Bihar Temple: यहां गिरा था माता सती के शरीर का एक अंग, बली देने की यहां है मनाही, जानें क्यों
मां सत्य चंडी धाम औरंगाबाद का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है. बिहार के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर रायपुरा गांव में स्थित पहाड़ों की तलहटी में मां सत्य चंडी धाम बसा है.
औरंगाबाद : मां शक्ति की भक्ति में लीन भक्तों के लिए माता का त्योहार नवरात्रि का यह आठवां दिन है. आज मां महागौरी की पूजा अर्चना की जा रही है. ऐसे में हम बिहार के एक ऐसे शक्ति पीठ के बारे में बताने जा रहे हैं. जहां मां सती के शरीर का एक अंगर गिरा था और यहां आज भी भक्त मां के सामने अपनी मन की मुराद लेकर आते हैं और अपनी मन्नते के अनुसार मां से वर पाते हैं.
मां सती का हाथ और रक्त बिंदु यहां गिरा है
हम बात कर रहे हैं मां सत्य चंडी धाम औरंगाबाद की, इस मंदिर का इतिहास त्रेतायुग से जुड़ा हुआ है. बिहार के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर की दूरी पर रायपुरा गांव में स्थित पहाड़ों की तलहटी में मां सत्य चंडी धाम बसा है. यहां के बारे में मान्यता है कि जब मां सती के शरीर को कंधे पर लेकर भगवान शिव जा रहे थे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर के कई खंड कर दिए, इसी में से मां सती के शरीर का एक भाग मां का हाथ और रक्त बिंदु सत्यचंडी मंदिर में गिरा है. इस स्थान का जिक्र भागवत पुराण में भी है.
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200 साल पहले की बलि की प्रथा आखिर क्यों बंद करनी पड़ी
मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां आसपास रहनेवाले भील जाति के लोग मां की पूजा करते थे और मां के सामने बली देते थे. यह प्रथा चली आ रही थी, इसकी वजह से इलाके में गरीबी और बीमारियों का ग्रास रहता था. ऐसे में 60 साल पहले यहां संत अलख बाबा का आगमन हुआ. उन्होंने यहां के स्थानियों को बताया कि मां को बलि नहीं चाहिए इसके बाद से यहां से यह प्रथा खत्म कर दी गई. यहां बाबा के मना करने के बावजूद एक व्यक्ति ने बलि देने की कोशिश की तो उसके तलवार के दो टुकड़े होकर तलवार हाथ से छूट गई थी. इसके बाद से इस प्रथा पर विराम लग गया. बाबा ने यहां महायज्ञ किया और शक्ति पीठ की स्थापना कर इसका नाम सत्यचंडी मंदिर रखा. यहां के बारे में मान्यता है कि यहां आए भक्तों की हर मुराद मां पूरी करती हैं. कहते हैं कि यहां आकर मां के रक्तरंजित हाथ का जो भी दर्शन करते हैं उनकी सभी मन्नतें पूरी होती है.
वृक्ष के नीचे विराजती हैं मां
मंदिर के गर्भगृह में जहां माता विराजमान हैं वहां एक वृक्ष है. यह वृक्ष कितना पुराना है इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. लोग कहते हैं कि अनादि काल से यह वृक्ष यहां है. इसी वृक्ष के छांव तले मां विराजती हैं. ऐसे में श्रद्धालु मां के साथ इस वृक्ष की भी पूजा करते हैं.