रामगढ़:Mahashivratri 2023: भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा राष्ट्रीय धरोहर घोषित किए गए कैथा प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास लगभग 350 साल पुराना है. कहा जाता है कि रामगढ़ राज परिवार के दलेर सिंह ने इस गुफानुमा मंदिर को बनवाया था. रामगढ़ राज परिवार के दलेर सिंह बहुत बड़े शिवभक्त थे. दलेर सिंह का यह किला जो अभी राजागढ़ के रूप में माना जाता है. कैथा में शिव मंदिर निर्माण के बाद उन्होंने पांडुलिपि में शिव महिमा पर एक पुस्तक भी लिखी थी. इसमें इस शिव मंदिर का जिक्र भी है. बाद में कई कारणों से दलेर सिंह की पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी थी, लेकिन बनारस के एक संग्रहालय में आज भी पुस्तक सुरक्षित है.


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वर्ष 2006-07 में राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया


ऐसा कहा जाता है कि 1670-71 के दशक में बने इस मंदिर की बनावट में स्थापत्य की अदभुत कला है. इस दो मंजिले मंदिर के बेलनाकार गुंबद व उस काल के लखौरी ईंटों का प्रयोग व मंदिर का निर्माण अपने आप में अद्भुत कला है. मंदिर के पिछले हिस्से के एक कोने की दीवार में नीचे से ऊपर तक दरार आने के बाद भी मंदिर अभी तक सुरक्षित है. इससे इसकी मजबूती का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. मंदिर की बनावट को बारीकी से देखने से लगता है कि मंदिर के ऊपरी भाग में शिव मंदिर तो नीचे गुफानुमा फौजी पोस्ट था. मंदिर के नीचे भाग के चारो ओर छोड़े गए छोटे खिड़कीनुमा दीवार से तैनात राजा के सिपाही तीर-धनुष व अन्य हथियार के साथ तैनात रहते थे.


गुफा के रास्ते पूजा करने जाता था राजपरिवार


कैथा मंदिर के निचले भाग से राजागढ़ दामोदर नदी के किनारे करीब तीन किमी तक सुरंग बनी थी. इसी सुरंग से होकर रामगढ़ राजा व उनका परिवार मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आता-जाता था. मंदिर में पूजा करने आये एक श्रद्धालु ने बताया इस मंदिर की विशेषता यह है कि ये बहुत ही पुराना मंदिर है और इस मंदिर के प्रति लोगों का आस्था और विश्वास जुड़ा हुआ है. इस मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ रहता है. इस मंदिर को भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के द्वारा अपने अंडर में लिया गया है और इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है.


इनपुट- झूलन अग्रवाल