IIT Guwahati ने ईजाद की तकनीक, हवा से बनाया पीने का पानी
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, गुवाहाटी (IIT Guwahati) ने एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे हवा से पीने का पानी बनाया जा सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक की प्रेरणा उन्हे कम बारिश वाले इलाकों में रहने वाले पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं से मिली है.
नई दिल्ली: एक तरफ जहां दुनिया के कई देश पीने के साफ पानी (Drinking Water) की कमी से जूझ रहे हैं, वहीं भारत में हवा से पीने का पानी बनाने की तकनीक ईजाद कर ली गई है. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, गुवाहाटी (IIT Guwahati) ने ऐसा पदार्थ तैयार किया है, जिसकी मदद से नम हवा में से पीने का पानी (Water) बनाया जा सकता है.
कैसे बनता है हवा से पानी
जर्नल ऑफ रॉयल सोसाइटी(Journal of Royal society) में छपी इस स्टडी के मुताबिक हवा से पानी बनाने के लिए हायड्रोफोबिसिटी (Hydrophobicity) तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. इस तकनीक में ऐसे पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है जो पानी को नही सोखते. जैसे कमल के फूल के पत्ते. इन पत्तों पर जब नम हवा पड़ती है तो सतह पर हवा और पानी के बीच एक परत बन जाती है, जिससे पानी (Water) आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है.
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A4 साइज पेपर और जैतून के तेल का इस्तेमाल
हवा से पानी (Water) बनाने के लिए आईआईटी गुवाहाटी (IIT-Guwahati) की टीम ने SLIPS (Slippery Liquid-Infused Porous Surfaces) तैयार किया. इसके लिए उन्होंने A4 साइज के प्रिंटर पेपर पर स्पंज की तरह के एक पॉलिमेरिक पदार्थ से छिड़काव किया. इसके बाद इस पर जैतून के तेल और लैब में तैयार किए गए ग्रीस की कोटिंग की गई. इस रिसर्च को करने वाले प्रोफेसर, डॉ उत्तम मन्ना (Dr Uttam Manna) का कहना है कि वो इस तकनीक से 4400±190 mg/cm2/h के कलैक्टिंग रेट पर पहुंच गए हैं.
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शोध के लिए की गई पौधों की नकल
IIT- Guwahti के इस शोध में रसायन(Chemistry) विभाग के ऐसोसिएट प्रोफेसर डॉ उत्तम मन्ना(Dr Uttam Manna) के साथ कौशिक माजी, अविजीत दास, और मनदीपा धर शामिल हैं. (IIT-Guwahati) द्वारा जारी किए गए स्टेटमेंट के मुताबिक दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वक्त गैर पारंपरिक तरीके से पानी (Water) को बचाने व इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं. दुनिया के कई इलाके ऐसे हैं जहां बेहद कम बारिश होती है. ऐसी जगहों पर पाए जाने वाले पेड़-पौधे और जीव जन्तु हवा से पानी निकालते हैं और इसे इकट्ठा करते हैं. इस शोध में भी इन्ही जीवों की नकल की गई है.
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