इसलिए जो अपने मुल्क से बाहर हैं वो खुद को सुरक्षित मान रही हैं और जो अफगानिस्तान में फंसी हुई हैं, वो बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रही हैं.


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