पटना: आज दुनिया भर में भारत की शिक्षा व्यवस्था भले कई देशों से पिछड़ रही हो लेकिन एक समय था जब भारत में शिक्षा ग्राहण करने के लिए दुनिया भर के देशों से छात्र आते थे.  एक समय ऐसा भी था जब भारत में दुनिया का सबसे पहला आवासीय विश्वविद्यालय खुला था, जहां छात्रों के लिए पढ़ना, लिखना, खाना-पीना और रहना सब मुफ्त था. इसकी स्थापना 5 वीं शताब्दी में की गई थी. प्राचीन समय में मगध सम्राज्य आज के पटना (आधुनिक) के शिक्षा का केंद्र बिंदु रहा नालंदा विश्वविद्यालय एक ऐसा संस्थान था जहां दुनिया भर के लोग शिक्षा ग्रहण करने और तमाम नई शोधों के लिए आते थे. नालंदा आज यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शुमार है. यह एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ था. आज के बिहार में पटना से लगभग 95 किलोमीटर के दक्षिणपूर्व में स्थित बिहार शरीफ के निकट बसा नालंदा एक बार फिर से दुनिया में शिक्षा का अलख जगाने के लिए तैयार खड़ा है.  


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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना
विश्व में शिक्षा के प्रमुख केंद्रों में से एक नालंदा विश्वविद्यालय को गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450-470 ईसा पूर्व में स्थापित किया था. यह विश्वविद्यालय 9वीं शताब्दी से 12 वीं शताब्दी के बीच दुनिया के सबसे ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालयों में से एक था. इसके अवशेष इसकी भव्यता की गवाही देते हैं. आज भी लोग इस विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखने आते हैं. इस प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहरों को देखकर आप भारतीय स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने के कायल हो जाएंगे. यह विश्वविद्यालय 800 सालों तक अस्तित्व में रहा. तक्षशिला के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय था और पहला आवासीय विश्वविद्यालय. 


नालंदा का इतिहास 
5 वीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी तक यहां खड़ा एक विश्वविद्यालय शिक्षा का मुख्य केंद्र हुआ करता था. तुर्की से आए एक आतातायी बख्तियार खिलजी ने इस शिक्षा के मंदिर को 1199 ईस्वी में आग लगवा दी थी और यह आग इतनी भयानक थी कि इसकी आग की लपटों में कई महीनों तक विश्वविद्यालय को अपने आगेश में लिए रही थी. विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी इतनी बड़ी थी कि तीन महीने तक आग की लपटों में यहां की किताबें धू-धू कर जलती रही थी. इस भयानक त्रासदी में कई धर्माचार्य आ बौद्ध भिक्षुओं की बलि चढ़ा दी गई थी. इस विश्वविद्यालय के बारे में यह कहा जाता है कि इसमें 300 कमरे और नौ मंजिला विशाल पुस्तकालय था. इस लाइब्रेरी के बारे में बताया जाता है कि इसमें 3 लाख से भी अधिक किताबें थी.इसी पुस्तकालय को खिलजी ने आग की भेंट चढ़ाया था.


जिस लाइब्रेरी में तीन महीने तक लगी आग उसमें क्या था खास
नालंदा विश्वविद्यालय में 'धर्म गूंज' नामे से एक पुस्तकालय था जो 9 मंजिला इमारत थी. इसके तीन भाग थे 'रत्नरंजक', 'रत्नोदधि' और 'रत्नसागर'. यहां विश्वविद्यालय के अंदर छात्र लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्चर, लैंग्‍वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषयों में ज्ञान प्राप्त करते थे और इस लाइब्रेरी में उनके लिए किताबें उपलब्ध थी जहां वह बैठकर इसे पढ़ सकते थे. 


नालंदा विश्वविद्यालय की चारदिवारी थी कुछ ऐसी 
अब तो बस आप नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का ही दीदार कर सकते हैं और ये खंडहर खिलजी की क्रुरता की गवाह है लेकिन आपको बता दें कि इस पूरे परिसर में प्रवेश के लिए बस एक बड़ा सा दरवाजा था. नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर चारदिवारी से घिरा था और इसकी दीवारें इतनी चौड़ी की इसके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है. विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार से अंदर आते ही उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे.