रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के संथाल परगना इलाके में बांग्लादेशियों की घुसपैठ के मामले में दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को एक बार फिर सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, इंटेलिजेंस ब्यूरो, यूआईएडीएआई और बीएसएफ की ओर से जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई है. झारखंड हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस एके राय की खंडपीठ ने 8 अगस्त को पिछली सुनवाई के दौरान आईबी, यूआईएडीएआई और बीएसएफ को अलग-अलग शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था. गुरुवार को इन केंद्रीय एजेंसियों ने जवाब देने के लिए और चार हफ्ते का वक्त मांगा.


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इस पर कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि झारखंड में आदिवासियों की आबादी कम होती जा रही है और केंद्र सरकार चुप है. झारखंड का निर्माण आदिवासी हितों की रक्षा के लिए किया गया था. लगता है, केंद्र सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों के झारखंड में प्रवेश को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. आईबी हर सप्ताह 24 घंटे काम करती है. लेकिन, बांग्लादेशी घुसपैठियों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल नहीं कर रही है. बीएसएफ की भी घुसपैठियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन प्रतीत होता है कि इस मामले में सकारात्मक रुख नहीं है. 


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अदालत ने इन सभी को जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय देते हुए, अगली सुनवाई की तारीख 5 सितंबर निर्धारित की है. हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को आदेश दिया था कि घुसपैठियों की पहचान सुनिश्चित कराने में स्पेशल ब्रांच की मदद लेकर कार्रवाई करें. संथाल परगना प्रमंडल के सभी छह जिलों के उपायुक्तों को भी आदेश दिया गया था कि लैंड रिकॉर्ड से मिलान किए बिना आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, बीपीएल कार्ड जारी नहीं करें. कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिन दस्तावेजों के आधार पर राशन कार्ड, वोटर कार्ड या आधार कार्ड बनाए गए हैं, वो जायज ही हों, ये नहीं कहा जा सकता. इसकी वजह से राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में भी हकमारी हो रही है. 


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झारखंड हाईकोर्ट में यह जनहित याचिका जमशेदपुर निवासी दानियल दानिश ने दायर की है. इसमें कहा गया है कि जामताड़ा, पाकुड़, गोड्डा, साहिबगंज आदि झारखंड के बॉर्डर इलाके से बांग्लादेशी घुसपैठिए झारखंड आ रहे हैं. इससे इन जिलों में जनसंख्या में कुप्रभाव पड़ रहा है. इन जिलों में बड़ी संख्या में मदरसे स्थापित किए जा रहे हैं. स्थानीय आदिवासियों के साथ वैवाहिक संबंध बनाए जा रहे हैं. उनके अधिवक्ता ने राष्ट्रीय जनगणना के हवाले से हाईकोर्ट के समक्ष जो डाटा पेश किया है, उसके मुताबिक साल 1951 में संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी आबादी 44.67 प्रतिशत से घटकर साल 2011 में 28.11 प्रतिशत हो गई है. इसके पीछे की एक बड़ी वजह बांग्लादेशी घुसपैठ है. अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई तो स्थिति गंभीर हो जाएगी.


इनपुट : आईएएनएस


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