Atique Case Sting Operation: अतीक अहमद (Atique Ahmed) और उसके भाई अशरफ (Ashraf) की हत्या को लेकर हर दिन, नई-नई खबरें, नए-नए दावे सामने आ रहे हैं. इनमें से ज्यादातर खबरें और दावे खुफिया सूत्रों के आधार पर दिखाए जाते हैं. लेकिन आज हम ज़ी न्यूज़ पर खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी नहीं, बल्कि पुलिस की वर्दी वाले चश्मदीदों से मिला जानकारी आपके दिखाने वाले हैं. ये वो पुलिसवाले हैं, जिनका सुरक्षा घेरा तोड़कर आए 3 लड़कों ने दोनों माफिया भाइयों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी. प्रयागराज के ऐसे पुलिसवकर्मी ज़ी न्यूज़ के कैमरे पर हैं. इसके साथ ही जिस धूमनगंज थाना क्षेत्र में अतीक और अशरफ मारे गए, वहां के तत्कालीन एसीपी ने भी हमसे बात की और अतीक मर्डर से जुड़े एक अहम राज को बेपर्दा कर दिया. अपनी पड़ताल के दौरान ज़ी मीडिया की टीम ने पुलिसकर्मियों को अपनी पहचान बताई, उनसे कहा कि हम ZEENEWS.COM से हैं यानी ज़ी मीडिया के लिए काम करते हैं.


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'खाकी का कबूलनामा' 


सबसे पहले हम आपको दिखाते हैं उस चश्मदीद पुलिसवाले का कबूलनामा जो वारदात के वक्त अतीक अहमद और अशरफ के बिल्कुल करीब खड़ा था. जिस धूमनगंज में अतीक और अशरफ का मर्डर हुआ. ज़ी मीडिया संवाददाता ने इस इलाके के SHO यानी थाना प्रभारी राजेश कुमार मौर्य से बात की. SHO राजेश कुमार ने इस वारदात को लेकर क्या दावे किए वो आपको बताते हैं. धूमनगंज थाने के SHO राजेश कुमार ने बड़ा दावा किया कि शूटर्स का टारगेट सिर्फ अतीक-अशरफ थे. हत्या के तीनों आरोपी पेशेवर शूटर हैं. अतीक-अशरफ की सुरक्षा में कोई कमी नहीं थी. लोगों की जान बचाने के लिए जवाबी फायरिंग नहीं की.


पुलिसकर्मियों का बड़ा खुलासा


18 अप्रैल को ज़ी मीडिया की खुफिया टीम प्रयागराज में अतीक मर्डर से जुड़े उन सवालों की पड़ताल कर रही थी जिनके जवाब ना पुलिस दे पा रही थी ना सरकार कि आखिर 21 पुलिसवालों के सुरक्षा घेरे को भेदकर अतीक जैसे माफिया की हत्या कैसे कर दी गई वो भी प्रयागराज में, जहां 3 दशकों से उसका दबदबा कायम था. इस मर्डर को लेकर यूपी पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में क्यों है? 15 अप्रैल की रात जब अतीक और उसके भाई को गोलियों से भूना जा रहा था तब क्या पुलिसवाले सिर्फ अपनी जान बचाने की कोशिश में जुटे थे या फिर पुलिस ने हमलावरों के एनकाउंटर की तैयारी कर ली थी, सच आखिर है क्या ये जानने के लिए ज़ी मीडिया की टीम प्रयागराज के धूमनगंज थाने में पहुंची, जहां साबरमती जेल से लाए जाने के बाद उससे रात भर पूछताछ हुई थी और इसी थाना क्षेत्र में उसका मर्डर भी हुआ. हमारी मुलाकात धूमनगंज थाने के SHO राजेश कुमार मौर्य से हुई जो वारदात की रात अतीक के पास ही खड़े थे.



