Lok Sabha Election 2024: संयोग देखिए, बिहार में चंपारण से ही वोटों की गिनती शुरू होती है. चाहे वो विधानसभा हो या फिर लोकसभा. बिहार भाजपा के विधायकों या फिर सांसदों की संख्या बढ़ाने में चंपारण की धरती का अहम रोल रहा है. यह कहने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि चंपारण की धरती भारतीय जनता पार्टी के लिए केजीएफ यानी कोलार गोल्ड फील्ड की तरह साबित हो रही है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं 1989 में भाजपा ने लगातार चंपारण में बेहतर प्रदर्शन किया है. चंपारण की 4 सीटों वाल्मीकिनगर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण और शिवहर में भारतीय जनता पार्टी ने लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है. बिहार विधानसभा में भी सबसे अधिक विधायक चंपारण से ही भाजपा को मिलते हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

भाजपा के लिए पिछले 20 से 25 सालों में सबसे कठिन चुनाव 2015 का विधानसभा चुनाव रहा, जब जेडीयू और राजद एक साथ आ गए थे और कांग्रेस के अलावा वामदल भी उनके गठबंधन में शामिल थे. भाजपा तब अलग थलग पड़ गई थी. उस कठिन परिस्थिति में भी भारतीय जनता पार्टी ने इस इलाके में शानदार प्रदर्शन किया था. आज की तारीख में भाजपा के अगर 75 विधायक जीते हैं तो उनमें से 15 अकेले चंपारण के दो जिलों पूर्वी और पश्चिमी चंपारण से आते हैं.


चंपारण की धरती भारतीय जनता पार्टी के लिए इतनी उर्वर हो चुकी है कि यहां राजद का माई समीकरण भी काम नहीं कर पाता है. आज की तारीख में चंपारण की चारों लोकसभा सीटें भाजपा और जेडीयू गठबंधन के पास है और यह पहली बार नहीं है. पिछले तीन चुनावों से ये चारों सीटें एनडीए के पास ही हैं. 2014 में जब जेडीयू भाजपा से अलग हो गई थी, तब भी भाजपा ने जेडीयू को हराकर वाल्मीकिनगर की सीट जीत ली थी. अभी जेडीयू के सुनील कुमार वाल्मीकिनगर के सांसद हैं. 


पश्चिमी चंपारण के सांसद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, पूर्वी चंपारण के सांसद राधामोहन सिंह तो शिवहर की सांसद रमा देवी हैं. संजय जायसवाल से पहले बेतिया के सांसद डा. मदन जायसवाल हुआ करते थे. मोतिहारी के सांसद राधामोहन सिंह और शिवहर की सांसद रमा देवी भले ही राजनीतिक संन्यास की उम्र में पहुंच रहे हैं पर चंपारण की धरती में भाजपा और एनडीए एक तरह से रच बस गया है. 


2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने वाल्मीकिनगर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण और शिवहर की सभी 24 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई थी, बावजूद इसके विधानसभा चुनाव में एनडीए 6 सीटों पर पीछे हो गया. पूर्वी और पश्चिमी चंपारण में एनडीए को 21 में से 17 सीटें मिलीं थीं तो इनमें से अकेले भाजपा के पास 15 सीटें थीं. 2 सीटें जेडीयू को हासिल हुई थीं. 


यह भी पढ़ें: पटना में किया इतना बड़ा जलसा फिर भी तेजस्वी यादव को क्यों नहीं मिल रहे सहयोगी दल?


अब बात करते हैं तिरहुत कमिश्नरी की. इस कमिश्नरी में भाजपा ने 31 में से 25 सीटों पर बढ़त हासिल की थी. 2015 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा 18 सीटों पर हावी रही थी. वो भी तब, जब वो भाजपा के लिए सबसे कठिन चुनाव था. उस समय जेडीयू, राजद और कांग्रेस एक साथ चुनाव मैदान में थे.