रांचीः साल 2014 में 514 आदिवासी युवकों को नक्सली बता कर सरेंडर कराए जाने के मामले में दायर जनहित याचिका पर झारखण्ड हाइकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान इस मामले में एक नया मोड़ सामने आया. अबतक इस सरेंडर का मास्टरमाइंड कहा जाने वाला रवि बोधरा और सरेंडर करने वाले लगभग 80 युवकों की तरफ से पहली बार कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा गया और कहा गया कि यह सरेंडर फेक नहीं है.


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नक्सली सरेंडर मामले में अब एक नया मोड़ देखने को मिल रहा है. साल 2014 में दायर हुई जनहित याचिका की दर्जनों सुनवाई के बाद इस पूरे सरेंडर का मास्टरमाइंड कहा जाने वाला रवि बोधरा और अन्य 80 युवकों को भी पार्टी बनाया गया और उनकी तरफ से कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा गया.


कोर्ट में कहा गया कि पिछले 2 साल गुमराह किया जा रहा है कि सरेंडर फ़र्ज़ी था जबकि यह सरेंडर असली था. इससे मामले के पक्ष में दलील देकर कोर्ट में नक्सल होने का प्रमाण दिया गया. वहीं, मामले पर रेस्पोंडेंड की तरफ से सीबीआई की जांच या रिटायर्ड जज के नेतृत्व में कमिटी बनाकर जांच की मांग की गई.


अदालत में पुलिस का पक्ष रख रहे अधिवक्ता के मुताबिक पूरी सरेंडर प्रक्रिया तत्कालीन गृह सचिव गृह सचिव, आईजी एस एन प्रधान, एसपी रांची साकेत कुमार सिंह, सीआरपीएफ आईजी डीके पांडे इनकी सहमति से हुई थी.


वहीं, इस मामले पर याचिकाकर्ता राजीव कुमार ने बताया कि जो सरेंडर कराया गया वह कहीं से भी नक्सल नहीं थे. लेकिन राज्य सरकार ने जानबूझकर चार्जशीट की. मुख्य आरोपी वह है जिन्होंने आर्म्स के साथ सरेंडर कराया जेल कैंप में रखा यह सारी बातें जब सरकार के समक्ष आई तो 2014 में सीबीआई को हैंड ओवर कर दिया.


हालांकि राज्य सरकार द्वारा इसे 2017 में कैंसिल कर दिया गया इसीलिए सीबीआई जांच दोबारा कराने को लेकर अपील दायर की गई थी जिस मामले पर आज सुनवाई हुई. शुक्रवार को न्यायालय ने कहा कि 14 दिसंबर को मामले पर पूरी सुनवाई होगी और फाइनल ऑर्डर के लिए केस आगे बढ़ेगी.