अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(AMU) के अल्पसंख्यक दर्ज पर सुप्रीम कोर्ट में जिरह चल रही है. जिरह इस विषय पर है कि इस यूनिवर्सिटी का स्टेट्स अल्पसंख्यक है या नहीं. अल्पसंख्यक दर्ज के पक्ष में याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर वकील राजीव धवन ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ वाली पीठ के सामने दलील पेश की. उन्होंने अपनी दलील के जरिए पीठ को बताया कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान क्यों है. हालांकि पीठ ने सवाल किया कि वो इस बात को तार्किक तरीके से बताएं कि एएमयू का स्टेट्स अल्पसंख्यक क्यों है. अदालत ने उनके सामने इस तथ्य को रखा कि जब गवर्निंग काउंसिल के 180 सदस्यों में सिर्फ 37 का संबंध मुस्लिम समाज से है तो आप उसे माइनॉरिटी कैसे कह सकते हैं. 


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राजीव धवन ने कही खास बात

जिरह के दौरान राजीव धवन ने मशहूर क्रिकेटर सुनील गावस्कर और विराट कोहली का जिक्र किया. अब उन्होंने ऐसा क्यों कहा उसे समझिए. राजीव धवन ने अपनी जिरह की शुरुआत करते हुए कहा कि जिस लीगल पिच पर वो इस विषय को उठा रहे हैं वो कुछ सुनील गावस्कर की बल्लेबाजी की तरह है ताकि हमारे दूसरे साथियों को स्थायित्व मिल सके. वो अपनी बात को तार्किक और दमदार तरीके से पीठ के सामने रख सकें. हालांकि उनके लिए जिरह करने की जो समय सीमा है उसे ध्यान में रखते हुए विराट कोहली की तरह बात रखनी होगी. और अब जब वो अपनी जिरह के अंतिम पड़ाव पर हैं तो वे विरोट कोहली की तरह अपने फर्ज को अंजाम दे रहे हैं. इस हल्के फुल्के अंदाज के बाद हम आपको बताएंगे कि सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और उनके बीच किस तरह से सवाल-जवाब हुए.


'एएमयू के गवर्निंग काउंसिल को देखिए'

सीजेआई ने धवन से कहा कि आप एएमयू के गवर्निंग काउंसिल को देखिए जिसे एएमयू यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत कोर्ट भी कहते हैं. अदालत ने पूछा कि अगर गैर मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रशासन को चलाएंगे तो क्या इससे मॉइनॉरिटी स्टेट्स पर फर्क पड़ेगा. इस सवाल के जवाब में राजीव धवन ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30(1) के मुताबिक भाषाई और धार्मिक आधार पर सभी अल्पसंख्यक समाज को अपने शैक्षणिक संस्थानों को बनाने और चलाने का अधिकार है. उन्होंने कहा कि सर सैय्यद अहमद ने मुहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की जो 1920 में एएमयू की शक्ल में आया. और उसके बाद प्रशासनिक अधिकार का मुद्दा उठा.


'180 में से सिर्फ 30 मुस्लिम'


धवन की दलील पर सीजेआई ने कहा कि गवर्निंग काउंसिल में 180 में से 37 मुस्लिम है. क्या इस वजह से यह कहना चाहिए कि एएमयू का प्रशासन सिर्फ अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित होना चाहिए. अनुच्छेद 30 में एडमिनिस्ट्रेशन शब्द पर ही अगर परीक्षण हो तो मल्टी मेंबर वाली कमेटी को एडमिनिस्ट्रेशन देना चाहिए जिसमें 180 में से सिर्फ 37 मुस्लिम समाज से हैं. 


धवन ने कहा कि हम सबको पता है कि अल्पसंख्यक समाज की जरूरतों को पूरी करने के लिए इसका गठन हुआ. मकसद भी अल्पसंख्यक समाज से जुड़े छात्रों की पढ़ाई लिखाई को बढ़ावा देना था. लिहाजा यह जरूरी नहीं है कि माइनॉरिटी स्टेट्स बरकरार रखने के लिए एएमयू प्रशासन में 100 फीसद भागीदारी अल्पसंख्यक समाज की हो. इस दलील पर अदालत ने कहा कि चिंता की बात यही है कि अल्पसंख्यक संस्थान के धार्मिक स्वरूप का निर्धारण करना है. जब प्रशासन में बहुमत अल्पसंख्यक समाज का नहीं है तो क्या आप इसे अल्पसंख्यकों द्वारा प्रशासित व्यवस्था मानेंगे.


'सर, एएमयू के गठन पर गौर कीजिए'

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा बड़ा सवाल यह है कि अगर किसी संस्थान का गठन अल्पसंख्यक समाज द्वारा होता है और उसके प्रशासन में उसकी भूमिका सीमित है तो क्या उसे अल्पसंख्यक संस्थान माना जा सकता है. क्या इस वजह से किसी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाए कि उसके प्रशासन में मॉइनॉरिटी से जुड़े हुए कुछ लोग हैं. अदालत के इस सवाल पर धवन ने कहा कि एएमयू का गठन जबसे हुए तबसे लेकर आज तक सभी वाइस चांसलर मुसलमान ही रहे. इस तरह से प्रशासन भी अल्पसंख्यकों के हाथ में ही रहा. इसके अलावा यह नेचर में भी इस्लामी है. सिर्फ प्रशासन में सरकार की कोई भूमिका और उस वजह से अल्पसंख्यक दर्जा खत्म नहीं होता. यह यूनिवर्सिटी मुस्लिमों द्वारा मुस्लिमों के शैक्षणिक विकास के लिए बनाई गई थी.