नई दिल्ली: अमेरिका की टाइम मैगजीन ने आज दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट प्रकाशित की है. इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम तो है, लेकिन इसमें शाहीन बाग में गैर कानूनी धरने पर बैठने वाली बिलकिस बानो का नाम भी है. टाइम मैगजीन ने बिलकिस बानो का नाम क्यों शामिल किया. इससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये जानना है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम क्यों लिखा गया है.


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टाइम मैगजीन के संपादक कार्ल विक ने नरेंद्र मोदी के बारे में इस लेख में कहा है, "लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष चुनाव होना ही काफी नहीं है. क्योंकि इससे सिर्फ यह पता चलता है कि किसे अधिक वोट मिला है. भारत की 130 करोड़ लोगों की आबादी में ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध और जैन धर्मों के लोग भी रहते हैं. भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है और अब तक के अधिकतर प्रधानमंत्री इसी धर्म के मानने वाले रहे हैं. नरेंद्र मोदी ऐसे शासन कर रहे हैं जैसे और कोई उनके लिए मायने ही नहीं रखता. मुस्लिम समुदाय नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी के निशाने पर रहा है."



टाइम मैगजीन का एजेंडा
टाइम मैगजीन का ये लेख पश्चिमी मीडिया के भारत विरोधी एजेंडे का एक और सबूत है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. हमारे यहां हर पांच साल में चुनाव होते हैं जिनके जरिए देश की संसद चुनी जाती है जो कानून बनाने का काम करती है. इसी संसद ने नागरिकता संशोधन कानून को पास किया था. लेकिन इस कानून को लेकर अफवाहें और फेक न्यूज फैलाई गईं कि इस कानून से मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी.



इसका नतीजा शाहीन बाग के आंदोलन के रूप में सामने आया. जिसके बाद पूरी योजना के साथ दिल्ली में दंगे कराए गए. उन दंगों की जांच के बाद जो चार्जशीट दाखिल की गई है उसमें बताया गया है कि कैसे इनके पीछे एक गहरी साजिश रची गई थी.


लेकिन टाइम मैगजीन ने आज भारत की पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया और सरकार चुनने वाले करोड़ों लोगों को अनदेखी कर दी और उन 500 लोगों को महत्व दे दिया जो शाहीनबाग में गैर कानूनी धरने पर बैठे थे. आज हम इसके पीछे टाइम मैगजीन के एजेंडे के बारे में आपको बताएंगे.


इससे पहले वर्ष 2012 में छपे टाइम के कवर पेज पर लिखा गया था- Modi Means Business यानी मोदी का मतलब व्यापार. लेकिन उसके नीचे लिखा गया- But Can He Lead India?


दरअसल,  यह एक तरीका होता है लोगों के मन में संदेह पैदा करने का. इस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उनके प्रधानमंत्री बनने की चर्चाएं हो रही थीं. टाइम मैगजीन ने ऐसा करके प्रधानमंत्री बनने की नरेंद्र मोदी की योग्यता पर एक तरह से प्रश्न चिन्ह लगाने की कोशिश की.


मोदी सरकार के पहला साल पूरा होने के मौके पर छपा कवर
फिर वर्ष 2015 में भी टाइम मैगजीन के कवर पेज पर नरेंद्र मोदी नजर आए. ये मोदी सरकार के पहला साल पूरा होने के मौके पर छपा कवर था. इसमें लिखा गया- Why Modi Matters... यानी मोदी इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं? लेकिन इसके नीचे एक सवाल पूछा गया कि Can He Deliver? यानी क्या वो अच्छा काम कर पाएंगे? मैगजीन के संपादकों ने प्रधानमंत्री बनने के एक साल बाद लोगों के मन में फिर से एक संदेह पैदा करने की कोशिश की. 12 साल तक गुजरात के सफल मुख्यमंत्री रहने और भारी बहुमत से जीतने के बाद भी नरेंद्र मोदी के लिए यह सवाल पूछा गया कि क्या वो काम करने लायक हैं?


अमेरिका के इतिहास में आज तक कितने गैर-ईसाई राष्ट्रपति?
वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान टाइम मैगजीन का कवर पेज फिर नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ सामने आया. इसमें उन्हें India's Divider in Chief लिखा गया यानी मोदी ने भारत को बांट दिया. कवर पेज पर ही छोटे अक्षरों में नीचे लिखा गया- Modi The Reformer यानी मोदी एक सुधारक. यानी टाइम मैगजीन न तो मोदी को इग्नोर कर पा रही है और न ही उनके बारे में कोई ढंग की बात ही लिखती है.