रिपोर्टर- सर, उस दिन थे आप वहां पर?
SHO- हां
रिपोर्टर- सर, हल्का सा बताइए ना उस दिन के बारे में क्या-क्या हुआ था?
SHO- किस दिन के बारे में?
रिपोर्टर-  कैसे क्या हुआ मेडिकल कराने के दौरान?
SHO- मेडिकल के लिए हम लोग गए वहां पर. हम 21 लोग थे.
रिपोर्टर- 21 लोग थे?
SHO- 21 लोग थे। दो पार्टी थीं जिसमें से एक पार्टी कवर के लिए थी. जो पीछे से कवर करेगी. मुख्य द्वार से 10 कदम आगे चले होंगे, मुश्किल से 10 कदम. 10 कदम से कम ही रहा होगा. मीडिया के लोगों ने अतीक को देखा और असद के बारे के बारे में पूछने लगे. जनाजे के बारे में कि आप नहीं गए. वो बोलना चाह ही रहा था कि 3 तीन लड़के मीडिया की आईडी लगाए हुए थे. मीडिया के बीच से ही फायर कर दिया. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता फायर कर दिया.
रिपोर्टर- कुछ भनक ही नहीं लगा, कुछ समझ नहीं आया?
SHO- अब देखिए, हम दो पुलिसवाले हैं, इनके बीच वर्दी पहनकर दो लोग आ जाएं तो?
रिपोर्टर-  कुछ नहीं मालूम चलेगा.


धूमनगंज के एसएचओ के मुताबिक, अतीक और अशरफ पर हुई फायरिंग का उन्हें कोई अंदाजा नहीं था. अतीक मर्डर में पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. लिहाजा हमारे लिए ये पूछना जरूरी था कि आखिर क्यों यूपी पुलिस अपनी कस्टडी में अतीक-अशरफ को क्यों नहीं बचा पाई?



SHO- आप खुद एज्यूम कीजिए. आप लोग हैं और दोनों भाई हैं, हथकड़ी लगी है एक के दाएं हाथ में, एक के बाएं में. सामने से रस्सी लिए बगलवाला चल रहा है. मैं इधर से चल रहा हूं. बाहर चलना है सामने जहां ये पैसेज आता है, जहां से निकलना है. मीडिया ने इधर से लॉक किया हुआ है. उसी बीच 3 आदमी पिस्तौल लेकर 3 तरफ से.
रिपोर्टर- अच्छा तीन तरफ से आए?
SHO- (सिर हां में हिलाते हुए) आप कैसे रोक पाओगे उसे?
रिपोर्टर - आप समझ ही नहीं पाए कि वो फायर कर देगा.
SHO- जितने देर में समझोगे काम हो जाएगा.
रिपोर्टर - वही हुआ भी 15-16 सेकेंड के अंदर ही हुआ.
SHO- 6 सेकेंड.
रिपोर्ट- 6 सेकंड.


ये मर्डर प्रयागराज पुलिस से लेकर पूरे देश को हैरान करने वाला था. मीडिया से लेकर खुद अतीक ने कई मौकों पर बताया था कि उसकी जान को खतरा है और पुलिस कस्टडी उसका एनकाउंटर हो सकता है. लेकिन पुलिस देखती रह गई और तीन हमलावरों ने अतीक का काम तमाम कर दिया.



रिपोर्टर- सर, आपका अनुभव क्या कहता है? ये तीनों लड़के जो अपराधी हैं कैसे हैं ये लोग, क्या ट्रेंड थे ये लोग?
SHO- हार्डकोर ट्रेंड थे. 25 लोगों के बीच में गोली मार देना और गोली बिल्कुल निशाने पर लगना.
रिपोर्टर-  और कहीं भी गोली दाएं-बाएं नहीं जाना.
SHO- वेल ट्रेंड.
रिपोर्टर- सर, उनका टारगेट पुलिसवाला नहीं था और ना ही मीडियावाला?
SHO- नहीं (सर हिलाते हुए) नौसीखिया होता तो इधर-उधर चला देता.


अतीक और अशरफ की हत्या के बाद पुलिस पर एक सवाल ये भी उठ रहा है कि योगी सरकार में जिस पुलिस की एनकाउंटर वाली पहचान बनी हो, उसने आखिर उन तीन हमलावरों पर गोलियां क्यों नहीं चलाईं.


