इस सच के आगे साइंस भी फेल! भारत ने 3000 साल पहले ही कर दी थी सर्जरी की शुरुआत; अब AIIMS करना चाहता है रिसर्च
Maharshi Sushruta: एम्स अब सुश्रुत संहिता नामक किताब पर रिसर्च करना चाहता है वे दुनिया के पहले सर्जन हैं. अब इसी ऐतिहासिक तथ्य को रिसर्च के साथ साबित किया जाएगा. एम्स के डॉक्टरों ने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को ये प्रस्ताव भेजा है कि उन्हें महर्षि सुश्रुत के काम और आज की मेडिकल सर्जरी की दुनिया के संबंध को साबित करने वाली रिसर्च के लिए मंजूरी दी जाए.
Father of Surgery: चेहरे को सुंदर बनाने की कॉस्मेटिक सर्जरी हो, बच्चे का सिजेरियन सर्जरी से जन्म हो या मुश्किल से मुश्किल हालात में किसी के कट चुके अंग को वापस जोड़ना हो- आपको लगता होगा ये सब मेडिकल साइंस ने तरक्की के साथ सीखा है. लेकिन आज हम आपको बता दें कि भारत में एक ऐसी किताब मौजूद थी जिसमें एक महर्षि ने मुश्किल से मुश्किल ऑपरेशन को करने के तमाम तरीके बता दिए थे और उसी किताब को आधार बनाकर पूरे विश्व ने सर्जरी को सीखा.
कौन है दुनिया का पहला सर्जन?
इस किताब का नाम है सुश्रुत संहिता और दुनिया के पहले सर्जन हैं महर्षि सुश्रुत. अब इसी ऐतिहासिक तथ्य को रिसर्च के साथ साबित किया जाएगा. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के डॉक्टरों ने डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी को ये प्रस्ताव भेजा है कि उन्हें महर्षि सुश्रुत के काम और आज की मेडिकल सर्जरी की दुनिया के संबंध को साबित करने वाली रिसर्च के लिए मंजूरी दी जाए. ऐसा करने की सबसे बड़ी वजह है इतिहास को दुरुस्त करना. ग्रीस और अमेरिका जैसे देश अभी प्लास्टिक सर्जरी से लेकर मेडिकल साइंस की लगभग हर नई टेक्नोलॉजी को अपना बताकर दूसरों को सिखा रहे हैं. लेकिन भारत अब 600 ईसा पूर्व के एन्साइक्लोपीडिया और मेडिकल साइंस की सबसे मुश्किल टेक्निक के जनक से दुनिया को मिलवाना चाहता है.
ये थी दुनिया की पहली सर्जरी
दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी काशी में 3 हजार वर्ष पहले हुई थी. इतिहास में ये दर्ज है कि दुनिया की पहली प्लास्टिक सर्जरी आज से लगभग 3 हजार साल पहले काशी में की गई थी. जब महर्षि सुश्रुत के पास एक व्यक्ति कटी हुई नाक के साथ पहुंचा था. पहले सुश्रुत ने उस व्यक्ति को नशीला पदार्थ पिलाया - जिससे उसे दर्द ना हो. उसके माथे से त्वचा का हिस्सा लिया - पत्ते के जरिए उसकी नाक का आकार समझा और टांके लगाकर नाक बना दी और जोड़ दी.
ऐसे करते थे सर्जरी
सुश्रुत संहिता में ये भी दर्ज है कि सुश्रुत 125 अलग-अलग सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स का प्रयोग करते थे. चाकू, सुई, चिमटे जैसे अलग-अलग इंस्ट्रूमेंटस को वो उबालकर यूज करते थे. सुश्रुत संहिता के 184 चैप्टर हैं जिसमें 1120 बीमारियों के बारे में बताया गया है. साथ ही 700 मेडिसिन वाले पौधों का जिक्र है. 12 तरह के फ्रैक्चर और 7 डिस्लोकेशन यानी हड्डी का खिसकना समझाया गया है.
ऐसे बने सर्जरी के जनक
महर्षि सुश्रुत को 300 अलग-अलग तरह की सर्जरी आती थीं. जिसमें नाक और कान की सर्जरी मेन थी. आंखो की सर्जरी में उन्हे महारत थी. इसके अलावा सर्जरी से बच्चे का जन्म, एनेस्थिसिया यानी बेहोश करने की सही डोज का ज्ञान भी उन्हें खूब था. अपने शिष्यों को सिखाने के लिए महर्षि सुश्रुत फल, सब्जियों और मोम के पुतलों का प्रयोग करते थे. बाद में शवों पर उन्होंने खुद सर्जरी सीखी और फिर अपने स्टूडेंट्स को भी सिखाई.
क्यों पड़ी इस रिसर्च की जरूरत?
आप सोच रहे होंगे कि इस रिसर्च की जरूरत क्यों पड़ी. इसका जवाब अपने ही देश में दी जा रही गलत शिक्षा की किताबों में छिपा है. केरल स्टेट बोर्ड में क्लास 9th में सोशल साइंस की किताब में फादर ऑफ सर्जरी के तौर पर कुछ और ही पढ़ाया जा रहा है. इस किताब में एक अरब मुस्लिम अबू अल कासिम अल जहरावी के बारे में पढाया जा रहा है. जो मदीना में पैदा हुए थे. क्योंकि सुश्रुत का जन्म 800 ईसा पूर्व (BC) में हुआ था, जबकि अल जहरावी के जन्म का समय 936 AD का मदीना में बताया जाता है. पिछले वर्ष जनवरी के महीने में इस बात पर काफी बवाल भी हुआ था. लेकिन आज भी यही पढ़ाया जा रहा है.
दुनिया को ये सच बताने की जरूरत
हालांकि मॉर्डन मेडिकल साइंस के जानकार मानते हैं कि 400 साल पहले ही सर्जरी के बारे में दुनिया को पता लगा था. लेकिन सुश्रुत ने कई हजार साल पहले इस काम को करके दिखा दिया था. ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रॉयल ऑस्ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जंस में महर्षि सुश्रुत की मूर्ति लगी हुई है. महर्षि सुश्रुत की एक पेंटिंग एम्स के हाल ही में बने प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट में भी बनी है. 15 जुलाई को भारत में प्लास्टिक सर्जरी डे मनाया जाता है और इस मौके पर दुनिया को ये बताना बहुत जरूरी है कि दुनिया को प्लास्टिक सर्जरी सिखाने की शुरुआत भारत ने 3 हजार साल पहले कर दी थी.
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