ICMR Research on Antibiotics: भारत में अगर समय रहते कदम ना उठाए गए तो एंटीबायोटिक दवाओं (Antibiotic medicines) का काम ना करना महामारी बन सकता है. आईसीएमआर (ICMR) की हाल में जारी की गई रिसर्च के मुताबिक भारत में कई अस्पतालों (Hospitals) में आईसीयू (ICU) में भर्ती गंभीर मरीजों पर कार्बापेनम ग्रुप की दवाएं काम नहीं कर रही हैं. कार्बापेनम एंटीबायोटिक दवाएं गंभीर निमोनिया और सेप्सिस यानी खून में फैल चुके इंफेक्शन को कंट्रोल करने में काम आती हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

भारत के ज्यादातर अस्पतालों के आईसीयू में डॉक्टर (Doctor) आए दिन इस परेशानी से जूझ रहे हैं. सर्जरी वाले मरीज हों या निमोनिया (Pneumoniae) और दूसरे बैक्टीरियल इंफेक्शन (Bacterial Infection) के गंभीर मरीज – उन्हें बचाने के लिए एंटीबायोटिक दवाएं काम में आती हैं जो इंफेक्शन को रोक सकती हैं. लेकिन भारत में बिना जरुरत एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल का नतीजा ये हुआ है कि अब ये दवाएं असर ही नहीं कर रही. 


यहां ये बताना भी जरुरी है कि अस्पतालों के अंदर भी बैक्टीरिया और इंफेक्शन की भरमार होती है. ऐसे में जो मरीज लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहते हैं उन्हें अस्पताल से ही गंभीर बैक्टीरियल इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा रहता है – ऐसे खतरनाक और ताकतवर बैक्टीरिया जिन पर कोई एंटीबायोटिक काम नहीं करती – उन्हें सुपरबग्स कहा जाता है. 


बीमारी ठीक होने पर भी बना रहेगा ये खतरा
1 जनवरी 2021 से दिसंबर 2021 के बीच किए गए डाटा एनालिसिस के आधार पर ICMR की लीड रिसर्चर डॉ कामिनी वालिया का कहना है कि खतरा इस बात का है कि हमारे पास जितनी भी एंटीबायोटिक दवाएं हैं उनमें से कोई भी कुछ गंभीर इंफेक्शन पर काम नहीं करेगी. इसका मतलब ये हुआ कि कई मरीज बेमौत मारे जाएंगे. वो जिस बीमारी के लिए भर्ती हुए हो सकता है वो बीमारी तो ठीक हो जाए, लेकिन इंफेक्शन उन्हें मार डाले.


भारत के अस्पतालों से इकट्ठा किए गए इस डाटा में 6 पैथोजन यानी बैक्टीरिया ऐसे पाए गए जिन पर कोई दवा काम नहीं कर रही है.  2016 में E Coli से बैक्टीरिया का इलाज करने वाली एंटीबायोटिक (Imipenem) इमीपेनम से रेजिस्टेंस 14%थी जो 2021 में बढ़कर 36%हो गई है. ये बैक्टीरिया बहुत पाया जाता है.    


 क्लैबसेला न्यूमोनिया एक बड़ी मुसीबत
दूसरी बड़ी मुसीबत है (Klebsiella pneumonia) क्लैबसेला न्यूमोनिया – ये दूसरा कॉमन बैक्टीरियल इंफेक्शन है जो गंभीर मरीजों में पाया जाता है. 2016 में इस इंफेक्शन के 65% केस ठीक हो जाते थे – जबकि 2021 में केवल 45% मामलों में ही इस इंफेक्शन पर कोई दवा काम कर रही है.


स्टडी में शामिल 88% मरीज ऐसे थे जिन पर कोई भी ब्रॉड स्पैक्ट्रम एंटीबायोटिक ने काम नहीं किया. ब्रॉड स्पैक्ट्रम यानी वो दवाएं जो मोटे तौर पर कई इंफेक्शन का इलाज करने में काम आती है. हर एंटीबायोटिक दवा के केस में रेजिस्टेंस 5 से 10% बढ़ा है.  



ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर