तालिबान का हिसाब करेंगी अफगानिस्तान की महिलाएं, जानिए काबुल में हो रही क्रांति का मतलब
दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को देर सवेर आतंकवादियों की इस तालिबान सरकार (Taliban Government) को मंजूर करना पड़ेगा. अब ये नेता चाहें तो बुर्का पहन सकते हैं क्योंकि ये सभी अफगानिस्तान (Afghanistan) में आतंकवादियों को सरकार बनाने से नहीं रोक पाए.
नई दिल्ली: दुनिया के बड़े बड़े नेताओं को देर सवेर आतंकवादियों की इस सरकार को मंजूर करना पड़ेगा. अब ये नेता चाहें तो बुर्का पहन सकते हैं. क्योंकि ये नेता अफगानिस्तान (Afghanistan) में आतंकवादियों को सरकार बनाने से नहीं रोक पाए. इसलिए आज अमेरिका (US) के राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) समेत तमाम लोगों के लिए बुर्का भेंट करने की चर्चा हो रही है. अफगान महिलाओं को बुर्का मंजूर नहीं है, इसलिए अफगानिस्तान की हजारों महिलाएं तालिबान (Taliban) के विरोध में काबुल की सड़कों पर उतरीं. दुनिया में इस समय की सबसे शक्तिशाली तस्वीरें थीं.
अफगान महिलाओं का पैदल मार्च
काबुल में आज हजारों महिलाओं ने बिना बुर्का पहने और चेहरा ढके तालिबान और पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया. ये महिलाएं निडर और बेखौफ होकर तालिबान की गोलीबारी के बीच भी अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज लेकर पैदल मार्च करती रहीं और प्रदर्शन को रुकने नहीं दिया. ऐसे में हम इनकी हिम्मत को सलाम करते हैं और दुनिया के सभी बड़े देशों और नेताओं से कहना चाहते हैं कि उन्हें इन तस्वीरों को देखने के बाद बुर्का पहन लेना चाहिए.
तालिबान-पाकिस्तान के खिलाफ प्रदर्शन जारी
काबुल में मंगलवार को लगातार दूसरे दिन तालिबान और पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन हुआ. जिसमें आजादी के नारे लगाए गए, पंजशीर में नॉर्दन अलाइंस (Northern Alliance) के समर्थन में पोस्टर लहराए गए और पाकिस्तान के खात्मे की दुआ भी मांगी गई. ये प्रदर्शन काबुल में पाकिस्तान के दूतावास के बाहर हुआ.
तालिबानियों ने पत्रकारों को पीटा
इस प्रदर्शन की कवरेज करने वाले पत्रकारों को भी तालिबानियों ने बुरी तरह पीटा और उनके कैमरे छीन लिए गए. अफगानिस्तान के एक पत्रकार ने बताया है कि उसे तालिबानियों ने तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उसने जमीन पर नाक रगड़ कर माफी नहीं मांगी. जिस जगह ये प्रदर्शन हुआ, वहां से सिर्फ 5 किलोमीटर दूर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के चीफ फैज हमीद एक होटल में रुके हैं. वो 4 सितम्बर को काबुल पहुंचे थे और 5 सितम्बर को तालिबान ने पंजशीर पर कब्जे का ऐलान कर दिया था. तभी से इस चर्चा को और आधार मिला कि पाकिस्तान ने यकीनन पंजशीर में तालिबान की मदद की और हवाई हमले के लिए अपने ड्रोन्स (Drones) का इस्तेमाल किया. इसलिए महिलाओं के एक गुट ने उनके होटेल के नजदीक जाने की कोशिश की.
तालिबान ने सरकार जरूर बना ली है, लेकिन उस सरकार को चलाना आसान नहीं होगा. इन महिलाओं ने वो किया है जो दुनिया भर के संवाददाता नहीं कर पाए. दुनिया के बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल (News Channels) नहीं कर पाए. दुनिया की बड़ी बड़ी सेनाएं नहीं कर पाईं और दुनिया के बड़े बड़े नोबल पुरस्कार विजेता नहीं कर पाए. संयुक्त राष्ट्र के पास अपनी शांति सेना (Peace Keeping Force) होती है. उनके अपने ऑब्जर्वर्स (Observers) होते हैं. आज वो सब कहां हैं, दुनिया में शांति लाने के नाम पर नोबेल पुरस्तार जीतने वाले लोग कहां हैं.
ईरान ने दिखाया दम
ईरान को छोड़ कर दुनिया के किसी भी देश ने अब तक पंजशीर में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर जांच कराने की बात नहीं की है. इसलिए हम एक बार फिर से ये मांग करते हैं कि पंजशीर में पाकिस्तान की भूमिका की जांच होनी चाहिए. वहीं दुनियाभर के देशों को खास तौर पर पश्चिमी देशों को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि इससे उनका कोई लेना देना नहीं है. इसी दौरान की एक बड़ी खबर ये भी रही कि तजाकिस्तान की वायु सेना ने पंजशीर में नॉर्दन एयरलाइंस (Northern Alliance) को मदद पहुंचाई है. तजाकिस्तान के 4 हेलीकॉप्टर्स (Helicpoters) अफगानिस्तान की सीमा में दाखिल हुए जिन्होंने पंजशीर घाटी में तालिबान और पाकिस्तान से संघर्ष कर रहे लड़ाकों को हथियारों और दूसरी मदद दी है.
तालिबान ने पंजशीर को चारों ओर से घेर कर उसकी सप्लाई लाइन काट दी थी, जिसके बाद ताजिकिस्तान पहला ऐसा देश है, जो पंजशीर की मदद कर रहा है. इस मदद के पीछे बड़ी वजह ये है कि पंजशीर में ताजिक बहुसंख्यक ही तालिबान से संघर्ष कर रहे हैं. कुछ देर पहले हमें एक जानकारी ये मिली कि अमरुल्ला सालेह पूरी तरह सुरक्षित हैं और वो पंजशीर के ऊंचे पहाड़ी इलाकों से तालिबान पर हमला कर रहे हैं.