Hindu Marriage Kanyadaan Tradition: हिन्दू संस्कृति में कन्यादान सबसे बड़ा दान माना जाता है, लेकिन विवाह की इस रस्म पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ बेंच की एक हैरान करने देने वाली टिप्पणी सामने आई है. हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कन्यादान को ज़रूरी नहीं बताया है. कोर्ट के मुताबिक सप्तपदी यानी सात फेरे ही हिंदू विवाह का एक आवश्यक समारोह है. 


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केवल सात फेरे ही विवाह के लिए आवश्यक


हिंदू धर्म में विवाह सात जन्मों का सबसे पवित्र बंधन माना जाता है, जिसे पाणिग्रहण संस्कार कहते हैं. लेकिन हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंड पीठ ने एक ऐसी टिप्पणी की जो चर्चा का विषय बन गई. हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हिंदू शादियों के लिए कन्यादान जरूरी नहीं है.


अदालत ने कहा कि केवल सप्तपदी यानी सात फेरे ही हिंदू विवाह का एक आवश्यक समारोह है और हिंदू विवाह अधिनियम में शादी के लिए कन्यादान का प्रावधान नहीं है. 


गवाहों को नहीं बुलाया जा सकता


कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई के दौरान हिंदू विवाह अधिनियम की धारा सात का भी जिक्र किया. कोर्ट ने कहा कि कन्यादान का समारोह किया गया था या नहीं, ये मामले का फैसले के लिए जरूरी नहीं होगा और इस तथ्य को साबित करने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के तहत गवाहों को नहीं बुलाया जा सकता. 


'कन्यादान ज़रूरी नहीं', 'सप्तपदी कानूनी रूप से मान्य'


इलाहाबाद हाई कोर्ट की इस टिप्पणी पर धर्म गुरुओं ने आपत्ति जताई है. उनका कहना है, हमारी अनेक संहितायें हैं. ऋषियों की उस परंपरा में कन्या दान परम कन्या दान बताया गया है. स्वर्ण दान, चांदी दान अनेक दाम हैं भूमि दान अन्न दान, लेकिन कन्या दान बहुत प्रधान दान है और वो परंपरागत आज का नहीं है. हजारों साल से परंपरा हमारी हिंदू संस्कृति की उस अयोध्या भगवान राम की नगरी में ये तो बहुत ही पुनीत कार्य है. 


महाराज जनक ने भी किया था कन्यादान


धर्म गुरुओं का कहना है कि शास्त्रों को सामने रखकर और उनमें जो बातें कही और लिखी गई हैं उनके अनुसार कन्यादान एक महत्वपूर्ण दान है. एक पिता अपनी बेटी का कन्यादान करता है वो आज से नहीं है. महाराज जनक ने अपनी बेटी किशोरी जी का दान किया. भगवान श्रीराम के हाथ में किशोरी जी का हाथ रखकर कहा कि ये मेरी कन्या मैं इसका आपको दान करता हूं. 


दरअसल, हिंदू धर्म में विवाह के दौरान बहुत सी रस्में निभाई जाती हैं जिनकी अपनी अलग मान्यता है. ऐसी मान्यता है कि जब तक सभी रस्में पूरी नहीं हो जातीं तब तक कन्या और वर को पति-पत्नी का अधिकार प्राप्त नहीं होता है. इन सभी रस्मों में कन्यादान की रस्म काफी महत्वपूर्ण होती है. विवाह में वर को भगवान विष्णु और वधु को मां लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है.


कन्यादान करने वाले माने जाते हैं भाग्यशाली


मान्यताओं के मुताबिक विष्णु रूपी वर विवाह के समय कन्या के पिता को ये वचन देता है  कि वो उम्र भर उनकी बेटी को खुश रखेगा और उस पर कभी भी कोई संकट नहीं आने देगा. हिंदू धर्म में कन्या दान को महादान माना गया है. ऐसे में जिन माता - पिता को कन्यादान का मौका प्राप्त होता है, वो काफी सौभाग्यशाली माने जाते हैं. 


मान्यता के मुताबिक दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था. ब्रह्मांड के 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्रियां कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था. इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो. ऐसा माना जाता है कि तभी से कन्यादान की ये परंपरा चली आ रही है.