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नई दिल्ली: आज सबसे पहले आपसे एक सवाल, गणतंत्र दिवस के उत्सव पर आप भारतीय सेना के बैंड द्वारा Scotland की एक धुन सुनना पसन्द करेंगे या भारत में बनी धुन सुनना पसन्द करेंगे. आपकी Choice को और आसान बना देते हैं. एक विकल्प है, Scotland में लिखा गया एक भजन, जिसके बोल हैं, Abide With Me और दूसरा विकल्प है, लता मंगेशकर द्वारा गाया, ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी.


आप कौन से गाने सुनना चाहेंगे?


इस बार Beating Retreat पर केन्द्र सरकार ने इस Scottish भजन को हटा कर, इस भारतीय गाने की धुन को शामिल कर लिया है. इसके बाद से ही इस फैसले की आलोचना हो रही है और इस पर राजनीति भी होने लगी है. आज आप खुद तय कीजिए कि भारत के लोग अपने गणतंत्र दिवस पर अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के गाने सुनना चाहेंगे या उन गानों को सुनना चाहेंगे, जिन्हें अंग्रेजों ने हम पर थोपा था. 


एक और उदाहरण देखिए,  Beating Retreat में एक और धुन बजाई जाती है, जिसके बोल हैं.. 'Kilt is My Delight'.. Kilt.. Scotland की एक पारम्परिक Skirt है, जिसे वहां पुरुष सैनिक भी पहनते हैं. लेकिन हमारे देश में किसी ने Kilt पहनी है? क्या हमारे देश का कोई भी व्यक्ति Kilt को पहन कर मिलने वाली खुशी का अनुमान लगा सकता है या इसका अहसास कर सकता है? लेकिन फिर भी ये गाना वर्षों से Beating Retreat में बज रहा है. दुर्भाग्य से आज भी हमारे देश में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो समझते हैं कि यही हमारा इतिहास है और ये धुनें हमारे गणतंत्र दिवस पर बजती रहनी चाहिए. अंग्रेज भी बिल्कुल ऐसा ही चाहते थे. वो चाहते थे कि भारत के लोग सदियों तक ना सिर्फ शरीर से, बल्कि मन से भी उनके गुलाम बन रहें. हर चीज में उन्हें अपने से बेहतर मानें. 


Abide With Me है क्या?


सबसे पहले आप ये समझिए कि Abide With Me है क्या? ये ईसाई धर्म का एक लोकप्रिय भजन या प्रार्थना है. हिन्दी में Abide With Me का अर्थ होता है, मेरे साथ रहो. इसकी रचना, स्कॉटलैंड के मशहूर कवि हेनरी फ्रांसिज लाइट ने आज से 202 वर्ष पहले, 1820 में की थी, जब वो अपने एक मित्र से मिल कर आए थे, जो अंतिम सांसें ले रहा था और इस भजन में इसी दुख को वर्णन किया गया है.


एक लाइन में इसका सार ये है कि, जीवन में, मृत्यु में, हे प्रभु तुम मेरे साथ रहो. 'लाइट', कवि होने के साथ, चर्च के उस पादरी वर्ग में भी शामिल थे, जिनके लिखे धार्मिक लेखों और कविताओं को धर्म के विश्वास और अध्यात्म का मानक माना गया है.


अंग्रेजों की परछाई से बाहर नहीं आ पाया देश


वैसे तो इस भजन की रचना वर्ष 1820 में ही कर ली थी, लेकिन इसका पहली बार प्रकाशन वर्ष 1847 में हुआ, जब लाइट की मृत्यु हुई थी. वर्ष 1861 में पहली बार ब्रिटेन के मशहूर संगीतकार, विलियन हेनरी मोंक ने 'Abide With Me' को धुन दी. यानी इन शब्दों को संगीत के साथ सजाया. धीरे-धीरे Abide With Me, ईसाई बहुसंख्यक देशों में लोकप्रिय हो गया.


लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे कि, अंग्रेजों से आजादी के बाद जब 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र बना, तब भी हमारा देश अंग्रेजों की परछाई से बाहर नहीं निकल पाया. माना जाता है कि गणतंत्र दिवस समारोह में पहली बार Abide With Me धुन को वर्ष 1950 में शामिल किया गया. इसके पीछे केवल एक ही मकसद था और वो ये कि, ये भजन महात्मा गांधी की पसंदीदा धुनों में से एक थी.


