नवादाः हरिवंश राय बच्चन बच्चन की एक कविता की कुछ पंक्तियां है. लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. हार न मानने की ऐसी ही कोशिश की नवादा शहर की रहने वाली अरुणिमा ने. जिन्होंने सिविल जज बनकर ना सिर्फ अपने परिवार बल्कि पूरे जिले का नाम रोशन किया है.


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दो बार मिली असफलता
अरुणिमा ने मैट्रिक की परीक्षा राजकीय कन्या इंटर विद्यालय नवादा से पास की है. वहीं इंटर और ग्रेजुएशन की पढ़ाई आरएमडब्ल्यू कॉलेज से पूरी की है. उसके बाद विधि महाविद्यालय नवादा से उन्होंने लॉ की पढ़ाई पूरी की. इस दौरान उन्होंने सिविल जज बनने का सपना देखा और अपने इसी सपने को सच करने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया. यहां उन्होंने कोचिंग कर सिविल जज की तैयारी की. दो बार परीक्षा भी दी, लेकिन दोनों ही बार सफलता नहीं मिली. बावजूद इसके अरुणिमा ने हार नहीं मानी और एक बार फिर से अपने मजबूत इरादों से अपने सपने को साकार करने लग गई. जिसका नतीजा सभी के सामने है. अरुणिमा ने तीसरे प्रयास में सिविल जज की परीक्षा पास कर ली.


शुरू से रहीं मेधावी छात्रा
अरुणिमा के पिता रिटायर्ड दारोगा है, जिनका नाम दिनकर दयाल हैं. वहीं मां रिटायर्ड शिक्षिका घनश्याम देवी हैं. अरुणिमा तीसरे नंबर की है. बड़ी बहन चंद्रप्रभा पटना में कार्यक्रम पदाधिकारी के पद पर पोस्टेड हैं. वहीं दूसरी बहन शशिप्रभा बैंक में पीओ के पद पर कार्यरत हैं. तीसरे नंबर पर खुद अरुणिमा है. अरुणिमा से छोटी बहन और दोनों छोटे भाई भी कंपटीशन की तैयारी कर रहे हैं. अरुणिमा के पिता बताते हैं कि उनकी बेटी शुरू से ही पढ़ाई में काफी होशियार थी.


जिले की पहली सिविल जज बनी
अरुणिमा की इस कामयाबी ने उसके परिवार का मान तो बढ़ाया ही और साथ ही पूरे शहर का नाम भी रोशन किया. दरअसल, अरुणिमा नवादा जिले से सिविल जज बनने वाली पहली लड़की हैं. यही वजह है कि उनकी इस कामयाबी से परिवार के साथ ही पूरे जिले को लोगों में खुशी का माहौल है. अरुणिमा के घर बधाइयों का तांता लगा हुआ है. दूर-दूर से लोग परिवार को मुबारकबाद देने आ रहे हैं. अरुणिमा की इस कामयाबी ने साबित कर दिया कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है.


इनपुट-यशवंत सिन्हा


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