गुवाहाटी: असम के तेज़पुर जेल में बंद एक रोहिंग्या परिवार के पांच सदस्यों को गुरुवार को म्यांमार वापस भेज दिया गया. अधिकारियों ने तीन महीने पहले भी सात अन्य लोगों को पड़ोसी देश वापस भेजा था. पुलिस ने यहां यह जानकारी दी.


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असम के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सीमा) भास्कर ज्योति महंत ने बताया कि इन लोगों को मणिपुर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर म्यांमार अधिकारियों को सौंप दिया गया. इन रोहिंग्याओं को  बिना यात्रा दस्तावेज के पांच साल पहले पकड़ा गया था और इन पर विदेशी कानून का उल्लंघन करने का मामला दर्ज किया गया था. यह जेल की सजा पूरी करने के बाद तेजपुर हिरासत केंद्र में बंद थे.



बता दें कि फिलहाल असम के अलग -अलग जिला के डिटेंशन कैंपों में कुल 20 रोहिंग्या हैं, जिनके प्रत्यार्पण की प्रस्तुति भी सजा पूरी करने के बाद कर दी जाएगी. बिना दस्तावेज के मणिपुर के मोरे से यह रोहिंग्या असम में प्रवेश करते हैं. चूंकि पहले से ही संदिग्ध बांग्लादेशियों के रहने के मामले आलोक में हैं इसलिए रोहिंग्याओं को केवल उनके बोली से ही पहचाना जाता है.



फिलहाल असम बॉर्डर पुलिस के पास अवैध रूप से असम में घुसे और रोहिंग्याओं के कोई तथ्य नहीं हैं कारण ये असम को केवल भारत के अन्य हिस्सों में जाने का मार्ग के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. भारत सरकार के तथ्य अनुसार फिलहाल भारत में 40 हज़ार रोहिंग्या अवैध रूप से रह रहे हैं. असम बॉर्डर पुलिस बिना कोताही बरते संदिग्ध रोहिंग्याओं की खोजबीन जगह-जगह पर कर रही है.



म्यांमार देश में बर्मी लोगों के बोलचाल और संस्कृति से बिल्कुल भिन्न रोहिंग्या मुसलमान होते हैं. ये बांग्लादेश से म्यांमार के रखाइन प्रान्त में बहुतायत में बताये जाते हैं. रख़ाइन में कई लोगों का मानना है कि बढ़ती आबादी की वजह से एक दिन वो उनके ज़मीन को हथिया लेंगे.  म्यांमार के समाज और सेना को रोहिंग्याओं से अपनी संस्कृति और राजनैतिक क्षमता जाने का खतरा का चिंता सताता हैं. इसलिए इन्हें देश की सीमा से बहार खदेड़ देने की कोशिश की जाती है. इस लिए इन पर अमानवीय जुल्मो सितम भी ढहाये जाते हैं.


म्यांमार में बोली जाने वाली 135 आधिकारिक जातीय समूहों में रोहिंग्या मुसलमानों को गिना नहीं जाता है. म्यांमार के राष्ट्रवादी समूहों ने इस अवधारणा को प्रोत्साहित किया कि रोहिंग्या मुसलमान एक ख़तरा हैं, क्योंकि मुस्लिम पुरुषों की चार पत्नियां और कई बच्चे हो सकते हैं.


बता दें कि असम पहले से ही अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों के संकट से जूझ रहा है. ऐसे में रोहिंग्या संकट चाहे शरणार्थी के तौर पर ही हो, असम के लोग इन्हें शरण देने के पक्ष में नहीं हैं.