कोडरमा:Power Electricity Crisis in Jharkhand:  झारखंड में एक बार फिर बिजली संकट गहरा सकता है. कोयले की कमी के कारण कोडरमा थर्मल पावर प्लांट से लगातार बिजली उत्पादन प्रभावित हो रहा है और प्लांट के दो यूनिट से 500- 500 मेगावाट के जगह 280 से 320 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो पा रहा है. दरअसल प्लांट के दोनों यूनिटों को सुचारू रूप से चलाने के लिए तीन से चार रैक कोयला यानी तकरीबन 14 हजार मीट्रिक टन कोयले की आवश्यकता प्रतिदिन पड़ती है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से कोडरमा के इस थर्मल पावर प्लांट को महज एक या दो रैक कोयले की आपूर्ति हो रही है. जिसके कारण प्लांट में कोयले का स्टॉक भी काफी कम हो गया है और महज एक ही दिन का स्टॉक प्लांट के पास शेष बचा है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

माइंस में भरा पानी
बारिश के दिनों में कोयला माइंस में पानी भर जाने के कारण कोयले के उत्पादन में भी कमी आई है. जिसका खामियाजा पावर प्लांट को भुगतना पड़ रहा है. इस पावर प्लांट से 1000 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाता है, जिसमें से 600 मेगावाट बिजली एमओयू के मुताबिक झारखंड सरकार को दी जाती है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पावर प्लांट से 600 मेगावाट भी बिजली उत्पादित नहीं हो पा रही है. इसके कारण कोडरमा समेत अन्य जिलों में पावर कट की समस्या भी बढ़ी है. अगर जल्द ही कोयले की कमी को दूर नहीं हुई तो बिजली संकट और गहरा सकता है. फिलहाल कोयले की कमी को दूर करने के लिए इस पावर प्लांट में बिजली उत्पादन के लिए 10 प्रतिशत इंपोर्टेड कोल का भी इस्तेमाल किया जा रहा है लेकिन वह काफी महंगा है.


ये भी पढ़ें- Tejashwi Yadav रात में अचानक पहुंचे NMCH, अस्पताल की व्यवस्था देख हुए हैरान


स्थिति बहुत भयावह 
कोडरमा थर्मल पावर प्लांट के मुख्य अभियंता एनके चौधरी ने बताया कि कई कारणों से प्लांट प्रबंधन को कोयले की कमी झेलनी पड़ रही है और काफी एफर्ट लगाकर कोयला मंगाना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कोयले की कमी के कारण प्लांट अपनी क्षमता के अनुसार बिजली उत्पादन नहीं कर पा रहा है. अप्रैल महीने में भी कोयले की कमी के कारण प्लांट से बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ था, लेकिन इस बार स्थिति अप्रैल महीने से भी ज्यादा भयावह है. दोनों यूनिट से क्षमता के अनुसार महज आधा हिस्सा ही बिजली उत्पादित हो रही है. चीफ इंजीनियर एनके चौधरी के मुताबिक कोयले की कमी को देखते हुए इस पावर प्लांट को मिनिमम टेक्निकल सपोर्ट के आधार पर संचालित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है. अगर एक बार इस प्लांट से बिजली उत्पादन बंद हो गया तो दोबारा लाइट अप करने में भी लाखों करोड़ों रुपए के खर्च आएंगे.