BJP Foundation Day Special: बीजेपी के लिए गुरुवार (6 अप्रैल) का दिन काफी बड़ा है. कल यानी 6 अप्रैल को अपना भारतीय जनता पार्टी अपना 43वां स्थापना दिवस मनाएगी. 43 सालों के अपने सफर में बीजेपी ने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है. 6 अप्रैल 1980 को जब ये पौधा रोपा गया था, तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह पेड़ इतना विशाल हो जाएगा. जनसंघ से निकली इस पार्टी के किसी जमाने में सिर्फ 2 सांसद हुआ करते थे और आज 303 सांसदों के साथ सत्ता सुख उठा रही है. इतना ही नहीं भारत के ज्यादातर राज्यों में उसकी सरकार है. 


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बीजेपी के इस सफलता के पीछे दशकों का संघर्ष छिपा है. बीजेपी को यहां तक पहुंचाने में संघ (RSS) का काफी बड़ा योगदान है. बीजेपी को संघ परिवार से निकला ही राजनीतिक दल माना जाता है. बीजेपी के नेता भी हमेशा कहते हैं कि वो संघ परिवार का हिस्सा हैं. एक राजनीतिक दल के तौर पर बीजेपी के संघर्ष की कहानी 1951 में शुरू हो गई थी. जब स्वतंत्रता सेनानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी. जनसंघ का चुनावी चिह्न दीपक हुआ करता था.  


जनसंघ से बीजेपी का उदय हुआ


जनसंघ ही आगे चलकर बीजेपी बनी. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की जोड़ी ने जनसंघ की नींव रखी तो युवा अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने इसे देशभर में फैलाने का काम किया. कांग्रेस विरोधी दल के रूप में जनसंघ ने काफी सफलता हासिल की. 1953 में जनसंघ ने ही कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था. जनसंघ के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही 'एक निशान-एक विधान एक संविधान' का नारा दिया था. 


6 अप्रैल 1980 को हुई थी स्थापना


आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया था. इस चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली और मोरारजी देसाई पीएम बने. मोरारजी की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को मंत्री बनाया गया. हालांकि, जनता दल में आपसी खींचतान से 1979 में ही यह सरकार गिर गई. जिसके बाद 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और अटल बिहारी वाजपेयी को पहला अध्यक्ष चुना गया. 


1984 में सिर्फ 2 सीटें ही मिली थीं


इंदिरा गांधी की हत्या के पृष्ठभूमि में 1984 में लोकसभा चुनाव हुए और सहानुभूति की अभूतपूर्व लहर में कांग्रेस ने विरोधियों का सफाया कर दिया. नतीजतन अपने पहले ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें हासिल हुईं. प्रचंड जीत से गदगद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद में इस बात का मजाक भी बनाया. जिसके जवाब में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि जो आज हम पर हंस रहे हैं, एक दिन पूरा देश उन पर हंसेगा. 


राम मंदिर आंदोलन से मिली संजीवनी


अटल काफी नरम मिजाज के माने जाते थे, लिहाजा पार्टी ने 1986 में हिंदू धर्म को लेकर काफी मुखर रहने वाले लालकृष्ण आडवाणी को अध्यक्ष बनाया दिया. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आवाज उठाई और आंदोलन शुरू कर दिया. इसके बाद बीजेपी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार सफलता का स्वाद चखा और इसकी सीटें 86 हो गईं.


1996 में पहली बार पीएम बने थे अटल 


राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी तो की, लेकिन बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. उस चुनाव में भगवा पार्टी ने 120 सीटें हासिल की थी. 1996 में 161 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. हालांकि, समर्थन न मिलने से महज 13 दिनों में सरकार गिर गई. 


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2004-2014 तक विपक्ष में बैठना पड़ा
 
1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 182 सीटें हासिल की. एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री चुना गया. गठबंधन की यह सरकार सिर्फ 13 महीने ही चली. 1999 में हुए मध्यावधि चुनाव में बीजेपी को 182 सीटें हासिल हुई. इस बार बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ पूरे 5 साल तक सरकार चलाया. 2004 के लोकसभा चुनाव में अटल ने आडवाणी को आगे किया, लेकिन जनता को यह पसंद नहीं आया. 2004 से 2014 पार्टी को 10 सालों तक विपक्ष में बैठना पड़ा. 


2014 से आया पार्टी का स्वर्णिम युग


2014 में पार्टी ने मोदी युग की शुरुआत हुई. मोदी-शाह की जोड़ी ने सफलता के सारे आयामों को तोड़ दिया. दो सांसदों से शुरू हुई पार्टी आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है. 2014 में 282 सीटें लेकर पार्टी ने पहली बार केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाई. 2019 में पार्टी ने इससे भी बड़ी जीत हासिल की. आज लोकसभा में उसके 303 सांसद हैं. 1981 में भारतीय जनता पार्टी के पास 148 विधायक थे, तो वहीं 2022 में पार्टी के पास 1296 विधायक थे