गांधीजी ने इस धुन पर कुछ नहीं कहा


आज हमने कई पुस्तकों की मदद ली और कई ऐतिहासिक दस्तावेजों को भी पढ़ा, ताकि हम ये जान सकें कि क्या महात्मा गांधी ने Abide With Me के संबंध में कभी कुछ कहा था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस बारे में हमें कोई ठोस जानकारी नहीं मिली.


हालांकि कुछ पुराने लेखों में इस बात का जिक्र है कि, महात्मा गांधी ने ये धुन पहली बार अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में सुनी थी. उस समय मैसूर Palace Band ने इस धुन को बजाया था और इसी के बाद से ये आश्रम में बजाए जाने वाले भजनों में शामिल हो गई. महात्मा गांधी की हत्या के बाद, गणतंत्र दिवस समारोह में इस धुन को उन्हें स्मरण करने के लिए बजाया जाने लगा.


क्यों लेना पड़ा विदेशी धुन का सहारा?


यहां दो और बातें आपको पता होनी चाहिए. पहली बात, इस धुन की मूल जड़ में अंग्रेजों का विचार और उनकी संस्कृति है. दूसरी बात, इसे गणतंत्र दिवस के समापन समारोह में इसीलिए बजाया जाता रहा है, ताकि इसके बहाने महात्मा गांधी को भी याद किया जा सके. यहां ये समझना भी जरूरी है कि महात्मा गांधी को याद करने के लिए हमें किसी विदेशी धुन का सहारा क्यों लेना पड़ा? ये परम्परा कई दशकों तक क्यों चलती रही?


दूसरी बात, साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी दो और धुन सुनते थे. इनमें एक थी, वैष्णव जन तो तेने कहिये और दूसरी थी रघुपति राघव राजा राम. लेकिन 1950 में इन धुनों को नहीं बजाया गया. वैष्णव जन तो तेने कहिये..इस धुन को 2018 की Beating Retreat Ceremony में पहली बार बजाया गया. अब सवाल है कि क्या महात्मा गांधी को स्मरण करने के लिए ये धुन सही है या Abide With Me. लेकिन हमारे देश के नेताओं ने विदेशी धुन को ही चुना.


अंग्रेजों को देख अपनाई परम्परा


Beating Retreat Ceremony, 29 जनवरी को होती है, और इसके एक दिन बाद महात्मा गांधी की पुण्यतिथि होती है. 30 जनवरी 1948 को ही महात्मा गांधी की हत्या की गई थी. इसलिए विपक्ष और हमारे देश का एक खास वर्ग इसे महात्मा गांधी का अपमान बता रहा है. लेकिन यहां कुछ बातें आपको याद रखनी चाहिए. गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत महात्मा गांधी की हत्या के दो साल बाद हुई थी. Beating Retreat Ceremony इसी का हिस्सा है. यानी महात्मा गांधी ने जीवित रहते हुए कभी ये नहीं कहा कि, Abide With Me को देश के गणतंत्र समारोह का हिस्सा बनाना चाहिए.


दूसरी बात, Beating Retreat Ceremony, भारत का गौरव तो है, लेकिन ये परम्परा भी हमारे देश ने अंग्रेजों को देख कर अपनाई. माना जाता है कि वर्ष 1694 में इंग्लैंड के शासक, William The Third ने युद्ध के बाद अपने सैनिकों के लौटने पर ड्रम बजा कर उनका स्वागत करने के लिए कहा था. यहीं से Beating Retreat Ceremony की शुरुआत हुई. हालांकि शुरुआत में इसे Watch Setting कहा जाता था, जो सूर्य अस्त होने पर युद्ध विराम की घोषणा का एक प्रतीक था. भारत के गणतंत्र दिवस समारोह पर होने वाली Beating Retreat Ceremony का मूल विचार भी यही है.


इसमें बैंड मास्टर सूर्य अस्त होने पर राष्ट्रपति के नजदीक जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते हैं. इस तरह गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो जाता है. अब सोचिए, आज तक भारत एक ऐसी धुन के साथ, गणतंत्र होने का जश्न मना रहा था, जो अंग्रेजों की संस्कृति और ईसाई धर्म को समर्पित है. हमारा देश के कुछ नेताओं ने महात्मा गांधी के नाम पर इसे भारत की पहचान और इतिहास से जोड़ दिया.


