Patna: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Womens Day) के मौके पर हम उन महिलाओं की चर्चा करते हैं, जिनकी उपलब्धि दूसरों के लिए मिसाल मानी जाती है, जहां भी महिलाओं की कामयाबी की बात आती है वहां उनके नाम का जिक्र जरूर होता है और ऐसी ही एक महिला हैं जो बिहार से ना सिर्फ ताल्लुक रखती हैं, बल्कि जिन्हें बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

साधारण महिला से किया CM तक सफर 
दरअसल, हम बात कर रहे हैं आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) की पत्नी राबड़ी देवी (Rabri  Devi) की, जिनकी कामयाबी उन्हें देश की चुनिंदा महिलाओं की कतार में आगे खड़ी करती है. आज राबड़ी देवी की बात इस लिए की जा रही है क्योंकि एक साधारण और बेहद सादगी पसंद महिला जो कभी किसान परिवार से वाबस्ता थी. जिसकी सोच, समझ और सपने सिर्फ गृहस्थ जीवन के ईर्द-गिर्द घूमते थे, वो अचानक सियासत के शिखर पर पहुंच कर खुद को कैसे एडजस्ट करती हैं.


किचन की कुंजी से सत्ता के शिखर तक तय किया सफर
जिसके हाथों कल तक किचन की कुंजी थी वो अगले दिन बिहार जैसे सूबे की मुख्यमंत्री बन जाती है. हालांकि, शादी के बाद से राबड़ी देवी का सामना सियासी माहौल से पड़ चुका था और फिर हालात ने उन्हें सियासत का गुर सिखा दिया. जिंदगी के अनुभव ने उन्हें सूबे की सरकार चलाना भी सीखा दिया. अब राबड़ी देवी एक परिपक्व राजनेता बन चुकी हैं.



भागमनी से राबड़ी कैसे हुआ नाम?
गोपालगंज जिले के हथुआ अनुमंडल के सेलार कलां गांव में राबड़ी देवी का जन्म एक संपन्न किसान परिवार में हुआ. बचपन में मां-बाप ने उनका नाम भागमनी रखा था. जो बाद में बदल गया और राबड़ी देवी हो गया. उनका नाम भागमनी से राबड़ी कैसे हुआ एक बार उनकी मां ने बताया था. गांव के लोग बचपन में राबड़ी देवी को गोद में खिलाते थे तो रबड़ी कहते थे.('गांव के बाबू लोग दियरखा में चिपका कर उसे खेलाते थे और रबड़ी-रबड़ी कहते थे') तब से उसका नाम पहले रबड़ी और बाद में राबड़ी हो गया.


राबड़ी ने हर कदम दिया लालू का साथ
राबड़ी देवी के पिता शिव प्रसाद चौधरी अपनी बेटियों की शादी पढ़े-लिखे और होनहार लड़के से करना चाहते थे. राबड़ी देवी की शादी के लिए जब वे लड़के की तलाश में थे तब उनकी नजर फुलवरिया गांव के रहने वाले लालू यादव पर टिक गई. लालू यादव की शिक्षा और प्रतिभा से प्रभावित होकर शिव प्रसाद चौधरी ने बेटी राबड़ी देवी की उनसे शादी कर दी. गौना के बाद ससुराल जाने पर राबड़ी देवी ने वहां के हालात को समझा और हर कदम लालू यादव का साथ दिया.



तीन बार मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी
चारा घोटाला में फंसने के बाद लालू यादव को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. तब 25 जुलाई 1997 को पहली बार राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनी. दूसरी बार उन्होंने 9 मार्च 1999 को मुख्यमंत्री का पद संभाला और तीसरी बार 11 मार्च 2000 को बिहार की मुख्यमंत्री बनी और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.


देसी और गंवई पंसद बना रहा
प्रदेश की जिम्मेदारी संभालने के साथ-साथ राबड़ी देवी ने अपने परिवार को भी एक कुशल गृहणी के तौर पर संभाला. ससुराल और मायके दोनों को तवज्जो दी. यहां एक वाकए का जिक्र करना चाहूंगा. साल 2002 में गोपालगंज जिले में बाढ़ (Bihar Flood) आई थी. मुख्यमंत्री रहते हुए बाढ़ की समीक्षा के लिए राबड़ी देवी अपने ससुराल के पास सबेया एयरफील्ड आई थीं. उनके साथ लालू यादव भी थे. समीक्षा बैठक के बाद जब उनका हेलिकॉप्टर पटना के लिए उड़ान भरा तभी उनके देवर अपनी कार में एक बोरी परवल लेकर पहुंचे. फिर हेलिकॉप्टर नीचे उतरा और उसमें परवल की बोरी रखी गई. तब दोबारा उड़ान भरा. इसका जिक्र मैंने इसलिए किया कि भले राबड़ी देवी उस वक्त सत्ता के शिखर पर थीं. लेकिन तब भी उनकी देसी और गंवई पसंद बनी हुई थी. 



'ए कलक्टर साहेब...
दरअसल, 'लोकल के लिए वोकल' होना राबड़ी देवी ने लालू यादव से सीखा था. बाढ़ को लेकर जहां समीक्षा बैठक चल रही थी, वहां लालू यादव भी मौजूद थे. बात बाढ़ पीड़ितों के बीच राहत सामग्री बांटने की चल रही थी. तभी लालू यादव ने तपाक से अपने चुटीले अंदाज में कहा कि 'ए कलक्टर साहेब राहत वाले पैकेट में माचीस रखवाना मत भूलिएगा, बाढ़ से बचने के लिए मचान पर बैठा हुआ आदमी बीड़ी जलाने के लिए कहां से दियासलाई लाएगा'.