गया: ऐसे तो गया और बोधगया की पहचान 'ज्ञानस्थली' और 'मोक्ष की धरती' के रूप में होती है, लेकिन इसी गया की धरती पर एक ऐसी पाठशाला (गुरुकुल) भी है जहां वेद और कर्मकांड के ज्ञाता भी तैयार हो रहे हैं. सबसे बड़ी बात है कि यहां शिक्षा ग्रहण के लिए न जाति का बंधन है और नहीं उम्र की सीमा.


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विष्णु पद वाले शहर में भविष्य के गुरु यानी पंडित तैयार हो रहे हैं. विष्णुपद मार्ग में स्थित गुरुकुल 'मंत्रालय रामाचार्य वैदिक पाठशाला' में एक सौ से ज्यादा छात्र वेद के साथ पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान, ज्योतिष, कर्मकांड सीख रहे हैं. यहां के छात्र शिक्षा पूरी करने के बाद अपने शहरों में जाकर गुरु की भूमिका निभाते हैं.


भारतीय संस्कृति में गुरु उन्हें माना जाता था जो वेद, शास्त्र, उपनिषद का अध्ययन करते हैं और पूजा-पाठ, यज्ञ- अनुष्ठान के मंत्र जानते हैं. भले ही आधुनिक जीवन में गुरु का स्थान स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को प्राप्त हो गया है लेकिन पारंपरिक रुप से अभी भी पूजा-पाठ कराने वाले पंडित ही गुरु माने जाते हैं.


पिछले 48 वर्षो से गया में चल रहे इस गुरुकुल से 10 हजार से अधिक छात्र शिक्षा पूरी कर अपने शहरों या गया में वेद, पूजा-पाठ, ज्योतिष और कर्मकांड के क्षेत्र में गुरु की भूमिका निभा रहे हैं.
गया क्षेत्र में गुरु श्री मंत्रालय पंडित रामाचार्य स्वामी महाराज ने इस गुरुकुल की स्थापना की थी और उसी को अब उनके पुत्र पंडित राजा आचार्य द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है.


पंडित राजा आचार्य ने बताया कि पिछले 48 वर्षो से इस 'गुरुकुल' द्वारा विद्यार्थियों को नि:शुल्क सनातनी शिक्षा दी जा रही है. दूर-दराज से आए विद्यार्थी यहां वेद, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु, कर्मकांड व अनेकों स्त्रोत पाठ सीख रहे हैं.


राजा आचार्य ने बताया कि प्राचीन वर्षो में वैदिक सनातन धर्म की रक्षा के लिए अनेकों अनेक गुरुकुल पाठशालाएं चलती थी, लेकिन कलांतर में यमन, मुगल एवं अन्य विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय सनातन संस्कृति को नष्ट किया. अनेक विद्यापीठ, गुरुकुल एवं पुस्तकें जला दी गई. उन्होंने बताया कि अब कुछ ही वेद पाठशालाएं हैं जिनमें सनातन संस्कृति को बचाने के उद्देश्य से विद्यार्थियों को भारत के भविष्य निर्माण के लिए तैयार किया जा रहा है.


उन्होंने कहा कि यहां वेद, धर्मशास्त्र, ज्योतिष व कर्मकांड के लिए कोर्स चलाए जाते हैं. वेद के लिए पांच वर्ष, कर्मकांड के लिए तीन वर्ष और ज्योतिष के लिए दो वर्षो का पाठ्यक्रम है. पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश स्थित मंत्रालय में श्री गुरुसार्वभौम संस्कृत विद्यापीठ से उन्हें सर्टिफिकेट भी मुहैया कराया जाता है.


राजा आचार्य दावा करते हैं कि 48 वर्ष पूर्व इस गुरुकुल की शुरूआत हुई थी. यहां से शिक्षित विद्यार्थी आज देश के साथ विदेशों में भी सेवा दे रहे हैं. इस गुरुकुल में किसी भी विद्यार्थी से कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता है. वे कहते हैं, धर्म, संस्कृति व वैदिक सभ्यता को बचाने के लिए गुरुकुल की स्थापना श्री रामाचार्य जी द्वारा की गई थी. इन 48 वर्षो में गुरुकुल ने काफी उतार-चढ़ाव देखे. आज गुरुकुल में करीब 100 विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
 
राजा आचार्य कहते हैं कि इस गुरुकुल में किसी भी जाति और पंथ का कोई भी व्यक्ति किसी भी उम्र में आकर शिक्षा ग्रहण कर सकता है. यहां आवासीय व्यवस्था है लेकिन उम्र देखने के बाद ही आवासीय सुविधा दी जाती है.


उन्होंने कहा कि कई वटुक (छोटे बच्चे) विद्यार्थी अन्य शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं तो उन्हें गुरुकुल द्वारा अन्य संस्थानों में भी नामांकन कराया जाता है. उन्होंने कहा कि इस गुरुकुल की स्थापना का उद्देश्य सनातन परंपरा को आगे बढ़ाना है.


इस गुरुकुल में शिक्षा ले रहे एक छात्र जो कर्मकांड की शिक्षा ले रहे हैं, ने बताया कि कर्मकांड की शिक्षा लेने के बाद वे गया में सही उच्चारण और सही तरीके से पिंडदान करवा सकेंगे. शिक्षा ग्रहण करने के बाद रोजगार खोजने की आवश्यकता नहीं है.


(आईएएनएस)