ये लीजिए.. बंटेंगे तो कटेंगे पर योगी के डिप्टी CM ही बंट गए, आखिर क्या कह रहे बीजेपी के केशव?
Keshav Maurya: एक तरह से देखा जाए तो यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सार्वजनिक तौर पर योगी के इस नारे से किनारा कर लिया है. मौर्य का कहना है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे `एक हैं तो सेफ हैं` का समर्थन करते हैं.
Batenge Toh Katenge: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ने एक नारा क्या दिया.. पूरी राजनीति इसी के इर्द-गिर्द घूमने लगी है. योगी ने कहा था कि 'बंटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे'. उन्होंने नारा तो दे दिया लेकिन बी इस नारे मन राजनीतिक घमासान भी मचा हुआ है. खुद बीजेपी में भी कई नेता इससे असहज हैं. महाराष्ट्र और झारखंड के आगामी चुनावों से पहले पार्टी के कई नेता इस नारे से असहमति जताते नजर आ रहे हैं. इसी कड़ी में अब उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हो गए हैं. उन्होंने इस पर कुछ ऐसा कह दिया कि राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा होने लगी है.
योगी के नारे से किनारा कर लिया
असल में एक तरह से देखा जाए तो यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सार्वजनिक तौर पर योगी के इस नारे से किनारा कर लिया है. मौर्य का कहना है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे 'एक हैं तो सेफ हैं' का समर्थन करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह नारा किसी खास संदर्भ में दिया होगा, लेकिन वह इस पर टिप्पणी नहीं करेंगे. मौर्य के इस बयान से एक बार फिर योगी के साथ उनकी सहमति सामने आई है हालांकि उन्होंने खुलकर इस पर कुछ नहीं कहा है.
महाराष्ट्र में भी नारे से असहमति
चर्चा का विषय यह भी है कि योगी के इस नारे को लेकर विरोधाभास केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है. महाराष्ट्र में भी डिप्टी सीएम अजित पवार ने इस नारे से असहमति जताई है. अजित पवार ने साफ तौर पर कहा कि 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारा महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि वहां की सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थिति उत्तर भारत से अलग है. इसके अलावा, बीजेपी की वरिष्ठ नेता पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण ने भी इस नारे को समर्थन देने से इनकार किया है.
नारे के खिलाफ आवाजें उठ रही
उधर संघ परिवार ने पहले ही 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारे को स्वीकार्यता दी थी, लेकिन अब बीजेपी के अंदर ही इस नारे के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं. यह स्थिति पार्टी के अंदर योगी की कार्यशैली के बढ़ते विरोध को भी दर्शाती है, खासकर तब जब आगामी चुनाव में एकता का संदेश देना जरूरी माना जा रहा है. सवाल यह भी उठता है कि क्या पार्टी के नेता योगी आदित्यनाथ की छवि और उनके नेतृत्व की दिशा से संतुष्ट नहीं हैं, या फिर यह केवल क्षेत्रीय राजनीति की मांग के अनुसार लिया गया निर्णय है.
एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि देखना होगा कि क्या योगी आदित्यनाथ का यह नारा चुनाव में पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा, या फिर चुनौती खड़ी करेगा? यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन फिलहाल पार्टी के अंदर फिलहाल विरोध के बुलबुले दिखाई देने लगे हैं.