सेरेमनी में हो चुके हैं कई बदलाव


एक कड़वा सच ये भी है कि Beating Retreat Ceremony, हमेशा की तरह इतनी भव्य नहीं होती थी. वर्ष 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने Queen Elizabeth Two और Prince Philip को गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि, आमंत्रित किया था. इस Ceremony का शानदार आयोजन हुआ था. उस समय मेजर GA Roberts, Militart Music Band के Advisor थे. उन्हें नेहरू सरकार द्वारा इस Ceremony को भव्य और शानदार बनाने के लिए कहा गया था. तब इस समारोह का समापन 27 जनवरी को ही कर दिया गया था, क्योंकि Queen Elizabeth Two, 29 जनवरी तक रुक नहीं सकती थी. यानी जिन अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक राज किया, उन्हीं अंग्रेजों को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में खुश करने के लिए नेहरू बेताब थे. इस समारोह में भी Abide With Me धुन बजाई गई थी, जिसे सुन कर Prince Philip आत्ममुगध हो गए थे.


ये धुन वर्ष 1950 से इस समारोह में बजाई जाती रही है. हालांकि वर्ष 2020 में भी इसे सूची से हटा दिया गया था, लेकिन विवाद के बाद इसे शामिल भी कर लिया गया था. Abide With Me, एक मशहूर सैन्य धुन है, लेकिन भारत के संदर्भ में इसकी पहुंच बहुत कम लोगों तक है. ये धुन भारत की संस्कृति और उसकी पहचान से ज्यादा अंग्रेजी मानसिकता को दर्शाती है.


पहले भी हटाई गईं विदेशी धुनें


जबकि इसकी जगह, 'ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी', इस धुन को अपनाया गया है, जिससे हमारे देश के लोग ज्यादा जुड़ाव रखते हैं. 1962 के भारत-चीन युद्ध के शहीद सैनिकों की याद में ये गीत कवि प्रदीप ने लिखा था. जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी. ये गीत जब 1963 में पहली बार लता मंगेशकर ने गाया था, तब नेहरू भी उस कार्यक्रम में मौजूद थे. इस बार Beating Retreat Ceremony के लिए 26 धुनों की लिस्ट बनाई गई है. इस समारोह का समापन, 'सारे जहां से अच्छा' धुन से होगा. विपक्ष मोदी सरकार पर इतिहास को बदलने और इस समारोह का अपमान करने का आरोप लगा रहा है, जबकि सच ये है कि इससे पहले भी इस समारोह में बदलाव होते रहे हैं.


वर्ष 2012 में पहली बार इस समारोह में शहनाई का इस्तेमाल किया गया था. वर्ष 2014 में दो नई धुन बजाई गई थीं. इनमें एक थी 'रघुपति राघव राजा राम' और दूसरी थी, जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा. इसके अलावा 2014 से पहले भी इस समारोह से विदेशी धुनों को हटाया जाता रहा है. 2012 में सात विदेशी धुनों को इसमें शामिल किया गया था. जबकि 2013 में पांच ही विदेशी धुनों को जगह मिली थी. यानी दो विदेशों धुनों को उस दौरान कार्यक्रम से हटा दिया गया था.


भारत से इस धुन का क्या संबंध?


इसी तरह 2014 में UPA सरकार के दौरान दो नई विदेशी धुनें बजाई गई थीं. इनमें एक थी, 'Kilt is My Delight.' स्कॉटलैंड में पुरुषों द्वारा पहनी जाने वाली पारम्परिक Skirt को Kilt कहते हैं. सोचिए, इस धुन का भारत के गणतंत्र दिवस समारोह से क्या संबंध था? लेकिन फिर भी इसे शामिल किया गया.


2011 में एक धुन बजाई गई थी, जिसका शीर्षक है, High Road to Linton. ये धुन Scotland की पहाड़ियों में जाने वाली एक सड़क की बात करती है. अब सोचिए, भारत के जो लोग हैं और भारत के जो सैनिक हैं, वो भारत के तो किसी रोड का नाम जानते होंगे, लेकिन उनका Scotland की सड़क से क्या संबंध?


वैचारिक गुलाम भी बनाना चाहते थे अंग्रेज


इस पूरी Beating Retreat Ceremony का मकसद होता है, हमारे देश के लोग एक गणतंत्र के तौर पर हमारे देश की संस्कृति और उसकी विरासत पर गर्व करें. लेकिन अगर इसमें ज्यादातर धुनें Scotland की पहाड़ियों और वहां की पारम्परिक वेशभूषा के बारे में बताएंगी तो क्या एक आम भारतीय, अपने देश की संस्कृति पर गर्व करेगा? लेकिन ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी.. ये एक ऐसी धुन है, जो भारत के लोगों में देशभक्ति का भाव जगाती है. ये धुन भारत के शहीद सैनिकों को समर्पित है.


