धनबाद : धनबाद के IIT-ISM ने एक नई तकनीक से एग्रीकल्चर के वेस्ट मटेरियल से बायोकोल तैयार करने का उपकरण बनाया है. इस तकनीक का उपयोग करके स्टील प्लांट और थर्मल प्लांट में हो रहे कोल के जलने से उत्पन्न होने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड को कम किया जा सकता है और इससे पर्यावरण को भी फायदा होगा. इस प्रक्रिया को विकसित करने में संस्थान के केमिकल एंड इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट के कार्यरत असिस्टेंट प्रो. इजाज अहमद ने बताया कि इस मशीन की डिजाइनिंग संस्थान में हुई और उसे फेबीरकेटर से बनाया गया. इस मशीन की लागत 22 लाख रुपये है और इसे जगह-जगह स्थापित करके भारत में बायोकोल तैयार किया जा सकता है. 


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प्रो. इजाज अहमद ने बताया कि बायोकोल बनाने के लिए एग्रीकल्चर से मिलने वाले जैसे घास फुस, गन्ने का रस निकालने के बाद का वेस्ट मटेरियल उपयोग किया जाता है. इसे मशीन के एक भाग में डाला जाता है और फिर उसे 600 डिग्री के तापमान में जलाया जाता है. इससे बनने वाला बायोकोल फिर से प्लांटो में कोल के साथ मिलाकर उपयोग के लिए तैयार होता है. इस प्रक्रिया से कार्बन डाई ऑक्साइड की अधिकता को कम किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को बचाने में मदद हो सकती है.


अहमद ने बताया कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसमें 70 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं. इसलिए, इस मशीन को विभिन्न स्थानों पर स्थापित करके बायोकोल तैयार करने का कार्य किया जा सकता है, जो कि देश को उन्नति की दिशा में मदद कर सकता है. पर्यावरण में तेजी से बढ़ रहे कार्बन डाई ऑक्साइड की वजह से विश्वभर में ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे मानव जीवन को खतरा है. इस प्रकार की तकनीक से कार्बन डाई ऑक्साइड की अधिकता को कम करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसमें जगह-जगह इस मशीन को स्थापित करके बायोकोल तैयार करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने से न केवल उत्सर्जन को कम किया जा सकता है, बल्कि यह एक सस्ता और प्रभावी तरीका हो सकता है जो कृषि सेक्टर को भी बढ़ावा दे सकता है. इस तकनीक की वजह से होने वाले फायदों के साथ-साथ यह पर्यावरण के लिए भी एक कदम हो सकता है जिससे हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं.


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