पटनाः Chaturmas Start Date:आने वाले कुछ ही दिनों में चातुर्मास का प्रारंभ होने जा रहा है. चातुर्मास का अर्थ हुआ चार मास, यानि चार महीना. सनातन परंपरा में ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति के बाद वर्षाकाल के पूरे चार महीनों के समय को चातुर्मास कहा जाता है. ये महीने सावन-भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक हैं. इन दिनों भगवान विष्णु का विश्राम काल माना जाता है. जिसकी शुरुआत देवशयनी एकादशी से होती है. आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी कहा जाता है. देवशयनी एकादशी 11 जुलाई को है.


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ये चार महीने होते हैं वर्षाकाल
प्राचीन काल से ही आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के चार महीने सनातन परंपरा में बड़े ही पवित्र और विशेष माने गए हैं. इस दौरान भारी वर्षा का समय होता था. ऐसे में यह नियम बनाया गया कि इन चार माह में कोई देशाटन या कोई भी तीर्थाटन नहीं होगा. इसके अलावा भारी वर्षाकाल के ही कारण वैवाहिक समारोह जैसे मंगलकार्यों पर भी रोक लगाई गई थी. इसके अलावा घरों में बालकों के मुंडन और उपनयन संस्कार भी नहीं किए जाते हैं. 


बारिश के कारण पड़ सकता है विघ्न
भारी बारिश के कारण यह आंधी-तूफान वाले दिन हुआ करते थे. वहीं इस दौरान शुभ कार्यों पर भी रोक रहती थी, क्योंकि इस दौरान ऐसे कार्यों मे भारी भीड़ उमड़ती थी, लेकिन बारिश होने के कारण ऐसा संभव नहीं होता था. यही वजह है कि वर्षा ऋतु के चार महीने सृष्टि के आराम के दिन माने जाते हैं. इसीलिए इसे भगवान विष्णु का सोना कहते हैं और देवशयनी एकादशी मनाई जाती है. हालांकि एक कथा के मुताबिक, भगवान विष्णु सोते नहीं हैं, बल्कि दैत्यराज बलि के लोक पाताल लोक में जाते हैं और गुप्त हो जाते हैं. यह कार्य वह देवशयनी एकादशी को ही करते हैं.


चतुर्मास की कथा
दैत्य राज बलि ने सारी सृष्टि पर अधिकार करके स्वर्ग को अपने अधीन कर लिया था. इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा. तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के द्वार पर पधारे. वामन अवतार में श्रीहरि ने राजा बलि से तीन कदम ज़मीन मांगी. बलि ने दान का संकल्प कर लिया. इसके बाद भगवान वामन ने अपना स्वरूप विस्तार किया. पहले कदम में सारी धरती और दूसरी कदम में सारा आकाश नाप लिया. तीसरे कदम में उन्होंने पूछा कि अब इसे कहां रखूं बलि, तब बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और तीसरे कदम के नीचे राजा बलि ने अपना सिर रख दिया. प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल दिया. बलि ने भगवान विष्णु से सुरक्षा का आशीर्वाद मांगा. भगवान विष्णु बलि के यहां द्वारपाल बन गए. भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी लेने गईं और बलि को भाई बनाया. राजा बलि ने 4 महीने भगवान विष्णु को अपने पास रहने का आशीर्वाद मांगा. तब से 4 महीने भगवान विष्णु बलि के द्वार पर निवास करके लौटते हैं. 


देवशयनी एकादशी की व्रत विधि
सुबह जल्दी उठें और घर साफ करें. श्रीहरि की मूर्ति स्थापित कर षोडशोपचार पूजन करें. दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें. षोडषोपचार पूजन में संकल्प, आह्वान, स्थापना, धूप-दीप, वस्त्र अर्पण, नैवेद्य भोग, ध्यान, मंत्र जाप, कथा श्रवण, होम, आरती, जयघोष, आचमनि,  मनोकामना, क्षमायाचना और प्रसाद वितरण शामिल है. इस दौरान भगवान पर पीतांबर चढ़ाएं, कथा सुनें. अंत में आरती उतारकर प्रसाद बांटें. प्रभु को शयन कराएं.


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