पटनाः Bahuda Rath Yatra 2022: इन दिनों पुरी में रथयात्रा की धूम है. आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से कई श्रद्धालु यहां जुटे हैं और भगवान की इस दिव्य यात्रा के साक्षी बन रहे हैं. रथयात्रा की शुरुआत और इसकी योजना हर साल बसंत पंचमी से ही हो जाती है. इसके बाद हर विशेष तिथि पर खास आयोजन किए जाते हैं. आषाढ़ में भगवान अपनी मौसी गुंडिचा के मंदिर तक रथ से जाते हैं. इस दौरान वह अपने भाई और बहन के साथ होते हैं. पत्नी को नहीं ले जाते हैं. इससे देवी लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं. रथयात्रा में कई तरह की परंपराएं निभाई जाती हैं. इसकी समाप्ति बाहुदा रथ यात्रा से होती है. बाहुदा रथ यात्रा दशमी के दिन निकाली जाती है. इस बार यह 9 जुलाई को यानी आज है. 


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बहुदा यात्रा से पहले होती है हेरा पंचमी
बहुदा यात्रा से पहले हेरा पंचमी मनाई जाती है. हेरा पंचमी की कथा कुछ ऐसी है कि भगवान से नाराज लक्ष्मी उन्हें खोजने निकलती हैं. उन्हें पता चलता है कि वह तो रथयात्रा निकाल कर मौसी के घर पहुंच गए हैं. लक्ष्मी भी वहां पहुंच जाती हैं, लेकिन द्वारपाल अंदर नहीं आने देता है. इससे गुस्से में देवी लक्ष्मी वहीं बाहर खड़े भगवान के रथ के पहिए को तोड़ देती हैं. इसके बाद वह र पुरी के हेरा गोहिरी साही में बने अपने मंदिर में वापस लौट जाती हैं. यहां वह एकांतवास में निवास करने लगती हैं. इसके बाद भगवान जगन्नाथ उन्हें मनाने जाते हैं. पुरी में हेरा पंचमी से लेकर बाहुदा रथ यात्रा के प्रसंगों का बकायदा मंचन किया जाता है. जिसमें स्थानीय पुजारी और कलाकार आदि भाग लेते हैं. वह देवी लक्ष्मी और विष्णु भगवान बनकर उनके किरदार निभाते हैं. 


देवी लक्ष्मी को रसगुल्ला भेंट करते हैं भगवान
जब जगन्नाथ जी को इस बारे में पता चलता है कि लक्ष्मी आई थीं और वह रूठ कर गईं हैं तो वह अफसोस करते हैं. फिर वे अकेले ही देवी लक्ष्मी को मनाने निकलते हैं. इसके लिए वह कई तरह की बेशकीमती भेंट और मिठाई लेकर उनके मंदिर पहुंचते हैं. सभी मिठाइयों में से उन्होंने रसगुल्ले का मटका हाथ में उठाया और द्वार पर ही पुकार-पुकार कर उन्हें मनाते हैं. बहुत कोशिश के बाद वह महालक्ष्मी को मनाने में कामयाब हो जाते हैं और उन्हें रसगुल्ला भेंट करते हैं. देवी लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं. यहां से दोनों युगल एक ही रथ पर वापस लौटते हैं. भगवान का यही लौटना बाहुदा रथयात्रा कहलाता है. रथयात्रा की वापसी के दिन विजया दशमी और बोहतड़ी गोंचा नाम से जश्न मनाते हैं. इसे पुरी में भगवान आ रहे हैं, वापस आ रहे हैं के उद्घोष के तौर पर देखा जाता है. पूरे 9 दिन बाद भगवान जगन्नाथ अपने मंदिर के लिए लौट जाते हैं.


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