पटनाः 21 बैठकों के पूरा होने के साथ ही बिहार विधानसभा का मॉनसून सत्र शुक्रवार को पूरा हो गया, जिसके बाद सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी. इस सत्र के विशेष बात ये रही कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सदन में केवल दो दिन आये, वो भी थोड़ी देर के लिए. नेता विहीन विपक्ष सरकार पर दबाव नहीं बना सका. हालांकि, सरकार के लिए ये सत्र काफी सुखद रहा, क्योंकि उसको विपक्षी सवालों पर नहीं घिरना पड़ा. ये बात सत्तापक्ष के नेता भी कह रहे हैं. 


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28 जून को विधानसभा का मॉनसून सत्र शुरू हुआ था, तो पहले दिन रालोसपा विधायक दल के जनता दल यू में विलय की सूचना सदन में सबसे पहले रखी गयी थी. इसके बाद नौ विधेयकों को सदन पटल पर रखा गया. पहले दिन दस पूर्व सदस्यों के साथ सदन ने चमकी से मरे सैकड़ों बच्चों के मौत पर भी शोक जताया गया. हीट वेव से औरंगाबाद, गया और नवादा में मरे लोगों के प्रति भी सदन ने शोक जताया. 


एक जुलाई को कार्यस्थगन के जरिये सदन में मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार को लेकर सदन में बहस हुई, जिसमें सत्ता और विपक्ष के सदस्यों ने भाग लिया, जिसका जवाब स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिया. सत्र के दौरान 12 विभागों के बजट पर चर्चा हुई और उनका बजट पास हुआ. सत्र के दौरान छह विधेयकों पर सदन ने मुहर लगायी. इनमें बिहार विनियोग विधेयक- 2 और 3, बिहार विनियोग अधिकाई व्यय विधेयक, बिहार मोटर वाहन कारारोपण, बिहार तकनीकी सेवा आयोग और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति विधेयक पास हुआ. 



सत्र के दौरान कुछ 3488 प्रश्न सदस्यों की ओर से किये गये, जिनमें 2795 स्वीकृति हुये. इनमें 37 अल्पसूचित, 2419 तारांकित और 339 प्रश्न अतारांकित थे. सदन में 343 सवालों का जवाब हुआ, जबकि 608 प्रश्नों के उत्तर सदन पटल पर रखे गये. इस बार विधानसभा सदस्यों ने 1509 सवाल ऑनलाइन किये, जबकि लिखित में 1220 सवाल किये गये. सत्र के दौरान ध्यानाकार्षण की 376 सूचनाएं सदन को मिलीं, जिमें 34 पर सवाल जवाब हुये, 69 को संबंधित विभागों के पास भेजा गया. सदन को सत्र के दौरान 754 निवेदन मिले, जिमें 728 को स्वीकार किया गया. 427 याचिकाएं भी आयीं, जिमें 335 स्वीकृत और 95 अस्वीक-त हुईं. सत्र के दौरान 227 गैर सरकारी संकल्प प्राप्त हुए, जिनमें सब पर चर्चा हुई. 


गैर सरकारी संकल्प के दौरान ही सत्र के अंतिम दिन वोटिंग की नौबत भी आयी, जिसमें प्रस्ताव के पक्ष में 52 और विपक्ष में 69 वोट पड़े, जिससे प्रस्ताव गिर गया. पथ निर्माण विभाग से जुड़ा ये गैर सरकारी संकल्प विपक्ष के उपनेता अब्दुलबारी सिद्दीकी की ओर से लाया गया था, जिस पर पथ निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव ने जवाब दिया, लेकिन अब्दुलबारी सिद्दीकी संतुष्ट नहीं हुये और वोटिंग के जरिये इसका फैसला हुआ. 


सदन चलने के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव की हुई, जो 21 बैठकों में केवल दो दिन ही आये, वो भी कुछ देर के लिए. इस दौरान उन्होंने सरकार को घेरने की किसी तरह की कोशिश नहीं की, केवल सदन में कुछ देर रहे और फिर रवाना हो गये. सत्तापक्ष के सदस्यों की ओर से इसी को लेकर विपक्ष को बार-बार घेरा गया. श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि अब समय आ गया है कि नेता विरोधी दल के पद से तेजस्वी यादव को इस्तीफा दे देना चाहिये, क्योंकि इनता अगंभीर व्यक्ति नेता विरोधी दल नहीं हो सकता है. उन्होने कहा कि पारिवारिक परेशानी की वजह से तेजस्वी की मुश्किलें लगातार बढ़ी हुई हैं. वहीं, मंत्री विनोद कुमार सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव में हार के बाद तेजस्वी कोप भवन में चले गये हैं और खिसियानी बिल्ली खंभा नोचेवाला व्यवहार कर रहे हैं. 


संसदीय कार्यमंत्री श्रवण कुमार ने भी तेजस्वी यादव के सदन में मौजूद नहीं रहने पर सवाल उठाये और कहा कि जिस तरह से पूरे सत्र के दौरान विपक्षी दलों की एकता तार-तार दिखी, वो ठीक नहीं है. सदन में कई ऐसे मौके आये, जब विपक्ष सरकार को घेर सकता था, निरुत्तर कर सकता था, लेकिन इसमें वो कामयाब नहीं हो सका. हर बार विपक्ष को ही निरुत्तर होना पड़ा. हालांकि राजद और कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि हमने विपक्ष का पूरा रोल निभाया. कांग्रेस विधायक दल के मुख्य सचेतक राजेश राम ने कहा कि विपक्ष ने एकता का परिचय देते हुये हर महत्वपूर्ण सवाल को उठाया. 


पूर्व मंत्री और राजद के विधायक शिवचंद्र राम ने कहा कि सरकार के मंत्री बिना तैयारी के सदन में आ रहे थे. उन्हें ट्रेनिंग की जरूरत है. विपक्ष की ओर से जो सवाल किये गये, उनका जवाब मंत्रियों के ओर से नहीं दिया गया. हम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग करते हैं कि वो अपने मंत्रियों को ट्रेनिंग दिलायें. विपक्ष के नेता के सदन में नहीं आने के सवाल पर शिवचंद्र राम ने कहा कि सबकी मजबूरियां होती हैं. विपक्ष के नेता बीमार हैं, जिसकी वजह से सदन में नहीं आये. ये कोई बड़ा सवाल नहीं है. हमने पूरे सत्र के दौरान सरकार को पूरी तरह से निरुत्तर रखा.