अब टाइम मैगजीन के ताजा अंक में छपे लेख की बात करते हैं जिसमें यह कहा जा रहा है कि लोकतंत्र में चुनाव जीतना ही काफी नहीं है और भारत में ज्यादातर प्रधानमंत्री हिंदू ही क्यों बने?


टाइम मैगजीन से यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि उसके देश अमेरिका के 200 साल के इतिहास में आज तक कितने गैर-ईसाई राष्ट्रपति बने? इसका जवाब है एक भी नहीं. गैर-ईसाई तो छोड़ दीजिए अमेरिका में आजतक एक भी ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं बना जो खुद को Atheist या नास्तिक कहता हो.


पश्चिमी मीडिया के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भारत के बहुत सारे पत्रकार हैं जो टाइम मैगजीन और ऐसे पश्चिमी अखबारों में लिखने को ही अपनी उपलब्धि मानते हैं और उनके साथ मिलकर भारत को बदनाम करने वाले लेख लिखते हैं. उन्हें भारतीय होने पर गर्व नहीं है लेकिन वो अपने बायोडाटा में बहुत गर्व से लिखते हैं कि वो इन पश्चिमी पत्रिकाओं और अखबारों में Columnist हैं और अक्सर पश्चिमी मीडिया के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होते हैं.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर अपमानजनक टिप्पणियों का ये सिलसिला पुराना है.


टाइम मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर जो कुछ लिखा है उसके पीछे भारत विरोधी सोच छिपी हुई है. इस बात को समझने के लिए आपको टाइम मैगजीन के इसी अंक में छपे एक और भारतीय के बारे में जानना चाहिए. दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शाहीन बाग के धरने में बैठने वाली बिलकीस नाम की बुजुर्ग महिला को भी शामिल किया है.


बिलकीस बानो को पब्लिसिटी
बिलकीस बानो को मीडिया का एक वर्ग उन्हें खूब पब्लिसिटी दिया करता था. उन्हें आंदोलन का चेहरा बना दिया गया था जबकि वो आंदोलन नागरिकता कानून के विरोध में था. जिसे भारत की चुनी हुई संसद ने बनाया था. उस कानून से न तो बिलकीस बानो की नागरिकता जाने वाली थी न ही शाहीन बाग के उस आंदोलन में बैठे किसी भी व्यक्ति की नागरिकता पर कोई असर पड़ने वाला था. शाहीन बाग आंदोलन का परिणाम दिल्ली दंगों के रूप में सामने आया था क्योंकि, शाहीन बाग में ही दिल्ली दंगों की योजना बनी थी. दंगों की जांच में यह बात सामने आ रही है कि उसके पीछे टुकड़े-टुकड़े गैंग और पीएफआई जैसी कट्टरपंथी संस्थाओं का हाथ था. बिलकीस बानो को दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल करके टाइम मैगजीन ने भारत की संवैधानिक प्रक्रिया और संसद को नीचा दिखाने की कोशिश की है.



​पश्चिमी ​मीडिया का भारत विरोधी चेहरा
अब हम आपको पश्चिमी मीडिया के भारत विरोधी चेहरे के कुछ और उदाहरण बताते हैं.


-अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने सितंबर 2014 में एक कार्टून छापा था. इसमें भारत के मंगलयान मिशन का मजाक उड़ाया गया था. हालांकि भारत दुनिया का पहला देश है जिसने पहली ही कोशिश में मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक अपना सैटेलाइट पहुंचाया.


-इसी तरह वर्ष 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के समय वॉशिंगटन पोस्ट अखबार ने भारतीय सेना की कार्रवाई पर शक किया था. उन्होंने एक लेख लिखकर इस हवाई हमले के सबूत मांगे थे.


-ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने भारत में लॉकडाउन के लिए Modi's Brutal Lockdown शब्द का प्रयोग किया था. जबकि ब्रिटेन, अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों में भी ऐसा ही लॉकडाउन लागू किया गया था. हालांकि वहां के लॉकडाउन के लिए अखबार ने कोई तीखी टिप्पणी नहीं की थी.


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