पटना में किया इतना बड़ा जलसा फिर भी तेजस्वी यादव को क्यों नहीं मिल रहे सहयोगी दल?
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पटना में किया इतना बड़ा जलसा फिर भी तेजस्वी यादव को क्यों नहीं मिल रहे सहयोगी दल?

Bihar Lok Sabha Election 2024: साल 2024 में जो भी सहयोगी दल एनडीए में दिख रहे हैं, वे सारे 2019 में उधर यानी महागठबंधन की तरफ थे. एनडीए में केवल भाजपा, जेडीयू और लोजपा थे तो महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वामदलों के अलावा वीआईपी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल थे. तेजस्वी यादव ने राजद के लिए 19 सीटें छोड़ बाकी सभी सीटें सहयोगी दलों में बांट दी थी. नतीजा क्या हुआ, कांग्रेस के किशनगंज से उम्मीदवार डॉ. मोहम्मद जावेद ने महागठबंधन की लाज रख ली, नहीं तो महागठबंधन 0 पर आउट हो जाता. 

तेजस्वी यादव, पूर्व डिप्टी सीएम, बिहार

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव करीब आते ही जेडीयू अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजद का साथ छोड़ दिया. उसके बाद राजद ने जीतनराम मांझी की हम को अपने पाले में लाने की कोशिश की पर नाकामी हाथ लगी. उसके बाद भाजपा और जेडीयू के कुछ विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश हुई पर वह भी परवान नहीं चढ़ सकी. उसके बाद अब तेजस्वी यादव और महागठबंधन की ओर से चिराग पासवान को बड़ा आफर दिया गया. उन्हें बिहार की 8 और यूपी की 2 सीटें देने की बात कही गई पर चिराग पासवान हैं कि टस से मस नहीं हुए. अब बची एकमात्र विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी. उसके बारे में भी कहा जा रहा है कि वह एनडीए में शामिल होने वाली है और एक सीट उसे दी जा सकती है. आश्चर्य की बात यह है कि एनडीए में भाजपा 2-2 सीटों का आफर देकर दलों को अपने पाले में कर ले रही है और इंडिया या महागठबंधन 7 या 8 सीटें देने के बाद भी खाली हाथ रह जाता है. आलम यह है कि राजद, कांग्रेस और वामदलों को अपने परंपरागत वोटबैंक के अलावा कहीं से अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ होता नहीं दिख रहा है और जब तक अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ नहीं होता, तब तक महागठबंधन माई (MY) समीकरण तक ही सीमित रह सकती है और बाप (BAAP) तक नहीं पहुंच सकती, जिसका नारा तेजस्वी यादव आजकल जनविश्वास यात्रा में देते नजर आ रहे थे.

महागठबंधन में कौन कौन दल शामिल?

महागठबंधन की बात करें तो इसमें सबसे बड़े दल के रूप में राष्ट्रीय जनता दल है. उसके बाद कांग्रेस का नंबर आता है और तीसरे नंबर पर भाकपा माले या यूं कहें कि सभी वामदल. तो कुल मिलाकर महागठबंधन में राजद, कांग्रेस और वामदल ही हैं और इन सबका बेस वोट बैंक मुस्लिम और यादव ही हैं. लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के अलावा राजद और महागठबंधन के रणनीतिकार यह बखूबी जानते हैं कि पीएम मोदी से मुकाबला करने के लिए केवल माई समीकरण के होने से कोई फायदा नहीं होने वाला. माई समीकरण तो 1990 के बाद से लेकर आज तक इंटैक्ट बना हुआ है. राजद और कांग्रेस या फिर महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी दिक्कत माई के अलावा बाकी वोटों की गोलबंदी है. इसमें कोई दोराय नहीं कि बिहार में यादव और मुसलमान राजद और महागठबंधन के आधार वोट बैंक हैं. बिहार में इन दोनों की आबादी मिलाकर देखें तो करीब 32 प्रतिशत हो रहा है और एकमुश्त वोट के लिहाज से यह बहुत बड़ा नंबर है. लेकिन दिक्कत की बात यह है कि बाकी सारे वोटों पर भाजपा और एनडीए गठबंधन की दावेदारी है. 

महागठबंधन के पास 32 प्रतिशत तो एनडीए के पास क्या?

अब 100 में से 32 प्रतिशत निकाल दिया जाए तो यह 68 प्रतिशत हो रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि बाकी बचे 68 प्रतिशत वोट भाजपा और एनडीए की ओर सरक जाएंगे. खासतौर से नीतीश कुमार के एनडीए ज्वाइन करने के बाद की बात करें तो. दरअसल, भाजपा ने जहां बिहार के सबसे बड़े कुर्मी नेता नीतीश कुमार को अपने साथ लाने  में सफलता हासिल की है तो सबसे बड़े कोइरी नेता उपेंद्र कुशवाहा भी उसकी के साथ हैं. दलितों में पासवान वोटों का सबसे बड़ा होल्ड चिराग पासवान के पास है और वो भी एनडीए में ही हैं. महादलितों के सबसे बड़े नेता जीतनराम मांझी भी एनडीए में हैं. अब सुनने में आ रहा है कि विकासशील इंसान मोर्चा के नेता मुकेश साहनी भी भाजपा के संपर्क में हैं. मुकेश साहनी निषाद यानी मछुआरा समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं. मुकेश साहनी अगर साथ में आ जाते हैं तो मछुआरा समाज का वोट भी भाजपा के पाले में आ सकता है.

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तेजस्वी यादव को क्यों नहीं मिल रहे सहयोगी दल?

अब सवाल यह है कि राजद, कांग्रेस और वामदलों को ऐसे सहयोगी क्यों नहीं मिल रहे हैं जो माई समीकरण के अलावा भी अपना प्रभाव रखते हों. दरअसल, ऐसे सारे सहयोगी दूधे के जले हुए हैं और छांछ भी फूंक-फूंककर पीना चाह रहे हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि 2024 में जो भी सहयोगी दल एनडीए में दिख रहे हैं, वे सारे 2019 में उधर यानी महागठबंधन की तरफ थे. एनडीए में केवल भाजपा, जेडीयू और लोजपा थे तो महागठबंधन में राजद, कांग्रेस, वामदलों के अलावा वीआईपी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल थे. तेजस्वी यादव ने राजद के लिए 19 सीटें छोड़ बाकी सभी सीटें सहयोगी दलों में बांट दी थी. नतीजा क्या हुआ, कांग्रेस के किशनगंज से उम्मीदवार डॉ. मोहम्मद जावेद ने महागठबंधन की लाज रख ली, नहीं तो महागठबंधन 0 पर आउट हो जाता. उस चुनाव में महागठबंधन 39-0 से हारा था. आलम यह है कि उसी के चलते आज लोकसभा में न तो राजद, हम, रालोसपा अब रालोमो आदि के एक भी सांसद नहीं हैं. इसलिए 2024 में तेजस्वी यादव के साथ कोई भी दल सहयोगी के रूप में नहीं आना चाह रहा है.

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