Patna: शेरशाह सूरी (Sher Shah Suri) भारत के राजवंश के संस्थापक थे. उनका जन्म 1486 में सासाराम में हुआ था.उनका  मूल नाम फरीद था. वह 15 साल की उम्र में अपना घर छोड़ जौनपुर चले गए थे. वहां उन्होंने अरबी और फारसी भाषाओं का अध्ययन किया.


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उनमें बहुत ही प्रशासनिक कौशल था जिसके कारण उन्हें अपने पिता द्वारा जागीर प्रबंधन करने के लिए चुना गया था. किन्तु कुछ कारणों की वजह वह इसे छोड़ मुगल सम्राट बाबर (Babar) की सेवा में लग गए. वह 1522 में बिहार के राज्यपाल बहार खान (Bahar Khan) की सेवा में शामिल हुए. वहीं, अकेले एक बाघ की हत्या करने में दिखाए गए साहस और वीरता के लिए बहार खान ने उन्हें शेर खान का खिताब दिया. बाद में बहार खान ने उन्हें डिप्टी गवर्नर और अपने बेटे जलाल खान के शिक्षक के रूप में चुन लिया.


1531 में उन्होंने मुगल शासक हुमायूं से अपनी स्वतंत्रता माँग की. उन्होंने हुमायूं (Humayun) के साथ कई लड़ाईयां लड़ी. वहीं, शुरू में बंगाल में गौड़ पर कब्जा किया और 1540 में कन्नौज की लड़ाई के बाद दिल्ली की गद्दी हासिल की. उन्होंने कुछ ही समय में अपने राज्य से बंगाल तक विस्तार कर लिया. वह एक बहादुर सिपाही थे और उन्होंने मेवात की लड़ाई में रेत के थैलों का उपयोग कर बंकर बनाए थे.


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उनका प्रशासन बहुत ही कुशल था. उन्होंने अपने राज्य को प्रांतों में विभाजित कर दिया था जिन्हें सरकार कहा जाता था. आगे उन्होंने उन्हें फिर छोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया. माना जाता है कि 'टंका' के स्थान पर रुपया और पैसा लागू करने वाले वह पहले शासक थे. इसलिए उन्हें कस्टम ड्यूटी (Custom Duty) की शुरूआत का श्रेय भी दिया जाता है.


जानकारी के अनुसार, उन्होंने कई सराय, मस्जिदों का निर्माण कराया और सड़कों को भी स्थापित किया. जिसमे सबसे प्रसिद्ध ग्रांड ट्रंक रोड है. शेर शाह सूरी में वास्तुकला के प्रति एक परिष्कृत स्वाद था, जो उनके द्वारा निर्मित रोहतास किले के निर्माण दिखता है. उन्होंने अपने प्रशासन के साथ-साथ सैन्य गतिविधियों को भी जारी रखा. उन्होंने बुंदेलखंड में कालिंजर के मजबूत किले को घेरा था जहां उनकी 1545 में बारूद के विस्फोट में आकस्मिक मौत हो गई थी.


हालांकि, उन्होंने पांच साल के लिए भारत पर राज्य किया था. उन्हें मध्यकालीन भारत के सबसे सफल शासक के रूप में देखा जाता है. उनके सबसे बड़े शत्रु हुमायूं ने उनकी मौत पर उन्हें उस्ताद-ए-बादशाह, राजाओं के शिक्षक के नाम से संबोधित किया था. शेरशाह सूरी के बाद उनके पुत्र जलाल खान (Jalal Khan) ने गद्दी संभाली जिसके बाद इस्लाम शाह के नाम को अपनाया था. उसने बिहार के सासाराम में अपने पिता शेरशाह सूरी की याद में एक शानदार मकबरे का निर्माण करवाया.


(इनपुट-स्नेहा अग्रवाल)