Bhagalpur Flood: कोसी ने बरपाया अपना कहर, रेलवे स्टेशन को पीड़ितों ने बनाया अपना आशियाना, एक समय पर मुश्किल से हो पाता भोजन
Bhagalpur Flood: भागलपुर में कोसी नदी अपना कहर बरपा रही है. हर साल कोसी दर्जनों लोगों को अपना शिकार बनाती है. बाढ़ की चपेट में आने से गांवों वाले पलायन करने को मजबूर है. उन्होंने कटरिया रेलवे स्टेशन को अपना आशियाना बना लिया है.
भागलपुर: Bhagalpur Flood: बिहार के भागलपुर जिला का नवगछिया अनुमंडल क्षेत्र जो हर वर्ष गंगा और कोसी की विनाश लीला की शिकार होती है. यहां गंगा और कोसी लोगों के लिए समृद्धि नहीं, बल्कि विनाश लीला कर उनके अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न कर देती है. हर वर्ष नवगछिया अनुमंडल के लगभग प्रखंडों के अधिकांश गांव की एक बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में आकर विस्थापन की मार झेलने को मजबूर हैं.
पलायन कर कटरिया रेलवे स्टेशन पर लिया शरण
यहां की अधिकांश आबादी बाढ़ की आहट के साथ ही अपने परिवारों और मवेशियों को लेकर ऊंचे स्थानों की तलाश में महीनों दो महीनों के लिए निकल पड़ते हैं. मजबूरी का आलम यह है कि बाढ़ प्रभावित परिवारों के सामने दर्जनों समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी हो जाती है. आज बात कोसी से प्रभावित गांव सधुवा चापर के लोगों की करेंगे जो बाढ़ के बाद पलायन कर कटरिया रेलवे स्टेशन पर शरण लिए हुए हैं.
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प्लेटफार्म को पीड़ितों ने बनाया अपना आशियाना
स्टेशन प्लेटफार्म को पीड़ितों ने अपना आशियाना बनाया है. मवेशियों के साथ पीड़ीत यहां एक तिरपाल और प्लास्टिक के सहारे जिंदगी जीने को विवश हैं. बिजली और शुद्ध पानी तो दूर की बात है यहां एक समय के भोजन पर भी आफत है. बाढ़ पीड़ितों के लिए बड़े-बड़े दावे और वादे यहां कागजों पर ही नजर आ रहे हैं. ये पीड़ित पिछले कई दिनों से यहाँ शरण लिए हुए है और अगले 1 महीने तक पूरी तरह जलस्तर घटने तक यहीं ठहरेंगे.
तीन से चार महीने जिंदगी जीने और भूख मिटाने की जद्दोजहद
हर साल तीन से चार महीने जिंदगी जीने और भूख मिटाने की जद्दोजहद होती है. पलायन की दास्तां ऐसी है कि हर वर्ष जब कोसी नदी विकराल रूप अख्तियार करती है. तब रंगरा प्रखंड के कई गांव जलमग्न होते हैं. ऐसे में बाढ़ पीड़ित जैसे तैसे ऊंचे स्थानों पर रहने को विवश होते हैं. इनके लिए राहत कार्य की बात ही छोड़ दीजिए, यहां सिर्फ राहत कार्य के नाम पर प्रशासन की तरफ से कागजी घोड़े दौराए जाते हैं. लिहाजा गंगा और कोसी का यह विनाश लीला यहां के लोगों की नियति बन गई है. कुल मिलाकर यहां लोजी प्राकृतिक आपदा में साथ साथ सरकारी उदासीनता की मार झेल रहे हैं.
इनपुट- अश्वनी कुमार, भागलपुर
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