Patna: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का नाम उन राजनेताओं में शामिल है, जिन्होंने भारतीय राजनीति में कभी ना मिटने वाली लकीर खींची है. बतौर प्रधानमंत्री उनका कार्यकाल तो छोटा रहा, लेकिन जबतक वे पद पर रहे अपने तेवर के साथ रहे. वे उदारीकरण के खिलाफ आजीवन संघर्ष करते रहे. हालांकि, 17 अप्रैल 1927 को चंद्रशेखर की जन्मतिथि बताई जाती है, लेकिन लोकसभा की आधिकारिक वेबसाइट पर उनकी जन्मतिथि 1 जुलाई 1927 अंकित है.


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चंद्रशेखर के चाहनेवाले उन्हें 17 अप्रैल को याद करते हैं. दरअसल, चंद्रशेखर का जन्म पूर्वी उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी का एक किसान परिवार में हुआ था. स्कूली शिक्षा भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज में हुई और इलाहाबाद विश्वविद्यालय (Allahabad University) से उन्होंने एमए की डिग्री ली. 1962 में वे पहली बार राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और 1977 में पहली बार बलिया लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. 10 नवंबर 1990 से लेकर 21 जून 1991 तक वे भारत के प्रधानमंत्री रहे.


इधर, बतौर पीएम अपने छोटे से कार्यकाल के बाद चंद्रशेखर जब समाजवादी जनता पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़ रहे थे तो उन्होंने नारा दिया था '40 साल बनाम 4 महीने'. युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर का अंदाज़ ही ऐसा था जो सियासत में विरल ही मिलता है. संसद में तो ख़ैर उतनी बेबाकी से बोलने वाले अब आते ही नहीं हैं. 


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1964 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होते वक्त इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने चंद्रशेखर से पूछा कि आप तो समाजवादी हैं फिर कांग्रेस में शामिल क्यों होना चाहते हैं? इसपर चंद्रशेखर ने कहा था कि अगर कांग्रेस को समाजवादी नहीं बना पाया तो पार्टी तोड़ दूंगा. चंद्रशेखर अपने वादे के पूरे निकले. 


कांग्रेस वर्किंग कमेटी का मेंबर होते हुए उन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किए गया. जब केंद्र की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया तो चंद्रशेखर पहले अध्यक्ष बने. यही वजह है कि आजीवन उन्हें उनके करीबी अध्यक्ष जी ही कहते रहे. 


जब चंद्रशेखर ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया, तो राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने महाराष्ट्र के तब के सीएम शरद पवार (Sharad Pawar) को उनके पास भेजा. शरद पवार ने कहा कि कांग्रेस चाहती है कि आप इस्तीफा ना दें. तब चंद्रशेखर ने कहा था 'जाके कह दीजिये राजीव से, चंद्रशेखर उनमें से नहीं जो दिन में तीन बार अपने फैसले बदलते हों.'


चंद्रशेखर की मौत मल्टिपल मायलोमा (प्लाज्मा कोष कैंसर) की वजह से 8 जुलाई 2007 को दिल्ली में हुई. लेकिन चंद्रशेखर आजीवन बागी रहे, सत्ता में रहते हुए भी, सत्ता से बाहर रहकर भी. वहीं, एक बार चंद्रशेखर ने सदन में कहा था-


चमन को सींचने में पत्तियां भी कुछ झड़ गई होंगी, 
यही इल्जाम लग रहा है मुझ पर बेवफ़ाई का. मगर कलियों को रौंद डाला जिन्होंने अपने हाथों से, 
आज वही दावा करते हैं इस चमन की रहनुमाई का.