झारखंड के लुगु बुरू पहाड़ी पर पहुंचा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सोरेन का परिवार, जानें कारण
लुगु बुरू झारखण्ड की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है. यहां पहुंचने के लिए पगडंडियों के सहारे पूरी यात्रा तय करनी पड़ती है. यह समुद्र तल से दो हजार फीट से अधिक ऊपर है. लुगुबुरु पहाड़ी की तलहटी में स्थित मंच को घंटाबारी के नाम से जाना जाता है.
बोकारो: झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत गोमिया के पास स्थित लुगुबुरू पहाड़ी पर आयोजित 22वें अंतरराष्ट्रीय संथाल सरना धर्म सम्मेलन में सोमवार-मंगलवार को सात लाख से ज्यादा लोग उमड़ पड़े. भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा नेपाल, बांग्लादेश और भूटान से आए लाखों संथालियों ने लुगु बुरु घांटाबाड़ी धोरोमगाढ़ में माथा टेका. मंगलवार को यहां शीश नवाने वालों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उनके पिता शिबू सोरेन सहित उनके पूरे परिवार के लोग, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कई रिश्तेदार भी शामिल रहे.
संथाली भाषा में 'बुरू' शब्द का अर्थ पहाड़ी होता है. लुगू उस आदि देवता का नाम है, जिन्हें संथाली आदि देव के रूप में पूजते हैं. लुगु बुरू पहाड़ी ही वह स्थान है, जिसके बारे में संथालीआदिवासियों की मान्यता है कि यहां लुगु बाबा की अगुवाई में लाखों साल पहले संतालियों के जन्म से लेकर मृत्यु तक के रीति-रिवाज यानी संताली संविधान की रचना हुई थी.
मान्यता है कि इसके लिए इसी स्थल पर 12 साल तक मैराथन बैठक हुई. कहते हैं कि लुगू बाबा ने इस स्थान पर सभी संतालों को संताल समाज के रीति-रिवाजोंऔर सामाजिक मानदंडों को तैयार करने के लिए बुलाया और बारह वर्षों तक उन्होंने यहां पर चट्टानी सतह पर बैठकर चर्चा की. इसके बाद संतालों के पूर्वज अलग-अलग स्थानों पर फैल गए, लेकिन वे यहां तैयार हुए संविधान के अनुसार धार्मिक सामाजिक परंपराओं का निर्वाह करते हैं.
लुगु बुरू झारखण्ड की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है. यहां पहुंचने के लिए पगडंडियों के सहारे पूरी यात्रा तय करनी पड़ती है. यह समुद्र तल से दो हजार फीट से अधिक ऊपर है. लुगुबुरु पहाड़ी की तलहटी में स्थित मंच को घंटाबारी के नाम से जाना जाता है. इसे एक बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है. पहाड़ की ऊंची चोटी पर ऐतिहासिक गुफा (घिरी दोलान) अवस्थित है. इसी गुफा के अन्दर लुगू बाबा की पूजा होती है. यहां गुफाओं के अन्दर पानी का रिसना भी एक चमत्कार ही है. इतनी ऊंचाई पर पानी का स्रोत किसी को पता नहीं.
यहां एक सबसे पवित्र झरना है, जिसे सितेनाला के नाम से जाना जाता है. स्थानीय लोग इसे छरछरिया झरना और ललपनिया झरना भी कहते हैं. इस नाले का पानी उनके लिए बेहद पवित्र है. देवता की पूजा करने के लिए लुगूबुरु जाने वाले भक्त, मंदिर की पत्थर की दीवार की धूल को थैली में खुरच कर इकट्ठा करते हैं. सोमवार-मंगलवार को यहां जुटे लाखों भक्तों ने इन परंपराओं का निर्वाह किया.
महाधर्म सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि इस पवित्र स्थल पर आकर हमें अहसास होता है कि संथाल आदिवासियों की धार्मिक और सामाजिक परंपराएं आदिकाल से चली आ रही हैं. इन परंपराओं को संरक्षित करना और देश-दुनिया में फैले संथालों तक एकजुटता का संदेश पहुंचाना हम सभी का धर्म है. उन्होंने एलान किया कि पवित्र धार्मिक स्थल के समग्र विकास पर 30 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे.
(आईएएनएस)