SHO- हमारा एक भी जवान वहां फायर कर देता ना तो कई लोग मारे जाते.
रिपोर्टर- सबसे बड़ा आरोप तो यही लगता कि पुलिस ने ही मरवाया, पुलिस ने ही इसको भी मार दिया.
SHO- वो लोग मर जाते तो फर्क नहीं पड़ता है. हमारे लोग मरते तो फर्क पड़ता मीडिया के लोग मरते तो फर्क पड़ता.


प्रयागराज पुलिस को लगता है कि उसने हमलावरों पर गोली ना चलाकर बेहतर सूझ-बूझ का परिचय दिया. इस पुलिस ऑफिसर ने हमें ये भी बताया कि उन्हीं के नेतृत्व में अतीक अहमद को अहमदाबाद की साबरमती जेल से आखिरी बार प्रयागराज लाया गया था.


रिपोर्टर- जब साबरमती से लाया गया था अतीक को तो 2-3 आईपीएस भी गए थे. लाव-लश्कर भी गया था.
SHO- नहीं गया था.
रिपोर्टर- आप ही लेने गए थे सर.
SHO- इस बार जो अतीक आया, हम ही लेने गए थे.
रिपोर्टर- उसमें सबसे बड़े अधिकारी आप ही थे सर.
SHO- हां.
रिपोर्टर- पहली बार में 2-3 आईपीएस गए थे सर?
SHO- पीसीएस गए, सीओ रैंकिंग वाले थे.
रिपोर्टर- बताइए, किसी को पता ही नहीं है ये बात.


अतीक हत्याकांड की जांच कर रही SIT वारदात के वक्त मौजूद पुलिसकर्मियों के बयान दर्ज कर चुकी है. SIT हमारी इस रिपोर्ट को भी गौर से देखेगी ताकि वो समझ सके कि पुलिसवाले जो बात ज़ी मीडिया के खुफिया कैमरे पर बता रहे हैं, क्या वही बातें उन्होंने SIT के सामने भी कही हैं या फिर दोनों बयानों में फर्क है.


खाकी का कबूलनामा में अब दूसरे चश्मदीद पुलिसवाले का कबूलनामा जानिए. अब आपको जिस पुलिसकर्मी का बयान सुनाने जा रहे हैं वो भी 15 अप्रैल की रात अतीक और अशरफ के करीब मौजूद था. विवेक कुमार सिंह नामक पुलिस अधिकारी ने दावा किया है कि हमलावरों पर जवाबी कार्रवाई की तैयारी थी. वहां मौजूद 17 से 18 पुलिसवालों के पास हथियार थे.


राजरूपपुर चौकी प्रभारी विवेक कुमार सिंह पर भी माफिया ब्रदर्स की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी. लेकिन प्रयागराज के राजरूपपुर चौकी प्रभारी को लगता है अतीक और अशरफ मीडिया की वजह से मारे गए. उन्होंने कहा कि मीडिया की वजह से ही मारा गया ये क्लियर है. थोड़ा सा मीडिया ज्यादा ओवर रिएक्ट करती है और हम लोगों की मजबूरी है हम लोग ज्यादा उनसे कुछ कह नहीं सकते.


रिपोर्टर- तो सर मीडिया को एंट्री क्यों दी गई थी ऊपर से कुछ आदेश था मीडिया को एंट्री देनी है?
विवेक कुमार सिंह- नहीं-नहीं जहां लेकर निकले वहां घुसे रहते हैं. आप उनसे कुछ कहो तो गलत हो जाता है.


विवेक कुमार सिंह से हमने ये सवाल भी पूछा कि अतीक को मेडिकल के लिए लाए जाने के बाद जीप से उतरते हुए आखिरकार किसे इशारा किया था. विवेक कुमार सिंह ने कहा कि जब उतर रहे थे तो कोई होगा परिचित, यहां के लोकल पूर्व सांसद भी रहे हैं. उसमें किसी ने नमस्कार किया होगा. यानी पुलिस को यहां पर किसी भी साजिश की आशंका नजर नहीं आई. विवेक कुमार सिंह ने आगे कहा कि शूटर्स पूरी प्लानिंग के साथ आए थे. पुलिस को कुछ समझने का मौका नहीं मिला और मीडिया की वजह से शूटर्स ने अपना काम कर दिया.


