पटनाः Ganga Dussehra 2022: गंगा दशहरा पर्व गंगा माता के अवतरण से जुड़ा हुआ है. मां गंगा धरती पर देवताओं का जीता-जागता वरदान हैं. इस भारतभूमि पर जीवन की वजह ही गंगा माता हैं. इसलिए उन्हें जीवनदायिनी कहा जाता है. गंगा माता का अवतरण सबसे पहले कैसे हुआ, इसकी कथा भी रोचक है. 


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ऐसे हुआ देवी गंगा का अवतरण
गंगा नदी की मान्यता हरिद्वार की पावन भूमि में बहने के कारण नहीं है, बल्कि हरिद्वार की मान्यता इसलिए अधिक है क्योंकि गंगा वहां से बहते हुए आती हैं. कहते हैं कि क्षीरसागर पर शयन कर रहे भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने जब करवट बदली तो सागर में उनके भीगे पैर से जल की बूंदें टपकीं. इन बूंदों से देवी गंगा का पहला अवतरण हुआ. 


जब भगवान विष्णु को लगी चोट
वामन अवतार में जब भगवान विष्णु (Lord Vishnu) राजा बलि  (King Bali) के द्वार पर पहुंचे तो वहां उन्होंने बलि से 3 पग भूमि मांगी. बलि का दान नापने के लिए जब उन्होंने अपने पग बढ़ाए तो पहले पग में सारी धरती और दूसरे पग में सारा ब्रह्मांड माप लिया. इसी क्रम में उन्हें द्रोण पर्वत से ठोकर लग गई और अंगूठे से रक्त बह निकला. कहते हैं कि इसी रक्त को ब्रह्म देव ने अपने कमंडल में भर लिया और यही गंगा जल कहलाया. 


जीवन का मर्म सिखाती हैं देवी गंगा
गंगा नदी हमें जीवन का मर्म सिखाती हैं. देवी गंगा से हमें सहनशीलता सीखने को मिलती है. वह उदारता और अपनापन को जीवन में अपनाने के लिए कहती हैं. गंगा हमें बताती है कि गंदगी फैलाने वालों को भी कैसे माफ कर देना चाहिए और हमेशा उसे बहाकर सबकुछ शुद्ध कर देना चाहिए. देश-दुनिया के तमाम रिसर्च ये साबित कर चुके है गंगा का पानी शरीर के लिए फायदेमंद है.


गंगोत्री से गंगा तो निर्मल होकर निकलती है लेकिन पहाड़ से मैदान में आते ही गंगा को गंदा करने की शुरुआत हो जाती है. औद्योगिक कचरे के अलावा, इंसान के मल जल को भी गंगा में प्रवाहित किया जाता है. गंगा को निर्मल करने का अभियान दशकों से चल रहा है, लेकिन अभी तक गंगा पूरी तरह स्वच्छ नहीं हो सकी हैं.