कास्ट:  नुसरत भरूचा, अनुद सिंह ढाका, टीनू आनंद, विजय राज, ब्रजेन्द्र काला, पारितोष त्रिपाठी, ईशान मिश्रा आदि
निर्देशक:  जय बसंतु सिंह
स्टार रेटिंग: 3.5
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में


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पटनाः Janhit Mein Jaari Movie Review: क्या आप भी कंडोम खरीदते वक्त शर्माते है? आप सोच रहे होंगे हम ऐसा क्यों पूछ रहे है. अगर इस सवाल का जवाब हां है तो आपको नुसरत भरुचा की ‘जनहित में जारी’ जरूर देखनी चाहिए. आज के दौर में कंडोम खरीदने का नहीं बल्कि बेचने का सीन एक लड़की पर फिल्माया गया है. लड़की का कंडोम बैचने का आइडिया काफी ओवरडोज है. इस फिल्म में नुसरत एक ऐसी लड़की के किरदार में नजर आएंगी, जो रूढ़िवादी और कट्टर समाज के बीच एक नई और जरूरी शिक्षा दे रही है. 


आज के जमाने की युवती की कहानी 
फिल्म ‘जनहित में जारी’ की कहानी देश की किसी भी छोटे शहर की लड़की की कहानी हो सकती है. हमारे देश में सेफ सेक्स एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर बात करना जरूरी है, लेकिन करता कोई नहीं. इस फिल्म की कहानी सेफ सेक्स पर ही आधारित है. जनहित में जारी फिल्म की कहानी मनोकामना त्रिपाठी (नुसरत भरूचा) के इर्द-गिर्द घूम रही है. मनोकामना त्रिपाठी की जिंदगी दोराहे पर आ जाती है, जहां उसे शादी और करियर के बीच में से किसी एक को चुनना होता है. 


वह एक कंपनी में सेल्स रिप्रेजेंटेटिव की जॉब ले लेती है और मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में कंडोम बेचने के लिए जाती है. जहां लड़कियों को जॉब करने के लिए बाहरी दुनिया से दो-दो हाथ करने से पहले घर में अपने मां-बाप से भिड़ना होता है. जिनको अपनी बेटी को लेकर सिर्फ एक जिम्मेदारी समझ आती है और वह है जल्दी से जल्दी उसकी शादी कर देना. मनोकामना त्रिपाठी की भी यही दुनिया है. इस कहानी को बिना ज्यादा ज्ञान दिए काफी एंटरटेनिंग तरीके से दिखाया गया है. कहानी को ट्रेलर में ही दिखा दिया गया था, लेकिन फिल्म में इसे काफी दमदार तरीके से पेश किया गया है.


क्यों देखें फिल्म
बता दें कि ये एक जरूरी फिल्म है. ऐसा नहीं है कि इसमें कंडम के बारे में बता रखा है तो फिल्म गलत है या बुरी है, बल्कि यह फिल्म एक जरूरी संदेश देती है. सरकार जनसंख्या कंट्रोल करने के प्रोग्राम पर करोड़ों खर्च करती है, लेकिन कई लोग तब भी नहीं समझते है. तो ऐसे लोगों को ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए.


नहीं होंगे बिल्कुल बोर
मूवी का सबसे बेहतरीन प्वॉइंट है उसके डायलॉग्स, कास्ट सिलेक्शन और सिचुएशनल कॉमेडी. शायद ही कोई कॉमेडी सीन होगा, जिसमें आप हंसे बिना रह पाएंगे. हर डायलॉग पर मेहनत की गई है. कहने का तात्पर्य है कि आधी मूवी में आप हंसेंगे ये तय है. बाकी कलाकार भी ऐसे चुन चुनकर लिए गए हैं कि आप बोर नहीं होंगे, टीनू आनंद, विजय राज, ब्रजेन्द्र काला, पारितोष त्रिपाठी, ईशान मिश्रा आदि.


किसी भी कलाकार के हिस्से में कोई ना कोई अलग से कॉमेडी सीन आ जाए, इसके लिए कई सारे सींस अलग से रचे गए हैं और उन्हें स्टोरी में गुंथा गया है. लेकिन इंटरवल के बाद कहानी अचानक से एक सोशल टर्न ले लेती है. अब तक मजाक चल रहा था, उसमें हीरोइन एकदम सीरियस मोड में आ जाती है और फिर से कॉन्डम बेचने निकल जाती है, लेकिन इस बार एक मिशन के साथ निकलती है. जो शुरू में उतना पता भी नहीं क्योंकि सोसायटी में उस मिशन को उठाने की जरूरत ही नहीं समझी. ऐसे में लोग अगर उस मिशन से कन्विन्स नहीं हुए तो थोड़ी मुश्किल होगी.


कैसी है फिल्म की कहानी और इसका निर्देशन?
जय बसंतू सिंह की निर्देशित इस फिल्म में सोशल स्टिग्मा को तोड़ते हुए दिखाया गया है. दर्शकों को हंसाने के अलावा ये फिल्म एक ऐसी सीख देगी जो बहुत जरूरी है. इस फिल्म के माध्यम से राज शांडिल्य ने अबॉर्शन जैसे विषय पर गंभीरता से बात की है. बता दें कि राज शांडिल्य की कलम से इस बार ढेर सारे पंच लाइंस और वन लाइनर्स निकले हैं, जिन्हें बेहतरीन तरीके से जय बसंतू सिंह ने पर्दे पर उतारा है.


रिपोर्टस के मुताबिक, भारत में हर रोज अबॉर्शन के वजह से लगभग 8 महिलाओं की मौत हो जाती है. महिलाओं की मौत का आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. हालांकि मुझे नहीं पता कि आप में से कितने लोग इस सच से वाकिफ हैं, लेकिन अगर आप नुसरत भरूचा की फिल्म जनहित में जारी देखेंगे तो उसके बाद इस फैक्ट के बारें में जानने के लिए गूगल जरूर करेंगे.


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