Delhi High Court: जेल में बंद अरविंद केजरीवाल को दिल्ली हाईकोर्ट से उस समय झटका लगा जब उनकी अर्जी पर सुनवाई हुई. हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते समय कई बातें कहीं हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने लिखित आदेश में कहा है कि ED की ओर  पेश  सबूत  और  गोवा में आप के एक उम्मीदवार के 8 मार्च को दर्ज बयान के मद्देनजर पहली नज़र में ये लगता है कि अरविंद केजरीवाल मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दो भूमिकाओं में शामिल रहे हैं. 


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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि ईडी के आरोपों के आधार पर लगता है कि पहली भूमिका में बकारी नीति के निर्धारण और रिश्वत की मांग में वे शामिल हैं. जबकि पार्टी के संयोजक के तौर पर 45 करोड़ की रकम गोवा में चुनाव प्रचार में खर्च करने में लगे हैं, ये दूसरी भूमिका है.


प्रथम दृष्टया ये साफ हो रहा है कि..
हाईकोर्ट ने कहा कि अगर साउथ लॉबी से रिश्वत की रकम का हिस्सा गोवा में चुनाव प्रचार में खर्च हो गया हो तो ऐसी सूरत में proceed of crime (अपराध से अर्जित आय) की बरामदगी न हो पाना कोई  बहुत ज़्यादा अहमियत नहीं रखता. जब प्रथम दृष्टया ये साफ हो रहा है कि रिश्वत की रकम का इस्तेमाल 2022 में ही गोवा में चुनाव प्रचार में हो गया, ऐसे में 2024 में   कोई रिकवरी हो पाई है या नहीं, ये तभी साफ हो पायेगा , जब ED चार्जशीट दाखिल करेगी.


मनु सिंघवी के बयान पर भी हैरानी..
कोर्ट ने केजरीवाल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी के इस बयान पर भी हैरानी जाहिर की जिसमे उन्होंने सरकारी गवाहो को दगा देने वाले जयचंद करार दिया था. कोर्ट ने कहा कि इस दलील तो ये संदेश जाता है कि  केजरीवाल और गवाह एक ही प्लान(साजिश) का हिस्सा थे, जैसा कि ED का दावा भी है. हालांकि कोर्ट ने कहा कि वो इस बयान की तह में नहीं जाना चाहता.


गिरफ्तारी गैरकानूनी नहीं कही जा सकती
6 महीने तक समन की अवहेलना करना उनकी गिरफ्तारी की वजह बना. ED के पास  उन्हें रिमांड में लेने के अलावा कोई  दूसरा विकल्प नहीं बचा था. केजरीवाल को पहला समन कोई  चुनाव की घोषणा होने के बाद जारी नहीं किया था, बल्कि वो अक्टूबर 2023 में ही भेजा गया था. ये केजरीवाल का फैसला था कि वो जाँच में शामिल नहीं हुए. इसके बजाए उन्होंने समन का जवाब भेजना सही समझा.


कोर्ट की नज़र में सब बराबर
हाईकोर्ट ने बयान में कहा कि आम आदमी को पूछताछ के लिए बोलना हो या फिर किसी राज्य के मुख्यमंत्री को. इसके लिए कोई स्पेशल प्रोटोकॉल नहीं है, जिसका पालन किसी जांच एजेंसी को करना हो. कोर्ट की नज़र में सब बराबर है, फिर आमदमी हो यामुख्यमंत्री या सत्तारूढ़ कोई दूसरा इंसान. मुख्यमंत्री होने के नाते केजरीवाल को कोर्ट कोई स्पेशल प्रिविलेज नहीं दे सकता है.