विवेक कुमार सिंह ने आगे कहा कि मुश्किल से लेकर उतरे थे. हमें लगता है 5-7 कदम चले होंगे. गेट में घुसने वाले थे तब तक वो आकर घेर लेते हैं. उन्हीं में से वो तीन तरफ से घेर लिए. तीनों तरफ से फायर किए. मान लो तीन लोग हैं हम लोग. अगर एक आध मिस भी हो जाए तो मतलब वो पूरी प्लानिंग से थे और वो उन्हीं को टारगेट भी कर रहे थे. चाहते तो किसी को भी मार देते.


रिपोर्टर- जब फायरिंग हुई तो आप लोगों का क्या रिएक्शन था? क्या कर रहे थे? आप लोग मन में क्या चल रहा था?
विवेक कुमार सिंह- हम लोग पहले अपने आपको संभाले.
रिपोर्टर- आप लोगों ने पिस्टल निकाली?
विवेक कुमार सिंह- हां, पिस्टल निकालकर उन पर अटैक किया जाए तब तक (आवाज क्लियर नहीं)
रिपोर्टर- तो आपमें से किसी ने अपना सरकारी हथियार निकालने की कोशिश की थी?
विवेक कुमार सिंह- हां.
रिपोर्टर- आपने निकाला था?
विवेक कुमार सिंह- हां, लेकिन निकालता, पहले तो मारे गोली लेकिन आपको लगता है न पहले तो सरप्राइज हो गए. एक बार तो सोचा गया हो क्या गया? थोड़ा पीछे हटे. पिस्टल निकाले, तब तक जय श्रीराम जय श्रीराम.
रिपोर्टर- सर ये नारा लगाने का क्या मतलब हैं क्या भांप पाए?
विवेक कुमार सिंह- इनका क्या मोटिव था ये तो.


विवेक कुमार सिंह ने जी न्यूज़ पर एक और बड़ा खुलासा किया है. भले ही अतीक और अशरफ के दुश्मनों की लिस्ट काफी लंबी हो. लेकिन प्रयागराज पुलिस को लग रहा था 21 पुलिस वाले उनकी सुरक्षा के लिए काफी हैं.


रिपोर्टर- सर एक सवाल और भी किया जा रहा है इतना बड़ा अपराधी था इलाहाबाद शहर में आया था. उसको पता था दुश्मनी उसकी है कोई बड़ा अधिकारी क्यों नहीं था डीसीपी लेवल पर एसीपी लेवल पर?
विवेक कुमार सिंह- रूटीन का काम था कोई ऐसा नहीं.
रिपोर्टर- रूटीन में सर लेकिन अतीक अहमद था?
विवेक कुमार सिंह-  21 आदमी मय हथियार कम थे क्या?
विवेक कुमार सिंह- हमारे दो लड़कों को तो गोली लग गई.
रिपोर्टर- बड़े से बड़े हमले के लिए तैयार थे वो हमला नहीं था घुसपैठ ही थी?
विवेक कुमार सिंह- वो बताएं ना, कहता था मीडिया से कि आप लोगों की वजह से मैं बच गया या गाड़ी पलटेगी, मीडिया की वजह से चला भी गया.
रिपोर्टर- अगर सामने से हमला होता तो आप लोग निपट ही लेते.
विवेक कुमार सिंह- अगर गेट न घेरे होते तो अंदर ले जाते.


सब इंस्पेक्टर विवेक कुमार सिंह के खुलासे बताते हैं कि अतीक और अशरफ को लेकर प्रयागराज पुलिस का ओवर कान्फिडेंस भी मा​फिया ब्रदर्स की जान पर भारी पड़ गया. जिस वक्त अतीक-अशरफ को कॉल्विन अस्पताल ले जाया गया था उनके आस-पास 21 पुलिसवाले मौजूद थे, उन्हीं 21 में शामिल एक और चश्मदीद पुलिसवाले से ज़ी मीडिया की टीम ने बात की. पुलिस अधिकारी सुभाष सिंह ने दावा किया कि अतीक और अशरफ की हत्या के बाद वहां पर भीड़ के इकट्ठा होने की आशंका थी. अगर भीड़ वहां जुटती तो पुलिस पर हमला हो सकता था और शूटर की हत्या भी हो सकती थी.


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