दीप नारायण, देवघर : आमतौर पर पुलिसवालों को लेकर आम आदमी में यही धारणा होती है कि कड़क, घूसखोर और जनता के हिमायती नहीं होते हैं, लेकिन जब आप देवघर के एसडीपीओ विकास श्रीवास्तव से मिलेंगे तो आपकी धारणा बदल जाएगी. यह वही अधिकारी हैं जिन्होंने एक किसान के बेटे को एडमिशन के लिए पैसे नहीं मिलने पर अपनी जेब से 40 हजार रुपए दिए थे. आज पुलिस अधिकारी ड्यूटी करते हुए गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने में जुटे हैं.


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विकास श्रीवास्तव प्रतिदिन गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने के लिए निकल जाते हैं. अंबेडकर पुस्तकालय में बच्चों को न सिर्फ पढ़ाते हैं बल्कि उन्हें जीने की कला भी सिखाते हैं.


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जब एक पुलिस अधिकारी समाज को बदलने के उद्देश्य से निकल पड़ता है तो बदलाव भी देखने को मिलती है. बच्चों को पढ़ा रहे देवघर के एसडीपीओ विकास श्रीवास्तव को एक कड़क ऑफिसर के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह इनका दूसरा मानवीय चेहरा है. रोजाना सुबह अंबेडकर पुस्तकालय आकर 200 से ज्यादा बच्चों को पढ़ाते हैं. साथ ही इन्हें भटकने से भी रोकते हैं. इन्हें सही राह दिखाते हैं.


एसडीपीओ विकास श्रीवास्तव का कहना है कि एक तो पुलिसवालों को समय नहीं मिलता, लेकिन जहां समाज को बदलने की बात आती है तो आपको थोड़ा समय निकालना ही पड़ेगा. ऐसे में रोजाना सुबह बच्चों के लिए दो घंटे का समय निकालते हैं. अंबेडकर पुस्तकालय में बच्चों को ज्ञान बांटते हैं. साथ ही अपने अनुभवों को भी उनके साथ साझा करते हैं. जिससे कि बच्चे सीख लेकर आगे चलकर कुछ अच्छा कर सकें.


विकास श्रीवास्तव का मानना है कि आज युवा भटक रहे हैं. ऐसे में इन्हें मोटिवेट करने की जरूरत है. साथ ही पुलिस के प्रति जो लोगों की गलत धारणा है, उसे भी बदला जा सके. अधिकारियों के रोजाना क्लास लेने से स्टूडेंट भी काफी खुश हैं. यहां इन्हें किताबें भी पढ़ने को मिल जाती हैं. इन्हें जीने की कला भी सिखा दी जाती है, जिससे छात्रों में परिवर्तन भी देखा जा रहा है.


यह वही अंबेडकर चौक है जहां 10*10 के टूटे-फूटे कमरे में देवघर के पूर्व एसडीएम और वर्तमान में अंबेडकर पुस्तकालय के संचालक सुधीर गुप्ता ने इस विवादित जमीन को अंबेडकर पुस्तकालय में बदल दिया था. देखते ही देखते दो साल में यह अंबेडकर पुस्तकालय चार मंजिल इमारत बन गया. इसे बनाने में और यहां किताबों को रखने में सबसे ज्यादा अगर किसी का सहयोग मिला तो वह देवघर के सभी अधिकारियों का. सभी अधिकारियों ने चंदा देकर इस पुस्तकालय को खड़ा किया. 20 छात्रों से शुरू किया गया पुस्तकालय आज आठ हजार छात्र का हो गया है. इसलिए संचालक और पूर्व एसडीएम सुधीर गुप्ता कहते हैं कि यह देवघर का धरोहर बन गया है.