बेगूसराय: करीब 4-5 दशक पहले लोग बेगूसराय के बरौनी को तेल शोधक नगरी के रूप में जानते थे लेकिन अब स्थितियां बदली हैं. अब सिर्फ प्रदेश में ही नहीं देश-विदेश के लोग भी बरौनी को खेल गांव के नाम से जानने लगे हैं. यह किसी और ने नहीं बल्कि यहां की बेटियों ने कर दिखाया है. आज यहां की बेटियां अपनी प्रतिभा के बल पर न सिर्फ परिवार और समाज का परिचय बदल दी है बल्कि गांव की पहचान भी खेल गांव के रूप में कर दी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बेगूसराय जिले के बरौनी जंक्शन से महज डेढ़ किलोमीटर दूर बरौनी फ्लैग गांव है. इस छोटे से गांव में यमुना भगत स्टेडियम है. इस स्टेडियम में न सिर्फ संतोष ट्रॉफी खेला जा चुका है बल्कि प्रशिक्षक के तौर पर बाईचुंग भूटिया जैसे खिलाड़ी भी यहां की बेटियों को प्रशिक्षण दे चुके हैं. पहले यह छोटा सा एक मैदान था जहां लड़कियां खेला करती थी लेकिन बाद में इसे एक स्टेडियम का रूप दे दिया गया. यहां की लड़कियां कबड्डी, वॉलीबॉल और फुटबॉल जैसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेलों में अपना परचम लहरा चुकी हैं और खेल की बदौलत केंद्र और राज्य सरकार की सेवा में नौकड़ी कर रही हैं.


पहले तो इन लड़कियों को समाज का ताना सुनना पड़ता था लेकिन अब वही समाज न सिर्फ इन्हें प्रोत्साहित कर रहा है बल्कि इनकी प्रतिभा को खेल गांव के रूप में पूरा गांव ही समर्पित कर दिया है. फुटबॉल के कोच संजीव कुमार सिंह उर्फ मुन्ना बताते हैं कि जब ये लड़कियां हाफ पैंट में घर से निकलती थी,तो समाज और गांव के लोगों का ताना सुनना परता था पर आज वो बच्चियां 40 से 50 नेशनल और 2 इंटरनेशनल खेल चुकी हैं. खेल के बदौलत आज वो नौकरी भी कर रही है.


हालांकि घर का काम काज संभालते हुए और समाज के तानों के बीच इनके लिए खेल मैदान तक पंहुचना बड़ा मुश्किल काम था. लोग कहते थे खेलने से क्या होगा लेकिन इनका जुनून तमाम बातों को दर किनार कर देता था. आज कौशिकी, सुरुचि और शिवानी भी अपना मंजिल पाने के लिये लगातार संघर्ष कर रही हैं. कौशिकी फुटबॉल में नेशनल खेल चुकी हैं और अब वो इंटरनेशनल खेल कर देश और गांव का नाम रौशन करना चाहती हैं.


इनपुट- राजीव कुमार


ये भी पढ़ें- Women's Day 2024: 15 साल की उम्र में बन गई बाल विवाह के विरोध का मुखर चेहरा, बचाई 30 जिंदगी