जहानाबाद के असलम को सलाम! दोनों पैर से लाचार फिर भी डिलीवरी बॉय बन घर-घर पहुंचा रहा समान, कहानी रुला देगी
Jehanabad News: बिहार के जहानाबाद जिले के रहने वाले मो. असलम दोनों पैर से लाचार हैं, लेकिन फिर भी वो ट्राई साइकिल से घर-घर जा सामानों की डिलीवरी कर ना सिर्फ अपनी जीविका चलाता है बल्कि बीपीएससी की तैयारी की सामग्री भी खरीदता है.
Jehanabad News: न थक के बैठ अभी तेरी उड़ान बाकी है, जमीन खत्म हुई है, आसमान बाकी है. इन्हीं वाक्यों को चरितार्थ कर रहा है जहानाबाद का मो. असलम. असलम मां-बाप के गुजर जाने और दिव्यांग होने के बावजूद अपने हौसले और मेहनत से किसी पर आश्रित होने के बदले सरकारी योजना से मिली ट्राई साइकिल से निजी कंपनी का ऑन ऑर्डर का डिलेवरी बॉय बन कर अपने सपनों को साकार करने की कोशिश कर रहा है. चलिए हम आपको हौसलों से भरे इस नौजवान के जज्बे की एक अनूठी कहानी को आपको बताते हैं. जिसे जानने के बाद आप भी अपनी कमजोरियों को ताकत बना कामयाबी की राह पर चलने से खुद को रोक नहीं पाएंगे.
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बीपीएससी क्रैक करने का जुनून
अंग्रेजी में एक वाक्य जिसका अनुवाद है 'सफलता पाने के लिए हमेशा अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते रहें' सरकार द्वारा दी गई ट्राई साइकिल के पीछे इसी वाक्य को लिख कर जहानाबाद शहर के शेखालमचक मुहल्ले का यह दिव्यांग युवक घर-घर जा कर निजी कंपनी से आए सामानों की डिलीवरी करता है और इस डिलीवरी से मिलने वाली रकम से ना सिर्फ अपनी जीविका चलाता है बल्कि बीपीएससी की तैयारी की सामग्री भी खरीदता है.
दिव्यांग असलम ने बताया कि बीएड करने के दौरान ही उसकी मां सैरुन निशा का देहांत हो गया, जबकि पिता मो. फजल करीम बचपन में ही गुजर गए थे. किस्मत भी समय-समय पर उसका इम्तिहान लेती रहती है. बचपन में ही लकवा मारने की वजह से वो दोनों पैरों से अपाहिज हो गए थे. रही-सही किस्मत कोरोना काल में खराब हो गई. बीच में उसका एक्सीडेंट हो गया जिसकी वजह से वह चलने फिरने से असमर्थ हो गया.
ऐसे में अपनी जीविका चलाने और अपने सपने को साकार करने के लिए वह घर-घर सामान पहुंचाने लगा. हालांकि, इस कार्य में कठिनाई भी आई और आती रहती है, लेकिन उसके हौसले के सामने वो परेशानी भी बौनी साबित हुई. असलम बताते हैं कि दिव्यांग होने की वजह से कई सामानों की डिलीवरी में परेशानी होती है और कुछ लोगों का नजरिया और व्यवहार भी अलग होता है.
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हालांकि, असलम के हौसले और जज्बे को देख इनपर इकबाल की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं कि खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है.
इनपुट - मुकेश कुमार
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