आजम खान किसी परिचय के मोहताज नहीं. जब सरकार में रहे तो ताल ठोक कर काम किया.  विरोध में रहे तो सत्ताधारी दलों की जबरदस्त मुखालफत की. यह बात अलग है कि अदालत की नजर में वो इस समय दोषी हैं और जेल में बंद हैं. भारतीय राजनीति की यह खासियत रही है कि हर एक नेता को जितनी चिंता उसके अपने वर्तमान की रही उससे अधिक चिंता भविष्य की रही. अगर बात आजम खान की करें तो उनके खिलाफ अस्सी से अधिक मुकदमे दर्ज हैं. उन मुकदमों मे एक मामला उनके बेटे अब्दुल्ला आजम से जुड़ा हुआ था. मामला रामपुर के स्वार सीट से चुनाव का था. अब्दुल्ला आजम पर लगा कि उन्होंने अपनी जन्मतिथि वाले कागजातों से छेड़छाड़ की जिसमें उनकी मदद उनके पिता आजम खान और मां तंजीन फातिमा ने किया था. इन तीनों को सात साल की सजा सुनाई गई है और सलाखों के पीछे हैं. इन सबके बीच यहां चर्चा होगी जिस विरासत को बचाए रखने के लिए आजम खान ने कानून से इतर जाकर कोशिश की उसका क्या होगा.


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रामपुर की अदालत से सात साल का फैसला सुनने के बाद वो पुलिस कस्टडी में अदालत से बाहर निकले. अदालत के बाहर मीडिया का जमावड़ा था और हर एक का सिर्फ यहीं सवाल कि आजम जी क्या कहेंगे, 75 की उम्र वाले आजम खान के चेहरे पर तनाव था. चश्मे के पीछे आंखों में लाचारगी के भाव भी. ठहरी हुई आवाज में जवाब बस इतना कि यह तो फैसला है इंसाफ कहां. दरअसल जब वो फैसले और इंसाफ की बात कर रहे थे तो उसके पीछे वजह यह है कि अपील का रास्ता खुला हुआ है लेकिन इन सबके बीच आजम खान परिवार के राजनीतिक भविष्य पर चर्चा करेंगे.