पटना: बिहार में कोरोना मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. हालात ये हैं कि कोरोना संक्रमितों की संख्या बिहार में 1900 पहुंच गई है और दो हजार का आंकड़ा पार करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. लेकिन सच बात तो ये है कि अगर शुरुआत से ध्यान दिया जाता तो शायद बिहार इतनी बुरी तरह कोरोना की चपेट में ही नहीं आता. 


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अगर नीतीश कुमार की बात केंद्र मान लेती तो शायद राज्य में कोरोना के आंकड़े इतने नहीं होते. अगर हम आंकड़ों आंकड़ो पर गौर करें तो पिछले दो दिनों में बिहार में 450 से अधिक मामले आए हैं. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो अन्य राज्यों से विशेष ट्रेनों से आए प्रवासी मजदूरों में से 8337 नमूनों की जांच की गई है, जिसमें 651 पॉजिटिव पाए गए हैं. जाहिर है ये आंकड़े अभी और भी बढ़ सकते हैं. 


नीतीश कुमार ने किया था आगाह
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में अपील की थी कि प्रवासी जहां हैं, उन्हें वहीं रहने दिया जाए क्योंकि अगर वो आएंगे तो सोशल डिस्टेंसिंग खत्म होगी और कोरोना के आंकड़े बढ़ सकते हैं. वहीं, योगी आदित्यनाथ ने जब कोटा से छात्रों को लाने के लिए बसें भेजी थी तब भी बिहार सरकार ने इस कदम का विरोध किया था. 


नीतीश कुमार ने भांप लिया था संकट
बिहार में कोरोना के बढ़ रहे संक्रमण को देखकर ये साफ है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये संकट पहले ही भांप लिया था. वो बार-बार बोलते रहे कि अगर प्रवासी लोगों के गृह राज्यों में जाने का इंतजाम किया जाएगा तो लॉकडाउन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. बिहार में सीमित संसाधन में कोरोना संकट से लड़ाई जारी है और अगर ऐसे ही आंकड़े लगातार बढ़ते रहे तो कंट्रोल करना और भी मुश्किल हो जाएगा. 



कब से शुरू हुई मुश्किल
दरअसल, जैसे ही लॉकडाउन शुरू हुआ प्रवासी श्रमिक अपने राज्य की ओर पैदल ही निकलने लगे जिसके बाद पहले तो दिल्ली सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए हर संभव मदद का दावा किया लेकिन बाद में उन्हें भेजने का काम शुरू कर दिया गया. इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने भी यही किया और प्रवासी श्रमिकों के बिहार आने का सिलसिला शुरू हो गया है या यूं कहें उन्हें भेजने का सिलसिला शुरू हो गया. इस तरह से नीतीश कुमार की बात को नजरअंदाज कर दिया गया और बिहार आज किस स्थिति में है ये किसी से छिपी नहीं है. 


बिहार सरकार फॉलो करती रही केंद्र की गाइडलाइन
बिहार सरकार लॉकडाउन के पहले चरण से लॉकडाउन को फॉलो कर रही थी और बार-बार सोशल डिस्टेंसिंग का हवाला देते हुए प्रवासी श्रमिकों जहां हैं वहीं, रहने की गुजारिश भी कर रही थी. बिहार सरकार यह दावा भी कर रही थी कि प्रवासी श्रमिक जहां है, वहां उनके लिए इंतजाम किया जाएगा. लेकिन जिस तरह से योगी सरकार ने कोटा से अपने बच्चों को बुलाने लगी जिसके बाद स्थिति यह हो गई कि अगर सीएम योगी बुला सकते हैं तो नीतीश कुमार क्यों नहीं? विपक्ष ने भी इस मुद्दे को उठाया और बिहार सरकार पर जमकर निशाना साधा.



विपक्ष ने क्या किया
बिहार में विपक्ष ने लगातार प्रवासी मजदूरों को वापस लाने का मुद्दा उठाया. यहां तक कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 2000 बसों को भी भेजने का प्रस्ताव बिहार सरकार को दिया. जिसके बाद प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने का मुद्दा और बढ़ गया और स्पेशल ट्रेनें भी शुरू की गईं. आखिरकार बिहार सरकार ने प्रखंड स्तर का क्वारंटाइन सेंटर बनाने का फैसला किया और पटना से प्रवासी श्रमिकों को अब उनके जिले में प्रखंड स्तर के क्वारंटाइन सेंटर में रखा जा रहा है. वहां से 14 दिनों के बाद उन्हें घर जाने की अनुमति दी जा रही है. 


आगे क्या
ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि बिहार पूरी तरह कोरोना संकट के लिए तैयार थी. लेकिन अब बाकी राज्यों की तरह इस संकट से लड़ने के अलावा बिहार के पास भी कोई चारा नहीं है. साथ ही लगातार क्वारंटाइन सेंटर में गड़बड़ी और बदइंतजामी की खबरें आ रही है जिससे पता चलता है कि प्रबंधन में बिहार सरकार से भी चूक हुई है. अभी भी लोगों के आने का सिलसिला बदस्तूर जारी है और सरकार को अपनी तैयारी और भी दुरुस्त करनी होगी.