झारखंड: राज्यसभा सीट पर JMM की उम्मीदवारी, महागठबंधन से अलग होगी कांग्रेस!
झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कह दिया कि दिल्ली में जैसी बात हुई थी, उम्मीदवारी की घोषणा में वो बात नहीं है. जाहिर है प्रदेश कांग्रेस महुआ माजी के नाम से सहमत नहीं है.
रांची: Rajya Sabha Chunav 2022: राज्यसभा चुनाव के लिए महाठबंधन की तरफ से प्रत्याशी के नाम का ऐलान होने के साथ ही यह सवाल हवा में गूंजने लगा है कि क्या झारखंड में महागठबंधन अंतिम सांसे गिन रहा है. बातचीत के लंबे दौर, रांची से दिल्ली तक की दौड़ और पल-पल बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के बीच आखिरकार झारखंड से महागठबंधन के राज्यसभा उम्मीदवार के नाम से पर्दा उठ गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने जब दिल्ली में उम्मीदवार के नाम का ऐलान किया तो वे खुद एक-एक शब्द सोच-समझकर और संभलकर बोलते नजर आए क्योंकि वह जिस नाम का ऐलान करने जा रहे थे, वह हर किसी को चौंकाने वाला था.
मीडिया से मुखातिब होते हुए जेएमएम के उपाध्यक्ष ने जब महुआ माजी के नाम की घोषणा की तो बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित हैरत में पड़ गए. सियासत के बड़े-बड़े दिग्गजों की दावेदारी के बीच महुआ माजी का नाम चौंकाने वाला रहा क्योंकि राजनीतिक रूप से अभी तक उनकी बहुत बड़ी पहचान नहीं रही है. इतना ही नहीं, उनका नाम कांग्रेस के साथ रिश्ते में कड़वाहट की कीमत पर सामने आया है.
साहित्य से सियासत का सफर
एक बंगाली परिवार में जन्म लेने वाली महुआ की पढ़ाई-लिखाई रांची में ही हुई. उनके दादा ढाका के रहने वाले थे और बाद में बाद में कोलकाता में बस गए, फिर महुआ का परिवार रांची आ गया. महुआ को साहित्य के क्षेत्र में पहली पहचान कथादेश के नवलेखन अंक में छपी उनकी कहानी मोइनी की मौत के जरिए मिली. बाद में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम पर लिखे उनके उपन्यास 'मैं बोरिशाइला' ने महुआ को देश-दुनिया में पहचान दिलायी.
साल 2014 में महुआ ने राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश किया. महुआ ने JMM की प्राथमिक सदस्यता ली और फिर उसी साल उन्हें रांची शहरी क्षेत्र से टिकट भी मिला. 2019 में भी वे विधानसभा चुनाव में तत्कालीन सरकार में मंत्री सीपी सिंह के खिलाफ मैदान में उतरीं, लेकिन नजदीकी मुकाबले में पराजित हो गयीं.
हालांकि महुआ झारखंड मुक्ति मोर्चा की जमीनी कार्यकर्ता के रूप में जुड़ी रहीं और पार्टी की केन्द्रीय समिति की सदस्य भी बनीं. आखिरकार वह दिन आया जब महुआ को उनकी मेहनत का फल मिला और जेएमएम ने राज्यसभा उम्मीदवार के रूप में उनके नाम पर मोहर लगा दी.
नाटकीय रहा गठबंधन के प्रत्याशी का चुनाव
हालांकि महुआ माजी की उम्मीदवारी तय होना इतना आसान नहीं था. पहले तो यही तय नहीं था कि महागठबंधन से किस पार्टी का प्रत्याशी मैदान में उतरेगा. एक तरफ जहां जेएमएम अपनी सीट को किसी भी हाल में खोना नहीं चाह रहा था, वहीं कांग्रेस भी अपनी मजबूत दावेदारी जता रही थी. पल-पल परिस्थियां बदल रही थी. कभी लग रहा था कि जेएमएम का प्रत्याशी तय हो गया है तो अगले ही पल कांग्रेस उम्मीदवार तय होने की बात हवा में तैरने लगती थी.
