Supreme Court Army Hospital: आर्मी हॉस्पिटल की लापरवाही के चलते वायुसेनाकर्मी HIV का शिकार हो गया. साल 2002 में  कॉर्पोरल के पद पर तैनात वायुसेनाकर्मी पाकिस्तान के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन पराक्रम का हिस्सा थे. तबीयत खराब होने के चलते उन्हें जम्मू-कश्मीर के एक आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. अस्पताल में उन्हें  1 यूनिट ब्लड चढ़ाया गया था. लेकिन यही ब्लड उनकी जिंदगी भर की मुश्किल का सबब बन गया. इसका अंदाजा उन्हें 12 साल बाद हुआ.


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सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम आदेश


12 साल बाद वे बीमार पड़े तो उन्हें पता चला कि वे एचआईवी संक्रमित हैं. इतने लंबे अंतराल के बाद ये साबित करना मुश्किल था कि आर्मी हॉस्पिटल में खून चढ़ाने के वक्त ही वे संक्रमित हुए. उन्होंने अस्पताल से अपने मेडिकल रिकॉर्ड इकट्ठा कर अदालती लड़ाई लड़ी. इसी बीच मई 2016 में उन्हें सेवा विस्तार न देते हुए कार्यमुक्त भी कर दिया गया. लेकिन  मंगलवार को दिए अहम आदेश में  सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें डेढ़ करोड़ का मुआवजा देने का निर्देश दिया है.


एयरफोर्स और आर्मी को जिम्मेदार ठहराया


कोर्ट ने अपने अहम फैसले में  कॉर्पोरल को हुई परेशानी के लिए इंडियन एयर फोर्स और इंडियन आर्मी दोनों को सामूहिक रूप से लापरवाही के लिए जिम्मेदार माना. कोर्ट ने इंडियन एयर फोर्स को 6 हफ्ते में इस वायुसेनाकर्मी को 1करोड़ 54 लाख 73 हज़ार रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही  कोर्ट ने एयरफोर्स से कहा है कि वो चाहे तो इसकी आधी रकम आर्मी से वसूल सकती है. कोर्ट ने विकलांग पेंशन से जुडी बकाया राशि को 6 हफ्ते में देने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इस केस में मुआवजे का आदेश दिया है, बल्कि सरकार और कोर्ट के लिए विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किए है.


NCDRC के फैसले को दी चुनौती


साल 2017 में  वायुसेनाकर्मी ने  मुआवजे के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग(NCDRC )का रुख किया था लेकिन NCDRC ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया. NCDRC का कहना था कि आर्मी हॉस्पिटल में रक्त चढ़ाते वक़्त हुई लापरवाही को साबित करने के लिए कोई एक्सपर्ट राय नहीं है. इसके बाद उन्होंने  सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने इससे पहले सुनवाई के दौरान सरकार को निर्देश दिया कि वो बेस अस्पताल में उनका समुचित इलाज सुनिश्चित करें.


सैनिकों की गरिमा सर्वोपरि-SC


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सैनिकों की गरिमा और उनकी भलाई सुनिश्चित करने पर जोर दिया. कोर्ट ने कहा कि लोग देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर, उत्साहित होकर सेना में भर्ती होते हैं. उन्हें पता होता है कि  ज़रूरत पड़ने पर उन्हें देश के लिए सर्वोच्च बलिदान भी देना हो सकता है. ऐसे में सैनिकों की गरिमा और उनकी भलाई सुनिश्चित करने की ज़रूरत है ताकि उनका मनोबल गिर न पाए. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जो प्रतिवादियों का रुख है, वो संक्रमण का शिकार हुए अधिकारी के प्रति सम्मान  या संवेदनशीलता वाला नहीं रहा है. अदालत को इस बात का अंदाजा है कि जो  परेशानी उन्होंने  झेली है , उसके मद्देनजर कोई भी मुआवजा इस जख्म को नहीं भर सकता, लेकिन कोर्ट का आदेश उन्हें थोड़ी राहत ज़रूर देगा.