आज जब आजादी के लगभग 75 वर्षों के बाद गणतंत्र दिवस समारोह में Scottish धुन की जगह, भारतीय धुन को जगह दी जाती है तो इसका विरोध होता है. इस विरोध के पीछे कारण ये है कि भारत को भले 1947 में अंग्रेज़ों से आजादी मिल गई थी. लेकिन हमारा देश आज भी अंग्रेजी मानसिकता का गुलाम है. अंग्रेज बहुत पहले ही ये बात समझ गए थे कि अगर उन्हें गुलाम भारत पर अपना प्रभाव लम्बे समय तक रखना है तो उन्हें राजनीतिक और आर्थिक गुलामी के अलावा, लोगों को वैचारिक रूप से भी गुलाम बनाना होगा.


खुद को श्रेष्ठ मानते थे अंग्रेज


इस गुलामी का मूल सिद्धांत ये था कि अंग्रेज हमसे Superior हैं और भारत के लोग Inferior हैं. यानी अंग्रेज इस देश के लोगों से हर चीज में बेहतर हैं. अंग्रेज ये धारणा बनाना चाहते हैं कि वो भाषा में भारत के लोगों से बेहतर हैं, संस्कृति में बेहतर हैं और उनकी शिक्षा प्रणाली और सिद्धांत भी इस देश के लोगों से ज्यादा उच्च और शक्तिशाली हैं.


अंग्रेजों की इस नीति का ही असर था कि गुलामी के समय बहुत से पढ़े लिखे और विद्वान भारतीयों को ये लगने लगा कि आधुनिकता का मतलब ही है, अंग्रेजों के नक्शे कदम पर चलना और उन्हें खुद से बेहतर मानना. इसका एक उदाहरण हैं, बंगाल के महान समाज सुधारक, राजा राम मोहन रॉय.


शिक्षा प्रणाली थोपने का काम


राजा राम मोहन रॉय ने महिलाओं के उत्थान के लिए काफी क्रान्तिकारी फैसले लिए. लेकिन वो भी अंग्रेजों को हर चीज में Superior मानने वाली मानसिकता से प्रभावित हो गए थे. वर्ष 1823 में East India Company ने कलकत्ता में एक संस्कृत कॉलेज को आर्थिक मदद देने का फैसला किया था. लेकिन राजा राम मोहन रॉय ने इसका विरोध किया और तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल को एक चिट्ठी लिखी. 


इसमें वो लिखते हैं कि, संस्कृत की पढ़ाई से ये देश हमेशा अंधकार में ही रहेगा. अगर ब्रिटिश सरकार ये चाहती है कि भारत के लोगों का उत्थान हो तो उन्हें संस्कृत भाषा के बजाय, लोगों को अंग्रेजी भाषा और आधुनिक विज्ञान सिखाना चाहिए. यानी राजा राम मोहन रॉय को लगता था कि संस्कृत भाषा, अंग्रेजी भाषा के मुकाबले जटिल और पिछड़ी हुई भाषा है. इससे भारत के लोगों का कल्याण नहीं होने वाला. जबकि अंग्रेजी भाषा बहुत सरल भाषा है और ये विज्ञान की भाषा है.


राजा राम मोहन रॉय अपनी इस चिट्ठी से कलकत्ता के संस्कृति कॉलेज को मिलने वाली आर्थिक मदद को तो नहीं रोक पाए. लेकिन उनकी चिट्ठी का नतीजा ये हुआ कि वर्ष 1835 में ब्रिटिश सरकार ने भारत की नई शिक्षा नीति का ऐलान कर दिया.


उस समय Lord Macaulay अंग्रेजी शिक्षा नीति को भारत लेकर आए और उन्होंने एक दस्तावेज तैयार किया, जिसे Macaulays Minute on Education कहते हैं. इसमें ये बताया गया कि भारत के लोगों को अंग्रेजी भाषा में शिक्षा देनी चाहिए और इस दस्तावेज में वो इसके पीछे तीन कारण बताते हैं.