नामांकन से एक दिन पहले हुए प्रत्याशी का ऐलान
हेमंत सोरेन नाम पर अंतिम सहमति बनाने और गठबंधन को बचाए रखने की जद्दोजहद में दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान तक हाजिरी लगा आए. फिर भी उम्मीदवारी की तस्वीर साफ नहीं हो पा रही थी. नामांकन के अंतिम दिन से ठीक पहले उन्होंने जेएमएम की तरफ से महुआ माजी के नाम की घोषणा कर दी यानी कांग्रेस का हाथ फिर खाली रह गया. बहुत बडे़-बड़े धुरंधरों की उम्मीद धाराशाई हो गयी.
नाम सामने आते ही कांग्रेस ने दिखाए तेवर
ऐसा लगता है कि हेमंत सोरेन की भले ही सोनिया गांधी से उम्मीदवार को लेकर सहमति हो गयी थी, लेकिन, कहीं न कहीं उन्हें भी इस बात का डर रहा होगा कि अगर नामांकन की अंतिम तिथि से बहुत पहले नाम का ऐलान किया गया तो महागठबंधन से कांग्रेस का कोई बागी उम्मीदवार सामने न आ जाए. शायद तभी उन्होंने अंतिम समय में नाम की घोषणा की.
महुआ माजी पर कांग्रेस सहमत नहीं!
ये अलग बात है कि नाम का खुलासा होते ही प्रदेश कांग्रेस की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी. और तो और खुद प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कह दिया कि दिल्ली में जैसी बात हुई थी, उम्मीदवारी की घोषणा में वो बात नहीं है. जाहिर है प्रदेश कांग्रेस महुआ माजी के नाम से सहमत नहीं है.
क्या अपने वादे से पीछे हट गए हेमंत ?
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की बातों से तो ऐसा लगता है कि जेएमएम ने उसके साथ धोखा किया है. उन्होंने साफ किया है कि प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे रांची पहुंच रहे हैं और उसके बाद कांग्रेस आगे की अपनी रणनीति तय करेगी. तो क्या जेएमएम और कांग्रेस के रिश्ते में खटास आ गयी है ? सवाल ये भी है कि झारखंड सरकार की सेहत पर राज्यसभा उम्मीदवारी का गहरा असर पड़ने वाला है ?
रिश्ते में खटास, गठबंधन की मजबूरी!
इस बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता कि राज्यसभा चुनाव ने दोनों दलों को कुछ दूर जरूर कर दिया है. राज्य के कांग्रेसी नेताओं को बड़ी उम्मीद थी कि जेएमएम महागठबंधन धर्म निभाते हुए, इस बार उसे राज्यसभा की सीट देगी. यह उम्मीद टूटी है तो दर्द स्वाभाविक है.
महागठबंधन से अलग होगी कांग्रेस?
ये अलग बात है कि देश के कुछ राज्यों तक सिमट चुकी कांग्रेस हालात को देखते हुए महागठबंधन तोड़ने जैसे बड़े फैसले तक नहीं पहुंचेगी. उसको पता है कि अगर राज्य में अपनी स्थिति मजबूत बनानी है तो सत्ता की ताकत जरूरी है. दूसरी तरफ अलग-अलग मामलों को लेकर लगातार बीजेपी के हमलों का सामना कर रहा जेएमएम भी गठबंधन को तोड़ना नहीं चाहेगा.
गठबंधन को बनाए रखना दोनों दलों की आवश्यकता भी है और मजबूरी भी. लेकिन, सियासत कब क्या करवट ले, ये बड़े-बड़े सूरमाओं को पता नहीं होता. तो अब बस दोनों दलों के अगले कदम का ही इंतजार करना होगा.
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