पटनाः बिहार के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की कार्यशैली पर कुलाधिपति राज्यपाल लालजी टंडन सवाल उठा रहे हैं, तो विपक्ष पूरे मुद्दे को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है. कह रहा है कि शिक्षा में सुधार के लिए कड़ा कानून बना कर काम करना चाहिये, ताकि बिहार का भविष्य सुरक्षित रह सके.


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बिहार में उच्च शिक्षा की हालत किसी से छुपी नहीं है. तीन साल की डिग्री के लिए पांच से सात साल तक इंतजार करना पड़ता है. मूल्यांकन, ऑनलाइन व्यवस्था जैसी चीजों में विश्वविद्यालय पिछड़े हुये हैं. राजभवन से जो दिशा निर्देश जारी होते हैं, उनका पालन पूरी तरह से नहीं होता है, जिसका नतीजा राज्यपाल के गुस्से के रूप में सामने नजर आता है.


राज्यपाल ये बात कुलपतियों के साथ हो रही बैठक में कह रहे थे, तो वहां डिप्टी सीएम सुशील मोदी, शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा और शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आरके महाजन मुख्यरूप से मौजूद थे. वास्तव में परेशानी भी यही है, छात्र-छात्राओं की पढ़ाई तक का कैलेंडर कई विश्वविद्यालय समय से नहीं बना पाते, तो पढ़ाई तो दूर की बात है. विपक्ष इसी को लेकर सरकार को आइना दिखा रहा है. 


सरकार में शामिल दलों को भी इस बात का पूरी तरह से एहसास है. भाजपा कोटे से मंत्री राणा रणधीर सिंह कहते हैं. सवाल वाजिब है, लेकिन हमारी प्रतिबद्धता काम को लेकर है. हमारे सामने जो गलतियां आयी हैं, उन पर सरकार एक्शन लेगी. 


बिहार के विश्वविद्यालयों में शिक्षा की हालत सुधरे, इसको लेकर राजभवन स्तर से सालों से कवायद चल रही है, लेकिन अब तक सिरे नहीं चढ़ सकी है. यही वजह है कि राजभवन के आदेश फाइलों में दम तोड़ रहे हैं और छात्रों का भविष्य लागातार अंधकारमय होता जा रहा है. कहा गया था कि 2019 के दिसंबर तक सभी चीजें ठीक कर ली जायेंगीं, लेकिन जिस तरह की स्थिति है, उससे ऐसा नहीं लगता है.