लखनऊ. अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव का चुनावी बिगुल बज चुका है. यूपी की सत्ता पर काबिज होने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) लगातार अपने साथियों का कुनबा बढ़ा रही है. जातीय समीकरण और दुरूस्त करने के लिए सपा लगातार अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन भी कर रही है. जानकारों की मानें तो सपा के सहयोगियों का दायरा जरूर बढ़ रहा है लेकिन इससे टिकट बांटने को लेकर चुनौती भी कम नहीं है. 


कई पार्टियों से हो चुका है सपा का गठबंधन


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

समाजवादी पार्टी का अभी तक करीब आधा दर्जन दलों से गठबंधन हो चुका है. जिनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश और राजभर समाज में धमक रखने वाली ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा और पश्चिमी यूपी में जाटों और अन्य कुछ जातियों में अपना प्रभाव रखने वाली पार्टी रालोद भी शामिल है. इसके अलावा महानदल, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और कृष्णा पटेल के अपना दल के साथ भी सपा का गठबंधन हो गया है. लेकिन किसको कितनी सीटें मिलनी है. अभी तक इसका खुलासा नहीं हो पाया है. बताया जा रहा है कि राजभर के संकल्प मोर्चा में शामिल दल भी कुछ सीटें चाह रहे हैं.


ये भी पढ़ें: ममता बनर्जी का 'कांग्रेस मुक्त विपक्ष' अभियान! राहुल गांधी को लेकर कही ये बात


सपा के लिए बढ़ेगी मुसीबत 


इसके साथ ही सपा मुखिया अखिलेश अपने चाचा शिवपाल को भी मिलाने की बात कर रहे हैं. चाचा भी अपने लोगों के लिए टिकट चाहेंगे. हाल में ही चन्द्रशेखर की भी सपा से तालमेल करने की चर्चा तेज हुई है. इसके अलावा दिल्ली की सत्तारूढ़ दल आम आदमी पार्टी भी आए दिन अखिलेश से मिलकर नए गठबंधन की बातों को परवान चढ़ा रही है. उधर पूरे देश में विपक्ष के विकल्प के रूप में अपने को देख रही मामता की पार्टी ने भी अखिलेश का सहयोग करने के संकेत दिए हैं. ऐसे में सभी दल सीटों की डिमांड करेंगे. उनके मुताबिक सीटें न मिलने पर सपा के लिए मुसीबत भी बढ़ेगी.


सीट शेयरिंग का फार्मूला नहीं हुआ है तय


सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सपा के सामने अभी दो चुनौतियां हैं. एक तो अपने लोगों को मनाए रखना. दूसरी गठबंधन के लोगों की महत्वकांक्षा को ध्यान में रखना है. हालांकि अभी पार्टी की ओर से कोई भी सीट शेयरिंग का फार्मूला तय नहीं किया गया है. लेकिन अगर जल्द इसका कोई ढंग से निर्णय नहीं हुआ तो निश्चिततौर पर मुसीबत खड़ी होगी. क्योंकि अभी तक जो जानकारी मिली है उसके अनुसार गठबंधन को 50-60 सीटें देने की बातें सामने आयी थीं. लेकिन अब गठबंधन में कई पार्टियां शामिल हो रही हैं. सभी राजनीतिक दल अपने -अपने लिए सीटें मांगेंगे. ऐसे में जो कार्यकर्ता पहले से तैयारी कर रहे हैं, उनका क्या होगा? अगर उनकी सीट गठबंधन को चली जाएगी तो वो बागी हो जाएंगे. अगर खुलकर बागवत न की तो भीतरघात की तो आशंका बनी ही रहेगी. ऐसे कई पेंच हैं, जिन पर अभी कुछ निर्णय नहीं हो सका है. अभी कई चुनौतियों से सपा का गुजरना बाकी है.


ये भी पढ़ें: सिख और मराठा नायकों का इतिहास की किताबों में बढ़ेगा कद, संसदीय समिति ने की सिफारिश


कई दलों से गठबंधन करने पर आती है समस्या


यूपी की राजनीति को कई दशकों से नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि जब भी कोई पार्टी बहुत ज्यादा दलों से गठबंधन करती है तो समस्या आती है. जब पार्टी गठबंधन करके अपनी जरूरत को बता देती है तो छोटी पार्टियां मुखर हो जाती हैं. वो सीट की ज्यादा डिमांड करने लगती है. सपा इस चुनाव में अपने को बड़े दावेदार के रूप में पेश कर रही है. ऐसे में इनके गठबंधन के साथी अपनी हैसियत से ज्यादा सीटों की मांग करेंगे. इससे पार्टी के लिए परेशानी बढ़ेगी.


(इनपुट- IANS)


LIVE TV