संस्कृत से ज्यादा अंग्रेजी को महत्व


इसमें उन्होंने लिखा था कि संस्कृत और अरबी भाषा में जितना साहित्य और ज्ञान है, उससे ज्यादा ज्ञान इंग्लैड के एक पुस्तकालय की एक अलमारी में रखी पुस्तकों में है. उन्होंने ये भी लिखा कि संस्कृत और अरबी भाषा में ना तर्क है, ना इतिहास है और ना विज्ञान है, केवल काव्य संग्रह हैं, और इनका ज्यादा मोल नहीं है. जबकि अंग्रेजी भाषा और इसका इतिहास, इससे कहीं ज्यादा विशाल और आधुनिक है.


मैकाले उस समय के दस्तावेज में ये भी कहते हैं कि अंग्रेजों का मकसद भारत के लोगों को शिक्षित करना नहीं है. बल्कि वो एक ऐसे समूह को तैयार करना चाहते हैं, जिनका रंग और खून तो भारत का है लेकिन उनकी शिक्षा, उनके विचार और उनके सिद्धांत अंग्रेजों के जैसे हैं. यही लोग भविष्य में ब्रिटिश हुकूमत के लिए, भारत पर शासन करने के काम आएंगे और बाद में ऐसा हुआ भी.


1947 में जब भारत को आजादी मिली, उस समय भारत की साक्षरता दर 15 प्रतिशत थी और उसमें भी उच्च शिक्षा में 4 प्रतिशत से भी कम लोग थे. अंग्रेजों ने कभी भी भारत के लोगों को शिक्षित करने की कोशिश नहीं की. बल्कि उनका मकसद था, भारत को हमेशा के लिए अंग्रेजों का वैचारिक गुलाम बना लेना. जब आजादी के बाद भारत ने Abide With Me की धुन को अपनाया, वो इसी मानसिकता का हिस्सा थी. इसलिए आज जो लोग इस धुन को हटाने का विरोध कर रहे हैं, आप उन्हें मैकाले पुत्र भी कह सकते हैं. क्योंकि ये सभी लोग मैकाले की मानसिकता से ग्रस्त हैं.


भारत को पिछड़ा मानने वाली सोच


अंग्रेज ये बात अच्छी तरह जानते थे कि अगर वो अपनी संस्कृति और भाषा को भारत के लोगों पर जबरदस्ती थोपेंगे तो भारत के लोग कभी इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था तैयार की, जिसमें भारत के लोगों को ये लगने लगा कि अंग्रेजी, संस्कृति भाषा से बेहतर है. अंग्रेजी भाषा सीखने में उन्हीं का फायदा. यानी अंग्रेज भारत के लोगों को ये भरोसा दिलाने में सफल रहे कि भारत की संस्कृति में पिछड़ापन है और अंग्रेजों की संस्कृति में आधुनिकता है. ये धारणा बन्दूक की नोक पर नहीं, बल्कि विचारों की नोंक पर बनाई गई.


1850 तक अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा तो कर लिया था. लेकिन वो अपनी छवि को बदलना चाहते थे. वो चाहते थे कि भारत के लोग, उन्हें सैन्य शासक के तौर पर नहीं बल्कि, एक निष्पक्ष शासन व्यवस्था के रूप में अपनाए. वो ये दिखाना चाहते थे कि अंग्रेज उदार भी हैं, आधुनिक भी हैं, निष्पक्ष भी हैं और अगर वो भारत पर शासन करेंगे तो इसमें भारत के ही लोगों का फायदा है. यानी ये सबकुछ भारत के लोगों के DNA में आसानी से डाल दिया गया. उन्होंने भारत के लोगों को ये भी विश्वास दिलाने की कोशिश की कि, वो भारत को गुलाम आर्थिक फायदे के लिए नहीं बना रहे हैं. बल्कि इस देश के लोगों को सभ्य बनाने के लिए ऐसा कर रहे हैं.


जानवरों से की हिन्दुओं की तुलना


इसका सबसे अच्छा उदाहरण Rudyard Kipling की एक कविता में मिलता है, जो उन्होंने वर्ष 1899 में लिखी थी. इसमें वो अमेरिका के सैनिकों से आह्वान करते हैं कि उन्हें फिलीपींस पर कब्जा कर लेना चाहिए. क्योंकि ईश्वर ने गोरों को ये बोझ दिया है कि वो दूसरे लोगों को गुलाम बना कर सभ्य बनाएं. वो ये भी लिखते हैं कि, गोरों के गुलाम आधे बच्चे और आधे शैतान हैं. इसलिए इन्हें गुलाम बना कर सभ्य बनाना गोरे लोगों की नैतिक जिम्मेदारी है.


