NCP: अजित पवार के बाद अब छगन भुजबल ने की दावेदारी, कहा- `OBC नेता के हाथ में हो महाराष्ट्र एनसीपी की कमान`
Maharashtra NCP Unit: एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने एक दिन पहले यह कहा था कि वह महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद छोड़ना चाहते हैं और वह पार्टी संगठन में काम करने के इच्छुक हैं.
Maharashtra Politics: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने गुरुवार को कहा कि पार्टी की महाराष्ट्र इकाई का अध्यक्ष अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) समुदाय से होना चाहिए और साथ ही इस पद के लिए उन्होंने अपनी दावेदारी भी पेश की. दरअसल, एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने एक दिन पहले यह कहा था कि वह महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद छोड़ना चाहते हैं और वह पार्टी संगठन में काम करने के इच्छुक हैं.
भुजबल ने कहा, ‘मैं प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भी काम करना चाहूंगा. पार्टी में सुनील तटकरे, जीतेंद्र अव्हाड़, धनंजय मुंडे जैसे कई ओबीसी नेता हैं. पार्टी की संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया शुरू हो गई है और हर कोई राज्य इकाई का प्रमुख बनने की इच्छा व्यक्त कर सकता है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. महाराष्ट्र की आबादी में ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी 54 फीसदी है और अगर राज्य प्रमुख ओबीसी हो तो पार्टी उन्हें करीब ला सकती है. ’
अजित पवार ने बुधवार को एनीसपी नेतृत्व से उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त करने और पार्टी संगठन में कोई भूमिका सौंपने की अपील की. उन्होंने मुंबई में आयोजित एनसीपी के 24वें स्थापना दिवस कार्यक्रम में यह मांग की, जिसमें उनके चाचा शरद पवार और पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए.
भुजबल और पवार का पुराना पंगा
बता दें दोनों नेताओं के बीच खींचतान काफी पुरानी है. 1999 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार बनने पर विधायकों के बीच मतदान कराना पड़ा था कि दोनों में कौन उप मुख्यमंत्री बनेगा. तब भुजबल का पलड़ा भारी निकला. कभी भुजबल की आवाज पार्टी में गूंजा करती थी हालांकि अब ऐसा नहीं है. ढाई साल जेल बिताने के बाद वह जब से बाहर आए हैं तब से नासिक की राजनीति में ही ज्यादा सक्रिय दिखे हैं.
पहली बार प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए हो रही है इतनी मारा मारी
यह पहली बार है जब एनसीपी में प्रदेशाध्यक्ष पद पाने के लिए नेता बहुत इच्छुकृ दिख रहे हैं. पार्टी में इससे पहले ऐसा देखने को नहीं मिला है. पार्टी नेताओं ने इस पद तुलना में महाराष्ट्र के मंत्री पद को अधिक अहमियत दी है. इस पद पर बैठे अधिकांश नेताओं ने इस शर्त के साथ यह पद स्वीकार कि उनका मंत्री पद भी कायम रहे. दरअसल इस बार ऐसा माना जा रहा है कि अगले साल होने वाले लोकसभा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के लिए टिकट बंटवारे में प्रदेश अध्यक्ष की अहम भूमिका होगी.