Patna: कोरोना की दूसरी लहर ने देश में बेहद ही भयावह तरीके से दस्तक दी है. कई शहरों में कर्फ्यू लग चुके हैं और इसी के साथ राज्य सरकारों ने तमाम तरह की पाबंदी भी लगानी शुरू की है. बढ़ते कोरोना के मरीज और सरकार की पाबंदी का सीधा असर गरीब तबका और मिडिल क्लास लोगों पर देखने को मिल रहा है.


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दिल्ली में अपार्टमेंट के आसपास की छोटी दुकान या छोटे व्यापार चलाने वाले ज्यादातर लोग बिहार से आए है. ऐसे लोगों का कहना है कि हम corona से डरे या दुबारा भूखमरी से क्यूंकि काम अब नहीं मिल रहा है. यहां काम कर रहें एक गार्ड को इस बात का डर है कि अभी से इनके जान पहचान के लोगों की नौकरी जा रही हैं तो अगला नंबर इनका हो सकता है. 
गार्ड ने बताया कि 'पिछले lockdown में नौकरी बच गई थी लेकिन तनख्वह कम मिली थी. लेकिन अगर इस बार घर जाना पड़ा तो खाने का इंतजाम कैसे होगा?' 


इधर,  एक सोसायटी के पास कपड़ों पर प्रेस करने वाले ने बताया कि वो पूर्वांचल के रहने वोले है. इनका कहना है कि 'अब कपड़े भी नहीं आ रहे है. पिछली बार तो घर चले गए थे लेकिन अब फिर कैसे जाएंगे? कोरोना से ज्यादा डर भूख से लग रहा है. ऐसे में अगर लॉकडाउन लग गया तो बचा-कुचा काम भी बन्द हो जाएगा' 


वहीं, एक painter जो घरों में पैंट पोचरा करते है, साइकिल से ही आते-जाते है. इन्होंने बताया कि इनके पास काम घट गया क्यूंकि जिन घरों में लोग है वहां इनको घुसने नहीं दे रहे है. अब दूसरा कोई  विकल्प भी नहीं है. 


कांति घरों में बर्तन धोती है. खाना बनाकर दो बच्चो को पढ़ा रही है. यही नहीं बल्कि बिहार के वैशाली में ससुराल वालों को पैसा भी भेजती है. कांति का भी यही कहना है कि 'पिछली बार तो घर चले गए लेकिन इस बार जाएंगे तो काम नहीं चल पाएगा. पहले 5 घर में काम करती थी मगर अब उन लोगों ने घर आने से मना कर दिया है. कुछ घर का सहारा है बस.'  


बच्चो का कहना है कि 'पढ़ाई भी ऑनलाइन हो गई है. मैडम पढ़ाती है लेकिन समझ नहीं आता है. सर दुखता है कान भी दुखते हैं. स्कूल कब खुलेगें? अब तो हम खेलते भी नहीं.' वहीं इनकी मां अनामिका छपरा से है उनका कहना है 'हर साल 10 फीसदी फीस ज्यादा देनी होती है. बच्चे स्कूल नहीं जा रहे है बावजूद इसके हर तरह की फीस है. घर में लैपटॉप बच्चों को देना पड़ा क्योंकि मोबाइल से काम नहीं चल पा रहा है.'