रांची : झारखंड में मछली पालन से किसानों की आय बढ़ाने में लगी है. राज्य सरकार के प्रयास से लातेहार के सोपरम गांव के किसान अब मछली पालन के जरिए आर्थिक रुप से संपन्न हो रहे हैं. मछली पालन से लोगों को रोजगार भी मिल रहा है और पलायन भी खत्म हो रहा है.


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सोपरम गांव के लोग कुछ साल पहले तक गोलियों की गूंज की दहशत में रहते थे, लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास की कोशिशों का ही नतीज़ा है कि इस गांव की तस्वीर बदल गई है. इस गांव में अब ना केवल नक्सलियों का आतंक खत्म हो गया है, बल्कि गांव की सूरत भी बदल रही है. सरकार के सार्थक प्रयास से लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए गांव में स्थित बांध में मछली पालन के लिए जागरुक किया गया. और इसी का नतीजा है कि गांव में एक ओर खुशी लौट रही है, तो वहीं दूसरी और नीली क्रांति का प्रसार भी हो रहा है.


मछली पालक गणेश गंझू ने बताया कि सोपरम गांव माओवादियों का गढ़ था. गांव वाले मछलियों के लिए चारा डालते थे, वो सब मारकर ले जाते थे. लेकिन धीरे-धीरे ने प्रयास किए और उसके बाद हम लोग अपने लिए मछली मारने लगे हैं. एक अन्य मछली पालक मुकेश कुमार ने बताया कि यहां पहले माओवादी लोग रहते थे, इसके कारण हम लोग खुशहाल जिंदगी नहीं जी पाते थे. अभी यहां सोपरम गांव में डैम बना तो यहां के लोगों ने मछली पालन शुरू कर दिया. 



सरकारी आकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में लोग रोजगार की तलाश मे दूसरे राज्य में पलायन कर रहे थे. मत्स्य अधिकारी का मानना है की इस क्षेत्र में सैकड़ों किसान मत्स्य पालन से जागरुक होकर ना केवल बेहतर मछली पालन के लिए प्रशिक्षण लिया, बल्कि मछली पालन कर अच्छी कमाई भी कर रहे हैं.


जिला मत्स्य अधिकारी ने बताया कि कृषि की बात करें तो कृषि में किसान सिर्फ खेती-बाड़ी, फसल उगाते हैं, लेकिन कृषि के अंदर मछली पालन, बतख पालन, सुअर पालन, बकरी पालन भी आता है. पहले यहां के बच्चे गांव के स्कूल भी नहीं जाते थे. अब प्राइवेट स्कूल में भी बच्चे जाने लगे हैं. यह सब संभव हुआ है मछली पालन से.


रघुवर सरकार के सार्थक प्रयास से सोपरम गांव में हर ओर खुशहाली का आलम है, मछली पालन से जागरुक होकर जहां ग्रामीणों का पलायन थमने लगा है. वहीं मछली बेचकर यहां के किसान आर्थिक रुप से मजबूत भी हो रहे हैं.