Rudyard Kipling का जन्म भारत में ही हुआ था. लेकिन वो अपनी कविता में भारत की गुलामी को नस्लीय आधार पर सही ठहराने की कोशिश करते हैं. गुलाम भारत में भारत के गवर्नर जनरल Lord Hastings ने 1823 में लिखा था कि हिन्दू उतना ही काम कर सकते हैं, जितना एक जानवर कर सकता है. उनकी बुद्धि, एक कुत्ते, हाथी और एक बन्दर से ज्यादा विकसित नहीं हुई है.


सेना के नाम पर जमकर सियासत


इस मानसिक गुलामी को आप एक और खबर से समझ सकते हैं. Beating Retreat Ceremony की Rehearsal के दौरान, भारतीय नौसेना के बैंड ने बॉलीवुड के एक गाने की धुन बजाई. ये गाना वर्ष 1971 में आई मशहूर फिल्म कारवां का है, जिसके बोल हैं Monica oh My Darling. सेना के बैंड बॉलीवुड फिल्मों के गानों की धुन बजाते रहे हैं. लेकिन हमारे देश के नेताओं ने इस वीडियो के बाद सेना पर ही राजनीति शुरू कर दी. 


इस वीडियो को मोदी सरकार के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से अपलोड किया गया है और इसमें लिखा है कि क्या नजारा है, ये वीडियो निश्चित रूप से आपके रोंगटे खड़े कर देगा. क्या आप हमारे साथ भव्य गणतंत्र दिवस समारोह को देखने के लिए तैयार हैं?


लेकिन विपक्षी नेताओं ने बिना कोई जानकारी जुटाए सेना की इस रिहर्सल का मजाक बना कर रख दिया. TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने लिखा कि सशस्त्र बलों पर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह हावी हो गए हैं. उन्होंने ये भी लिखा इस वीडियो ने उनका मन खराब कर दिया. सोचिए, वो कह रही हैं कि, सेना के इस वीडियो ने उनका मन खराब कर दिया.


लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने लिखा कि सेना पर थोपे जा रहे इस फूहड़पन पर रिटार्यड सैनिक, अफसर नाक भौं सिकोड़ कर रह जाते हैं, और वर्तमान जनरलों को संघी सरकार द्वारा 'नज़ीर' बना दिए जाने का डर है. इंडियन यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने ट्वीट किया कि इस गणतंत्र दिवस "मोनिका ओह माय डार्लिंग". अगले स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर कोई अनुमान? यानी वो यहां सेना का मजाक बना रहे हैं.


सच ये है कि सेना में इस तरह की धुन, केवल Warm Up के लिए बजाई जाती है. जवान Rehearsal के दौरान इधर-उधर नहीं जा सकते, इसलिए वो इस तरह एक जगह खड़े रह कर ऐसी धुन बजाते हैं, जिससे वो अपनी जगह पर खड़े रहकर Warm UP कर सकें.


नेताजी को तानाशाही से जोड़ने की साजिश


23 जनवरी को जब इंडिया गेट के सामने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया तो हमारे देश के एक खास वर्ग ने तो इसका विरोध किया ही. साथ ही पश्चिमी देशों के लोगों ने इस पर आपत्ति जताई. उन्होंने लिखा कि नेताजी सुभाष चंद्र, जर्मनी के तानाशाह हिटलर और इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के दोस्त थे. इसलिए उनका सम्मान करना, तानाशाही का सम्मान करना होगा.


ब्रिटेन ने दुनिया के 50 से ज्यादा देशों को अपना गुलाम बनाया. इन देशों में नरसंहार किए गए. लोगों की हत्याएं की गईं. पहले विश्व युद्ध में भारत के 13 लाख सैनिक, ब्रिटिश सरकार के लिए लड़े. दूसरे विश्व युद्ध में 20 लाख सैनिक अंग्रेजों के लिए दूसरे देशों के सेनाएं से लड़े. अंग्रेजों ने हमारे सैनिकों का इस्तेमाल इसलिए किया ताकि वो लोकतंत्र के नाम पर दुनिया में अपनी सत्ता को चला सकें. लेकिन ये पश्चिमी देश, आज नेताजी को तानाशाही से जोड़ते हैं.