Photos: यहां एसयूवी और होंडा सिटी जैसी कारें नहीं, नाव हैं स्टेटस सिंबल...

आज के जमाने में एसयूवी और होंडा सिटी जैसी कारें स्टेटस सिंबल का प्रतीक होती हैं. जिनके दरवाजे पर ये कारें लगी होती हैं उन्हें रसूखदार माना जाता है. लेकिन बिहार में एक ऐसा भी इलाका है जहां के लोगों के लिए स्टेटस सिंबल लग्जरियस कार नहीं बल्कि नाव मानी जाती हैं.

जी बिहार-झारखंड वेब टीम Thu, 17 Jun 2021-12:20 pm,
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नाव से चलती है जिंदगी

साल के छह महीने बाढ़ के पानी में डूबे रहनेवाले इस इलाके की जिंदगी नाव पर ही चलती है. नेपाल से होकर आनेवाली अधवारा समूह की दर्जनों नदियों का यहां जाल फैला है. इस इलाके में आजादी के बाद से आज तक एक बड़ी आबादी को सड़क मयस्सर नहीं है.

(इनपुट- मुकेश कुमार)

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नाव ही लाइफलाइन

यहां जब बाढ़ का पानी नहीं होता है तब इस पूरे इलाके में रेत ही रेत नजर आती है. ऐसे में यहां के लोगों के लिए आवागमन बेहद कठिन होता है. इसलिए कुशेश्वर स्थान के लोगों के लिए पानी और नावें ही लाइफलाइन मानी जाती हैं.

 

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सरकारी स्तर पर होती है नावों की खरीदी

ये नावें ही यहां जन्म से लेकर मृत्यु की अंतिम यात्रा तक सहारा होती हैं. कुशेश्वर स्थान में बड़े पैमाने पर नावों का निर्माण होता है. बरसात शुरू होने के पहले ही यहां के नाव कारोबारियों को बड़ी संख्या में नावों के ऑर्डर मिलते हैं. यहां नाव खरीदने के लिए दूसरे जिलों से भी ऑर्डर मिलते हैं. सरकारी स्तर पर भी नाव की खरीद होती है.

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क्या कहते हैं स्थानीय

स्थानीय अमित कुमार ने बताया कि कुशेश्वर स्थान के इलाके में साल के 6 माह बाढ़ का पानी होता है. जब बाढ़ का पानी इस इलाके में होता है तो बेटी की बारात नाव पर ही आती है और उसकी विदाई भी नाव पर होती है. कोई बीमार पड़ता है उसे नाव पर ही लाद कर कुशेश्वर स्थान पीएचसी ले जाते हैं. बाढ़ के दिनों में अगर किसी का देहांत हो जाता है तो उसकी अंतिम यात्रा भी नाव पर ही निकाली जाती है और अंतिम संस्कार के लिए नाव ही घाट तक ले जाती है. 

 

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15 से 50 हजार तक की है कीमत

नाव के एक कारीगर उपेंद्र प्रसाद ने कहा कि जामुन की नाव की कीमत 15 हजार तक होती है जबकि शीशम की छोटी नाव 50 हजार तक में बिकती है. उन्होंने कहा कि बाढ़ के पहले हर साल उनका नाव बनाकर बेचने का अच्छा धंधा चलता है. वे हर साल 25 से 50 तक नाव बनाकर बेच लेते हैं.

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दूसरे जिलों से भी आते हैं खरीदार

नाव के एक कारोबारी लाल मोहम्मद ने कहा कि हर साल उनके यहां बरसात के पहले सौ से डेढ़ सौ कारीगर काम करने आते हैं. वे हर साल करीब डेढ़ सौ नाव बनाकर बेचते हैं. उन्होंने कहा कि वे 15 हजार से लेकर डेढ़-पौने दो लाख तक की नाव बनाकर बेचते हैं. दूसरे जिले से भी नाव के खरीदार यहां आते हैं.

 

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नाव ही है सबसे बड़ा सहारा

वहीं, कुशेश्वरस्थान पूर्वी अंचल के सीओ त्रिवेणी प्रसाद ने बताया कि इस साल बाढ़ के पहले यहां 87 नावें सूचीबद्ध की गई हैं, जिनमें से 27 का रजिस्ट्रेशन हुआ है. उन्होंने कहा कि इन्हीं नावों से बाढ़ के समय आवागमन होगा. यहां के लोगें के लिए नाव ही आवागमन का सबसे बड़ा सहारा है. 

 

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